जश्ने ईदे मीलादुन्नबी आलमे इन्सानियत को बहुत बहुत मुबारक ! – सैयद शहनशाह हैदर आबदी

इतिहासकारों के अनुसार  मुहम्मद  (सल्ल.) का जन्म अरब के रेगिस्तान में 20 अप्रैल571 ई. में हुआ।

‘मुहम्मद’ का अर्थ होता है‘ जिस की सबसे ज़्यादा तारीफ की गई हो।’ हमारी नज़र में आप अरब के सपूतों में सबसे ज़्यादा जानने वाले और सबसे उच्च बुद्धि के व्यक्ति हैं।

इस्लाम धर्म ऐतिहासिक है और उसके पैगम्बर रसूले ख़ुदा हज़रत मुहम्मद मुस्तफा (सल्ल.) का व्यक्तित्व भी ऐतिहासिक है। यहाँ तक कि सर विलियम म्यूर जैसा इस्लाम विरोधी आलोचक भी कुरआन के बारे में कहता है, ‘‘शायद संसार में (कुरआन के अतिरिक्त) कोई अन्य पुस्तक ऐसी नहीं है, जो बारह शताब्दियों तक अपने विशुद्ध मूल के साथ इस प्रकार सुरक्षित हो।’’ यहां हम इसमें इतना और बढ़ा सकते हैं कि पैगम्बर मुहम्मद भी एक ऐसे अकेले ऐतिहासिक महापुरुष हैं, जिनके जीवन की एक-एक घटना को बड़ी सावधनी के साथ बिल्कुल शुद्ध रूप में बारीक से बारीक विवरण के साथ आनेवाली नस्लों के लिए सुरक्षित कर लिया गया है। उनका जीवन और उनके कारनामे रहस्य के परदों में छुपे हुए नहीं हैं। उनके बारे में सही-सही जानकारी प्राप्त करने के लिए किसी को सिर खपाने और भटकने की ज़रूरत नहीं। सत्य रूपी मोती प्राप्त करने के लिए ढेर सारे कठिन परिश्रम की ज़रूरत नहीं है।

इस्लाम का यह सिद्धान्त कि ‘धर्म के मामले में कोई ज़ोर-ज़बरदस्ती नहीं (ला एकराहा फिद दीन) ’, आज सब पर भली-भाँति विदित है।

विश्वविख्यात इतिहासकार गिब्बन ने कहा है, ‘मुसलमानों के साथ यह ग़लत धारणा जोड़ दी गई है कि उनका यह कर्तव्य है कि वे हर धर्म का तलवार के ज़ोर से उन्मूलन कर दें।’ इस इतिहासकार ने कहा कि यह जाहिलाना इल्ज़ाम कुरआन से भी पूरे तौर पर खंडित हो जाता है और मुस्लिम विजेताओं के इतिहास तथा ईसाइयों, हिन्दूओं (गैरमुस्लिमों) की पूजा-पाठ के प्रति उनकी ओर से क़ानूनी और सार्वजनिक उदारता का जो प्रदर्शन हुआ है उससे भी यह इल्ज़ाम तथ्यहीन सिद्ध होता है। पैग़म्बर मुहम्मद के जीवन की सफलता का श्रेय तलवार के बजाय उनके असाधारण नैतिक बल को जाता है।

सिद्धान्तों को व्यावहारिक रूप देनेवाले ईशदूत:

 हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ने मानवता के सामाजिक उत्थान के लिए सार्वभौमिक भाईचारे का नियम और मानव-समानता का सिद्धान्त प्रतिपादित किया। यों तो सभी बड़े धर्मों ने एक ही सिद्धान्त का प्रचार किया है, लेकिन इस्लाम के पैगम्बर ने सिद्धान्त को व्यावहारिक रूप देकर पेश किया। इस योगदान का मूल्य शायद उस समय पूरी तरह स्वीकार किया जा सकेगा, जब अंतर्राष्ट्रीय चेतना जाग जाएगी,  जातिगत पक्षपात और पूर्वाग्रह पूरी तरह मिट जाएँगे और मानव भाईचारे की एक मज़बूत धारणा वास्तविकता बनकर सामने आएगी।

