मैथलीशरण गुप्त ,वृन्दावन लाल वर्मा ,व्यास जी की पुण्यधरा प्रात: स्मरणीया रानी लक्ष्मीबाई की नगरी झाँसी में
साहित्य की सभी विधाओं के उत्थान के लिए पूर्णतया संकल्पित एवं समर्पित संस्था “झाँसी साहित्य निधि “के तत्वावधान में होटल हरि पैलेस में आयोजित भव्य समारोह में “काव्य गोष्ठी ” सम्पन्न हुई जिसमें युवा कवियों से लेकर वरिष्ठ कवियों , प्रशासकों से लेकर साहित्य साधना में रत विद्वानों ने सहभागिता की ।
कार्यक्रम का शुभारम्भ श्रीमती ब्रजलता मिश्रा की वाणी वंदना से प्रारंभ होकर साहित्य के क्षेत्र में विभिन्न कीर्ति मान /उपलब्धियाँ प्राप्त सरस्वती माँ के वरद पुत्रों ने अपनी अंतरस्थ आस्था को शब्दों का प्रश्रय देकर वातावरण को गुंजायमान किया । एक -एक शब्द ,अक्षर का चयन कर शिल्प की माला में पिरोकर सस्वर प्रस्तुत कर श्रोताओं एवं
उपस्थित साहित्यकारों को मंत्र मुग्ध कर दिया । कार्यक्रम की सूत्रधार डा.निधि अग्रवाल के उदबोधन एवं निहालचन्द्र शिवहरे जी के सौम्य एवं गरिमामय संचालन व संयोजन के प्रबंधन ने सभी को आहृलादित कर अध्यात्म से श्रंगार तक की यात्रा का परिदृश्य सभी सहभागियों के स्वर समाहित कर नवोन्मेष कलेवर में प्रस्तुत किया ।
दिनेश चिंतक जी ने –
“देखी जब अर्जुन ने सेना सजी हुई संधानों से
रथी सारथी पैदल सज्जित तीरों और कमानों से ”
ओम प्रकाश मिश्रा जी ने –
“पांचजन्य प्रचंड मेरा शंख भी जब बज चुका है
तो परंतप देखकर भी समर तू क्यों रुका है ”
राजेश तिवारी ने –
” जहाँ विराजे राजा बनके श्री सीता पति राम
मनुआ चलो ओरछा धाम
वैभव दुबे –
महाशिव,महारुद्र,महादेव,महाकाल
नाम हैं सहस्त्र शिव शस्त्र शिव ढाल है
पंकज अभिराज –
कवि तुम्हारी लेखनी में मर्म होना चाहिए
भावों की अभिव्यंजना ही धर्म होना चाहिए ।
लोकभूषण पन्नालाल असर –
हवस के भेड़िये पीछे तो देख मुड़कर
जवान बेटी है कितनी तिरे घराने में
संजय राष्ट्रवादी –
“ए जिंदगी तुझे और जीने को दिल चाहता है ”
संगीता निगम –
” विधाता का मनुजता को दिया वरदान है बेटी ”
डा.प्रमोद अग्रवाल पूर्व मुख्य सचिव –
वह वृद्वा
पेट पीठ मिलकर है एक
चल रही लकुटिया टेक
डा.अरविंद –
“जीवन में फैला अंधियारा सूने पन ने पैर पसारा ”
अख्तर जी –
” गोदी में खेलने के जमाने चले गए
बच्चे बड़े हुए तो कमाने चले गए”
डा.के.के.साहू –
कितने ही जीवन गँवा दिए न बूझ सके उद्देश्य जन्म का ”
श्रीमती ब्रजलता मिश्रा –
“फूलों में रुप रंग है ,पहले जैसी नहीं सुगंध ”
साकेत सुमन चतुर्वेदी –
“यदि अच्छा व्यवहार है ,और इरादा नेक ।
दुश्मन भी तब सामने , घुटने देगा टेक ।।
निहाल चन्द्र शिवहरे –
” सावन में होने लगी अपनों की मनुहार
सौंधी सौंधी गंध से ,उपजे मन में प्यार ”
डा.निधि अग्रवाल –
” एक कत्ल हुआ इधर कातिल कोई नहीं
खंजर है सबके हाथ में शामिल कोई नहीं ”
श्री बाला प्रसाद यादव “बालकवि” जी –
” बालम हमें मायकें जाने ,गोरी की तुम सुन लइयो ।
गोबर पानी दोंनी करकें, सबरौ दूद जमा दियो ।।”
धौलपुर से पधारी सपना शर्मा ने-
दिल के ख्वाबों पे घात बढ़ जाती
यूं तो उसकी बिसात बढ़ जाती
इसलिए मौन रह गई थी मैं
बात कहती तो बात बढ़ जाती
अंत में सभी का आभार डा.विक्रम अग्रवाल द्वारा ज्ञापित किया गया ।