बुंदेलखंड के ज्यादातर गांव बुजुर्गो और बच्चों के हवाले!

संदीप पौराणिक
झांसी/पन्ना, 26 दिसंबर | बुंदेलखंड के अधिकांश गांवों में युवा बहुत कम नजर आते हैं। अगर यह कहा जाए कि ये गांव अब पूरी तरह बुजुर्गो और बच्चों के हवाले हैं तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। ज्यादातर जवान बेटा-बहू रोजी-रोटी की तलाश में गांव छोड़कर परदेस निकल गए हैं।

बुंदेलखंड के पन्ना से झांसी तक के लगभग 200 किलोमीटर के सड़क मार्ग से गुजरने पर यहां के हालात समझे जा सकते हैं। बड़ी संख्या में खाली पड़े खेत मैदान जैसे नजर आते हैं। आलम यह है कि यह नजारा वहां तक होता है, जहां तक आपकी नजर देख सकती है। हां, कहीं कहीं जरूर खेतों में हरियाली है। ये वे किसान हैं, जिन्होंने अपने खेत में ट्यूबवेल लगा रखे हैं और थोड़ा पानी मिल गया है।

पन्ना जिले के बराछ गांव के रामनरेश साहू और उनकी पत्नी नीता को अपना घर छोड़कर दिल्ली जाना पड़ रहा है। नीता बताती है, “गांव में पानी बचा नहीं, खेती हो नहीं सकती, मजदूरी भी करना चाहें तो काम नहीं है। इसलिए हम पति-पत्नी अपने सास-ससुर और बच्चों को देवर के जिम्मे छोड़कर जा रहे हैं। परिवार में किसी एक जिम्मेदार का होना आवश्यक है, लिहाजा हम दोनों ने गांव छोड़ दिया।”

हालात का जिक्र करते हुए नीता की आंखें नम हो जाती हैं और गुस्सा भी चेहरे पर साफ पढ़ा जा सकता है। उसने कहा, “अपना और बच्चों का पेट तो भरना ही है, साथ में उनकी पढ़ाई भी जरूरी है। किसी तरह पेट भरने का तो इंतजाम हो जाएगा, मगर बच्चों की पढ़ाई के लिए तो पैसा चाहिए ही। वरना घर के बुजुर्गो व बच्चों को छोड़कर जाने का मन किसका करता है।”

रामनरेश कहता है, “आदमी तो छोड़िए, आने वाले दिनों में जानवरों के लिए पीने का पानी मिल जाए तो बहुत है। गांव के कुएं लगभग सूखने के कगार पर हैं, तालाबों में नाम मात्र का पानी बचा है, जो सक्षम लोग हैं वे तो अपनी जरूरतों का इंतजाम कर लेते हैं, मगर गरीब क्या करें। सरकार, प्रशासन सुनता नहीं, ऐसे में अच्छा यही है कि बाहर जाकर कुछ काम तलाशा जाए।”

पूर्व सांसद और बुदेलखंड विकास प्राधिकारण के अध्यक्ष रामकृष्ण कुसमारिया ने पलायन की बात स्वीकार की। उन्होंने आईएएनएस से कहा, “लोग काम की तलाश में बाहर जा रहे हैं, जहां तक गांव में काम उपलब्ध कराने की बात है तो यह जिम्मेदारी पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्रालय की है। गांव में ही काम मिल जाए, इसके प्रयास हो रहे हैं।”

बुंदेलखंड में कुल 13 जिले आते हैं, जिनमें मध्यप्रदेश के छह जिले छतरपुर, टीकमगढ़, पन्ना, दमोह, सागर व दतिया और उत्तर प्रदेश के सात जिले झांसी, ललितपुर, जालौन, हमीरपुर, बांदा, महोबा, कर्वी (चित्रकूट) शामिल हैं। यहां के मजदूर अमूमन हर साल दिल्ली, गुरुग्राम, गाजियाबाद, पंजाब, हरियाणा और जम्मू एवं कश्मीर तक काम की तलाश में जाते हैं। इस बार पलायन का औसत बीते वर्षो से कहीं ज्यादा है।

महोबा में बीते कई वर्षो से भूखों का पेट भरने के लिए ‘रोटी बैंक’ संचालित करने वाले तारा पाटकर का कहना है, “पलायन तो यहां की नियति बन चुका है। जवान तो काम की तलाश में बाहर चले जाते हैं, मगर सबसे बुरा हाल बुजुर्गो व बच्चों का होता है, जो यहां रह जाते हैं। काम की तलाश के लिए जाने वालों के सामने भी समस्या होती है कि इन्हें ले जाकर करेंगे क्या।”

बुंदेलखंड के जानकारों का मानना है कि आगे भी पलायन का यही दौर चला और युवा अपने बुजुर्ग मां-बाप तथा बच्चों का छोड़कर जाते रहे तो आने वाले दिनों में गांव का नजारा ही बदल जाएगा। हर तरफ असहाय बुजुर्ग और बच्चे ही नजर आएंगे। ऐसे में एक सवाल उठता है कि क्या इन असहायों को पानी और रोटी मिल पाएगी।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *