झाँसी-विरादरी की राजनीति करने वाले बाबूसिंह कुशवाहा क्या सर्व समाज को स्वीकार होंगे?, रिपोर्ट-देवेंद्र, रोहित, सत्येंद्र

झाँसी। देश के चर्चित इन एनएचआरएम घोटाले के आरोपी कहे जाने वाले जन अधिकार पार्टी के मुखिया बाबू सिंह कुशवाहा का कांग्रेस पार्टी के साथ हुआ गठबंधन झांसी ललितपुर लोकसभा सीट पर कई सवालों के घेरे में हैं।

बाबू सिंह कुशवाहा के बारे में कहा जाता है कि उनकी राजनीति अपनी बिरादरी के इर्द-गिर्द घूमती रहती है। ऐसे में झांसी सीट पर क्या उनकी पार्टी का प्रत्याशी सर्व समाज को मान्य होगा? यह सवाल कांग्रेसी ही नहीं पार्टी के बिरादरी वाले नेताओं को भी परेशान किए हुए है।

कांग्रेस पार्टी में झांसी संसदीय सीट समझौते के बाद जन अधिकार पार्टी को दी है । हालांकि कांग्रेसमें अंतिम समय में पार्टी को इस बात के लिए मजबूर किया कि वह उनके चुनाव चिन्ह पर ही मैदान में उतरे। जान कर बता रहे हैं कि गठबंधन के दौरान जन अधिकार पार्टी झांसी सीट नहीं चाहती थी, लेकिन कांग्रेस पार्टी के अंदर गुटबाजी का नतीजा रहा कि यह सीट जन अधिकार पार्टी के खाते में चली गई।

अब जबकि जन अधिकार पार्टी बुंदेलखंड में अपनी बिरादरी तक ही पहचान सीमित किए हुए हैं, ऐसे में कांग्रेसियों के सामने एक सवाल है कि वह चुनाव प्रचार में बाबू सिंह कुशवाहा को कैसे सर्व समाज में स्थापित करें ? उन्हें चुनाव में जीत से ज्यादा इस बात को लेकर मशक्कत करना पड़ रही है कि बाबू सिंह कुशवाहा की पार्टी केवल कुशवाहा समाज के लिए नहीं है । कांग्रेसी मानते हैं कि वह यह बात समझाते समझाते शायद आधा चुनाव प्रचार खत्म करने की दिशा में खड़े होंगे।

जन अधिकार पार्टी की मुखिया का अपनी ही बिरादरी की राजनीति करने का जो ठप्पा लगा है ,उसका एक नमूना कार्यालय में भी देखा जा सकता है। यहां प्रचार से लेकर सारी व्यवस्थाओं की कमान बाबू सिंह कुशवाहा के खास और उनकी ही बिरादरी के लोगों के कंधे पर है। यानी प्रचार में यदि कांग्रेसी नेताओं को किसी प्रकार की अनुमति लेना है, तो वे कुशवाहा नेताओं के आगे नतमस्तक नजर आ रहे हैं।
एक कांग्रेसी नेता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि वह पहले ही पार्टी के इस निर्णय को स्वीकार करने की स्थिति में नहीं हैं । इसके बाद जिस तरह से बाबू सिंह कुशवाहा की पार्टी कांग्रेश पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं को नजरअंदाज कर रही है और अपने ही बिरादरी के लोगों को सारी व्यवस्थाओं की कमान दे रही है, उससे पार्टी प्रत्याशी को खासा नुकसान हो सकता है।

वह कते हैं कि बीते कुछ दिनों में प्रचार के दौरान उन्होंने भी यह बात महसूस की है कि जन अधिकार पार्टी पर कुशवाहा समाज की राजनीति करने का ठप्पा लगा है । यानी कांग्रेसियों के बाद यह सवाल और गहरा होता जा रहा है कि क्या चंद समय में बाबू सिंह कुशवाहा दलित, पिछड़े , ओबीसी, मुस्लिम , वैश्य, ब्राह्मण, ठाकुर वह अपराधियों के लोगों का भरोसा जीत सकेंगे।

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