खुदा के समक्ष रंक और राजा सब एक समान:

 इस्लाम के इस पहलू पर विचार व्यक्त करते हुए भारत की महान कवियत्री सरोजनी नायडू कहती हैं- ‘‘यह पहला धर्म था जिसने जम्हूरियत (लोकतंत्र) की शिक्षा दी और उसे एक व्यावहारिक रूप दिया। क्योंकि जब मीनारों से अज़ान दी जाती है और इबादत करने वाले मस्जिदों में जमा होते हैं तो इस्लाम की जम्हूरियत (जनतंत्र) एक दिन में पाँच बार साकार होती है, ‘अल्लाह-हो-अकबर’ यानी ‘‘ अल्लाह ही बड़ा है।’’ अपनी बात जारी रखते हुए वो आगे कहती हैं-‘‘मैं इस्लाम की इस अविभाज्य एकता को देख कर बहुत प्रभावित हुई हूँ, जो लोगों को सहज रूप में एक-दूसरे का भाई बना देती है। जब आप एक मिस्री, एक अलजीरियाई, एक हिन्दूस्तानी और एक तुर्क (मुसलमान) से लंदन में मिलते हैं तो आप महसूस करेंगे कि उनकी निगाह में इस चीज का कोई महत्व नहीं है कि एक का संबंध मिस्र से है और एक का वतन हिन्दुस्तान आदि है।’’ मोहम्मद साहब ने ही समाजवाद की सही परिकल्पना प्रस्तुत की।

हम सब जानते हैं कि काले नीग्रो लोगों के साथ आज भी ‘सभ्य’  सफेद रंगवाले कैसा व्यवहार करते है? फिर आप आज से चौदह शताब्दी पूर्व इस्लाम के पैग़म्बर के समय के काले नीग्रो ( हज़रत बिलाल रज़िअल्लाह ताआला अन्हो) के बारे में अन्दाज़ा कीजिए। इस्लाम के आरम्भिक काल में नमाज़ के लिए अज़ान देने की सेवा को अत्यन्त सम्मानजनक पद समझा जाता था और यह आदर इस गुलाम नीग्रो “हज़रत बिलाल” को प्रदान किया गया था। मक्का पर विजय के बाद उनको हुक्म दिया गया कि नमाज़ के लिए अज़ान दें और यह काले रंग और मोटे होंठों वाला नीग्रो “हज़रत बिलाल” गुलाम इस्लामी जगत् के सब से पवित्र और ऐतिहासिक भवन, पवित्र काबा की छत पर अज़ान देने के लिए चढ़ गये। उस समय कुछ अभिमानी अरब चिल्ला उठे, ‘‘आह, बुरा हो इसका, यह काला हब्शी (हज़रत बिलाल) अज़ान के लिए पवित्र काबा की छत पर चढ़ गया है।’’ शायद यही नस्ली गर्व और पूर्वाग्रह था जिसके जवाब में मोहम्मद साहब (सल्ल.) ने एक भाषण (खुत्बा) दिया। वास्तव में इन दोनों चीज़ों को जड़-बुनियाद से ख़त्म करना आपके लक्ष्य में से था।
सभी लोग एक आदम की औलाद हैं और अल्लाह ने आदम को मिट्टी से पैदा किया था।’’ इसी की पुष्टि कुरआन में इन शब्दों में की गई है-‘‘ऐ लोगो ! हमने तुमको एक मर्द और एक औरत से पैदा किया और तुम्हारी विभिन्न जातियाँ और वंश बनाए ताकि तुम एक-दूसरे को पहचानो,  निस्सन्देह अल्लाह की दृष्टि में तुममें सबसे अधिक सम्मानित वह है जो (अल्लाह से) सबसे ज्यादा डरनेवाला चरित्रवान है। निस्सन्देह अल्लाह खूब जाननेवाला और पूरी तरह ख़बर रखनेवाला है।’’ (कुरआन,49/13)

बेदाग आचरण:

