लखनउ 23 सितम्बरः राज्यसभा सांसद चन्द्रपाल सिंह यादव पर पिछले दिनो उनकी ही पार्टी के दूसरे धड़े के एक पदाधिकारी ने यह आरोप लगाया था कि उनकी हैसियत बूथ जीतने की नहीं है और उन्हे राज्यसभा सांसद बना दिया गया। अब चन्द्रपाल सिंह यादव अपनी अखिलेश भक्ति के चलते चर्चा मे हैं।
बुन्देलखण्ड मे समाजवादी पार्टी को जनाधार देने का काम करने मे आगे रहे राज्यसभा सांसद चन्द्रपाल सिंह यादव इन दिनो फिर से चर्चा मे हैं। उन्हे पार्टी मे ही आड़े हाथांे लिया जा रहा है। पार्टी मे दूसरे नंबर के नेताओ को आगे नहीं आने देने के आरोपों के बाद उन्हे किसी का वफादार नहीं माना जा रहा है। कल तक मुलायम सिंह यादव के बेहद करीबी माने जाने वाले चन्द्रपाल सिंह यादव की अखिलेश भक्ति चर्चा का विषय बनी हुयी है।
गौरतलब है कि विधानसभा चुनाव से पहले जब सपा मे पारिवारिक युद्व चल रहा था, उस समय चन्द्रपाल सिंह यादव मौका देख राम गोपाल के पाले में बैठ गये। जबकि मुलायम सिंह यह उम्मीद लगाये थे कि चन्द्रपाल उनका साथ देगे।
कहते है कि राजनीति अवसर का खेल है। यह बात चन्द्रपाल सिंह यादव से बेहतर कौन जान सकता है। विधानसभा चुनाव मे जब कहा गया कि टिकट बटवारे मे शिवपाल सिंह यादव की चलेगी, तो चन्द्रपाल सिंह यादव निराश हो गये। क्यांकि पार्टी ने यहां से दीपमाला कुशवाहा को प्रत्याशी घोषित कर दिया था।
कल तक राजनीति मे एबीसीडी नहीं जानने वाली दीपमाला जब प्रत्याशी बनकर झांसी आयी, तो दूसरे सपाईयो के चेहरे मुरझा गये थे। चन्द्रपाल सिंह यादव को भी जोर का झटका धीरे से लगा था। वह विधानसभा चुनाव मंे झांसी से अपने पुत्र को खड़ा करना चाहते थे, लेकिन दीपमाला के आने से यह संभव नही था। इस बीच जब पार्टी मंे खींचतान हुयी, तो चन्द्रपाल ने अपने बेटे के लिये मुलायम सिंह यादव का दामन छोड़ना बेहतर समझा।
वह ना केवल अखिलेश खेमे से जुड़े बल्कि अपने बेटे को बबीना से टिकट दिलाने मे भी सफल रहे। सपा मे मुलायम सिंह यादव के करीबी नेता कहते है कि जिस तरह से नेताजी ने नरेश अग्रवाल, आजम खां आदि नेताओ को पद व सम्मान दिया,उसी तरह बुन्देलखण्ड से कददावर नेता कहे जाने वाले चन्द्रपाल की भी हैसियत बढ़ाई। एक समय वो था, जब चन्द्रपाल सिंह यादव पार्टी के कोषाध्यक्ष थे और उनकी पार्टी मे हैसियत नंबर दो की मानी जाती थी।
राजनीति मे वक्त के साथ करवट लेने वाले चन्द्रपाल का यह दांव मुलायम सिंह यादव को पसंद नहीं आया। हालंाकि उन्होने खुलकर तो चन्द्रपाल सिंह यादव के बारे मे कुछ नहीं कहा, लेकिन इशारो मे साफ कर दिया कि कुछ लोग सिर्फ अपने हितो को साधने के लिये पार्टी मे आते हैं। मुलायम का यह इशारा उन सभी नेताआंे के लिये था, जो उन्हे छोड़कर चले गये। यहां सवाल यह उठ रहा है कि पिछले कई दशको से राजनीति मे सक्रिय चन्द्रपाल सिंह यादव ने अपने सिद्वान्तो से समझौता क्यो किया?
क्या उन्हंे सपा मे अखिलेश भक्ति ज्यादा पंसद है या फिर वो बेटे को स्थापित करने के लिये आने वाले समय मे एक और मौका तलाश रहे हैं?