झांसीः बुन्देली माटी एक बार फिर से व्यापारी राजनीति की सक्रियता का असर देखेगी। चुपचाप और खामोश आने वाले व्यापारी नेता पिछले दरवाजे से एंटी करते हुये धमक दिखाने की बेताब है। इसकी आहट चर्चा और खामोशी के साये मे फंसे व्यापारी संगठनो ने बीते कुछ दिनो मे सुर्खियां बटोरते हुये अपने कुनबा बढ़ाओ अभियान को आगे बढ़ा दिया है। कुछ जोड़तोड़, तो कुछ अपनो के कंधां पर संगठन को ताल बजाने लायक बनाकर मैदान मे आ रहे है। चुनौती दोनो के लिये है। जो वर्तमान में चलायमान है और जो चलायमान होने का दंभ भर रहे हैं।
यहां सवाल यह फंस रहा कि किसके लिये कौन सी चुनौतियां हैं। जिम्मेदारियो का बोझ तो अपनो के सिर रखकर वाहवाही लूटने का मौका एक दिन मिलता है, लेकिन जिम्मेदारी निभाने के लिये मुददो को तलाशने मे बाहर की दौड़ लगानी पड़ती है। यह होना मुश्किल भरा है!
बुन्देली माटी इस बात की गवाह है कि अब तक व्यापारी संगठनांे के मुखिया से लेकर पदाधिकारियांे की दौड़ नजर आने वाले मामलो तक ही सीमित रही है। अखबार मे खबर देखी और पुलिस और अधिकारियो के कान खड़े मे जी जान लगा देना। जबरदस्त फोटो सेशन। नेताओ को दिखाने की नीति। बस, ले लिया व्यापारी राजनीति का मजा।
यह बात थोड़ी कड़वी हो सकती है। सच्चाई भी सोलह आने खरी है। बुन्देलखण्ड मे उप्र व्यापार मंडल, उप्र उद्योग व्यापार मंडल, जय बुन्देलखण्ड व्यापार मंडल, उप्र उद्योग व्यापार प्रतिनिधि मंडल। ना जाने कितने संगठन है। नाम लेने की शुरूआत करे, तो एक पंजे की अंगुलियां कम पड़ जाए, लेकिन मजाल है कि किसी नेता को संघर्ष की राह पर खड़ा देखा हो। पर, अपनी पीठ थपथपाने वाले नेताओ की दौड़ मे अव्वल रहने वाले संजय पटवारी का किसी से मुकाबला नहीं हो सकता! उनका विवाद से पुराना नाता है। भगवान ना करे, इनके संगठन की संख्या बल मे कमी आए। आयी, तो इनकी पाकेट मे ऐसी सैकड़े पुड़िया पड़ी है, जिसके लिये किसी का भी हाथ पकड़ा और पद थमा दिया।
जो चेहरा संगठन मे नव प्रवेश वाला हुआ, उसकी तस्वीरे बड़े अखबार मे छपने की सौ फीसद गारंटी है। जाहिर है, दिखने की कला मे बिकने का आइडिया हमेशा काम करता है।
अब दिखने और दिखाने की बात चली, तो जय बुन्देलखण्ड व्यापार मंडल कहां पीछे रहता। एक नया चेहरा तलाशा। दो और ढूंढे। शपथ दी और फिर से हुंकार! अरे कम से कम अधिकारियो के तो कान खड़े हो गये! उप्र उद्योग व्यापार मंडल ने भी बीते रोज कुछ इसी अंदाज मे दस्तक दी। अधिकारी यह नहीं समझे कि उन्हे देखने के लिये दिव्य दृष्टि वाला ही है, हम भी है जनाब! यह कहते रहो और कुनबा बढ़ाते रहो। क्योकि बाजार मे स्मार्ट सिटी के मुददे किसी को दिखेगे नहीं। व्यापारियो के लिये स्थानीय स्तर पर नीति बनाने का जिम्मा कोई अपने कंधे पर लेगा नहीं? चुनौतियां अपनो से लड़ने और आगे निकलने की है, सो संगठन के लोग इसे बखूबी निभा रहे हैं। शायद बुन्देलखण्ड मे व्यापारी राजनीति की जिम्मेदारी और चुनौती इन्हीं शब्द के इर्दगिर्द घूमती नजर आती है!
हां, संगठनो की हुनरमंदी को लेकर मंत्र याद आता है, जिसमे विरोधियो की ताकत बढ़ने से रोकने के लिये कुछ तो अभी से जपने भी लगे होगे-जलतू जलालतू, आयी बला को टाल तू!