 ऐतिहासिक दस्तावेज़ साक्षी हैं कि, क्या दोस्त, क्या दुश्मन,  हज़रत मुहम्मद के सभी समकालीन लोगों ने जीवन के सभी मामलों व सभी क्षेत्रों में पैग़म्बरे-इस्लाम के उत्कृष्ट गुणों, आपकी बेदाग़ ईमानदारी, आपके महान नैतिक सद्गुणों तथा आपकी अबोध निश्छलता और हर संदेह से मुक्त आपकी विश्वसनीयता को स्वीकार किया है।

व्यावहारिक शिक्षाएँ:

धर्म की इस नई धारणा ने कि धर्म का विषय पूर्णतः अलौकिक जगत के मामलों तक सीमित न रहना चाहिए, बल्कि इसे लौकिक जीवन के उत्थान पर भी ध्यान देना चाहिए, नीतिशास्त्र और आचारशास्त्र के नए मूल्यों एवं नई मान्यताओं को नई दिशा दी। इसने दैनिक जीवन में लोगों के सामान्य आपसी संबंधों पर स्थाई प्रभाव डाला। इसने जनता के लिए गहरी शक्ति का काम किया। इसके अतिरिक्त लोगों के अधिकारों और कर्तव्यों की धारणाओं को सुव्यवस्थित करना और इसका अनपढ़ लोगों और बुद्धिमान दार्शनिकों के लिए समान रूप से ग्रहण करने और व्यवहार में लाने के योग्य होना पैग़म्बरे – इस्लाम की शिक्षाओं की प्रमुख विशेषताएँ हैं।

सत्कर्म पर आधारित शुद्ध धारणा:

 यहाँ यह बात सर्तकता के साथ दिमाग़ में आ जानी चाहिए कि भले कामों पर ज़ोर देने काअर्थ यह नहीं है कि इसके लिए धार्मिक आस्थाओं की पवित्रता एवं शुद्धता को कुर्बान किया गया है। ऐसी बहुत-सी विचार-धाराएँ हैं, जिनमें या तो व्यावहारिकता के महत्व की बलि देकर आस्थाओं ही को सर्वोपरि माना गया है या फिर धर्म की शुद्ध  धारणा एवं आस्था की परवाह न करके केवल कर्म को ही महत्व दिया गया है। इनके विपरीत इस्लाम सत्य, आस्था एवं सत्कर्म के नियम पर आधरित है। यहाँ साधन भी उतना ही महत्व रखते हैं जितना लक्ष्य। लक्ष्यों को भी वही महत्ता प्राप्त है जो साधनों को प्राप्त है। यह एक जैव इकाई की तरह है। इसके जीवन और विकास का रहस्य इनके आपस में जुड़े रहने में निहित है। अगर ये एक-दूसरे से अलग होते हैं तो ये क्षीण और विनष्ट होकर रहेंगे। इस्लाम में ईमान और अमल कोअलग- अलग नहीं किया जा सकता। सत्य- ज्ञान को सत्कर्म में ढल जाना चाहिए, ताकि अच्छे फल प्राप्त हो सकें। ‘‘जो लाग ईमान रखते हैं और नेक अमल करते हैं, केवल वे ही स्वर्ग में जा सकेंगे।’’ यह बात कुरआन में पचास बार से कम नहीं दोहरायी गयी है। सोच विचार और ध्यान पर उभारा अवश्य गया है, लेकिन मात्र ध्यान और सोच-विचार ही लक्ष्य नहीं है। जो लोग केवल ईमान रखें, लेकिन उसके अनुसार कर्म न करें, उनका इस्लाम में कोई मुक़ाम नहीं है। जो ईमान तो रखें लेकिन कुकर्म भी करें,  उनका ईमान क्षीण है। ईश्वरीय क़ानून-मात्र  विचार-पद्धति नहीं, बल्कि वह एक कर्म और प्रयास का क़ानून है। यह दीन (धर्म) लोगों के लिए ज्ञान से कर्म और कर्म से परितोष द्वारा स्थायी एवं शाश्वत उन्नति का मार्ग दिखलाता है ।

हजरत मुहम्मद मुस्तफा (सल्ल.) एक प्रसिद्ध व्यक्तित्व:

यदि उद्देश्य की महानता, साधनों का अभाव और शानदार परिणाम- मानवीय बुद्धिमत्ता और विवेक की तीन कसौटियाँ हैं, तो आधुनिक इतिहास में हजरत मुहम्मद (सल्ल.) के मुक़ाबले में कौन आ सकेगा? विश्व के महानतम एवं प्रसिद्धतम व्यक्तियों ने शास्त्र, कानून और शासन के मैदान में कारनामे अंजाम दिए। उन्होंने भौतिक शक्तियों को जन्म दिया, जो प्राय: उनकी आँखों के सामने ही बिखर गईं। लकिन हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ने न केवल फौज,  कानून,  शासन और राज्य को अस्तित्व प्रदान किया, बल्कि तत्कालीन विश्व की एक तिहाई जनसंख्या के मन को भी छू लिया। साथ ही, आपने कर्मकांडों, वादों,धर्मों, पंथों, विचारों, आस्थाओं इत्यादि में अमूल परिवर्तन कर दिया। इस एक मात्र पुस्तक पवित्र कुरआन ने, जिसका एक-एक अक्षर कानूनी हैसियत  प्राप्त कर चुका है, हर भाषा, रंग, नस्ल और प्रजाति के लोगों को देखते-देखते एकत्रित कर दिया, जिससे एक अभूतपूर्व अखिल विश्व आध्यात्मिक नागरिकता का निर्माण हुआ। हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) द्वारा एकेश्वरवाद की चमत्कारिक घोषणा के साथ ही विभिन्न काल्पनिक तथा मनघड़न्त आस्थाओं, मतों, पंथों, धार्मिक मान्यताओं, अंधविश्वासों एवं रीति-रिवाजों की जड़ें कट गईं। उनकी अनन्त उपासनाएँ, ईश्वर से उनकी आध्यात्मिक वार्ताएँ, लौकिक और पारलौकिक जीवन की सफलता- ये चीजें न केवल हर प्रकार के पाखण्डों का खण्डन करती हैं, बल्कि लोगों के अन्दर एक दृढ़ विश्वास भी पैदा करती हैं, उन्हें एक शाश्वत धार्मिक सिद्धान्त कायम करने की शक्ति भी प्रदान करती हैं। यह सिद्धान्त द्विपक्षीय है। एक पक्ष है ‘एकेश्वरवाद’ का और दूसरा है ‘ईश्वर के निराकार’ होने का। पहला पक्ष बताता है कि ‘ईश्वर क्या है?’ और दूसरा पक्ष बताता है कि ‘ईश्वर क्या नहीं है?’ 
दार्शनिक ,वक्ता, धर्मप्रचारक, विधि-निर्माता, योद्धा, विचारों को जीतनेवाला, युक्तिसंगत आस्थाओं के पुनरोद्धारक, निराकार (बिना किसी प्रतिमा) की उपासना, बीस बड़ी सल्तनतों और एक आध्यात्मिक सत्ता के निर्माता एवं प्रतिष्ठाता वही हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) हैं, जिनके द्वारा स्थापित मानदण्डों से मानव-चरित्र की ऊँचाई और महानता को मापा जा सकता है। यहाँ हम यह पूछ सकते हैं कि क्या हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) से बढ़कर भी कोई महामानव है? ’’

हज़रत मोहम्मद साहब ने ही मानवीय मूल्यों रक्षा के निर्देश देते हुये कहा,” मेहनतकश का मेहनताना उसका पसीना सूखने से पहले अदा कर दिया जाये।’’    आपने ही समाजवाद की सही परिकल्पना प्रस्तुत की।  

मानव-जीवन के लिए उत्कृष्ट नमूना पैगम्बर मुहम्मद के व्यक्तित्व की सभी यथार्थताओं को जान लेना बड़ा कठिन काम है। मैंने तो उसकी बस कुछ झलकियाँ ही पेश की हैं।आपके व्यक्तित्व के कैसे-कैसे मनभावन दृश्य निरन्तर प्रभाव के साथ सामने आते हैं। पैग़म्बर मुहम्मद (सल्ल) कई हैसियत से हमारे सामने आते है- मुहम्मद-पैग़म्बर, मुहम्मद-जनरल, मुहम्मद-शासक, मुहम्मद-योद्धा, मुहम्मद-व्यापारी, मुहम्मद-उपदेशक, मुहम्मद-दार्शनिक,  मुहम्मद-राजनीतिज्ञ, मुहम्मद-वक्ता,  मुहम्मद-समाज सुधारक, मुहम्मद-यतीमों के पोषक, मुहम्मद-ग़ुलामों के रक्षक, मुहम्मद-स्त्री वर्ग का उद्धार करने वाले और उनको बन्धनों से मुक्त कराने वाले, मुहम्मद-न्याय करने वाले, मुहम्मद -सन्त। इन सभी महत्वपूर्ण भूमिकाओं और मानव-कार्य के क्षेत्रों में आपकी हैसियत समान रूप से एक महान नायक की है।   

अनाथ अवस्था अत्यन्त बेचारगी और असहाय स्थिति का दूसरा नाम है और इस संसार में आपके जीवन का आरम्भ इसी स्थिति से हुआ। राजसत्ता इस संसार में भौतिक शक्ति की चरम सीमा होती है। और आप शक्ति की यह चरम सीमा प्राप्त करके दुनिया से विदा हुए। आपके जीवन का आरम्भ एक यतीम बच्चे के रूप में होता है, फिर हम आपको एक सताए हुए मुहाजिर (शरणार्थी) के रूप में पाते हैं और आखिर में हम यह देखते हैं कि आप एक पूरी क़ौम के दुनियावी और रूहानी पेशवाऔर उसकी क़िस्मत के मालिक हो गए हैं। आपके इस मार्ग में जिन आज़माइशों, प्रलोभनों, कठिनाइयों और परिवर्तनों, अन्धेरों और उजालों, भय और सम्मान, हालात के उतार-चढ़ाव आदि से गुज़रना पड़ा, उन सब में आप सफल रहे। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आपने एक आदर्श पुरुष की भूमिका निभाई। उसके लिए आपने दुनिया से लोहा लिया और पूर्ण रूप से विजयी हुए। आपके कारनामों का संबंध जीवन के किसी एक पहलू से नहीं है, बल्कि वे जीवन के सभी क्षेत्रों में व्याप्त है। 

इस्लाम ज़िन्दगी देने का नाम है, बेक़ुसूरों की ज़िन्दगी लेने का नहीं। इस्लाम में खुदकुशी हराम है। पता नहीं वो कैसे मुसलमान हैं जो इस्लामी निज़ाम क़ायम करने और जन्नत की जुस्तुजू में न सिर्फ खुद को विस्फोटकों से मांस के लोथड़ों में बदल लेते हैं बल्कि मासूम बच्चों, औरतों और बेक़ुसूरों को भी मांस के लोथड़ों में तब्दील कर देते हैं।

इस्लाम को आतंक पर्याय बनाने वालों के विरुध्द सभ्य मुस्लिम समाज को सीना तान कर खडा होना और सशक्त संघर्ष कर उन्हें हर स्तर पर परास्त करना ही रसूले खुदा मोहम्मद मुस्तफा को सच्ची श्रृध्दान्जली होगी और जश्ने ईदे मीलादुन्नबी मनाना सार्थक होगा। अन्यथा यह केवल औपचारिकता के अतिरिक्त कुछ नहीं। क्या हम इसके लिये तैयार हैं?

आइये, इस मुबारक मौक़े पर अहद लें कि इस अज़ीम शख्सियत की तालिमों पर अमल करके मोहब्बत, सलामती, भाईचारगी, बराबरी और अमन के साथ इंसानियत, क़ौम, मुल्क और दोनो आलम की तरक़्क़ी और भलाई के लिये काम करेंगे।

खुदावन्दे आलम हज़रत मोहम्मद मुस्तफा सदक़े में हमारी तौफीक़ात में इज़ाफा करे-आमीन !

संकलन एवं सम्पादन-सैयद शहनशाह हैदर आब्दी,

समाजवादी चिंतक – झांसी।
मो.न. +91-9415943454.

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