झांसी। वरिष्ठ साहित्यकार संजीव ने कहा कि पुस्तकों में ज्ञान के अनेक कैप्सूल समाए रहते हैं। पुस्तकें ज्ञान श्री में वृद्धि का कारण बनती हैं। इसी नाते पुस्तकों को सदा से उर्जा का अजर स्रोत माना जाता है। वे बृहस्पतिवार को बंुदेलखंड विश्वविद्यालय में आयोजित राष्ट्रीय पुस्तक मेले के समापन समारोह में जुटे विद्यार्थियों, शिक्षकों और पुस्तक प्रेमियों को मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि लेखकों को भी ज्ञान निधि को समझने में जन्म जन्म लग जाते हैं। पुस्तक मेले के परिदृश्य का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि इमारत बता रहे हैं कि खंडहर शानदार थी। उन्होंने कहा कि पूरी दुनिया धरोहरों से पे्ररणा लेती है। स्वतंत्रता संग्राम के नायक वीर सावरकर के एक कथन का जिक्र करते हुए साहित्यकार संजीव ने कहा कि हमें किसी बात को आंख मूंदकर नहीं मानना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि उचित या अनुचित बताने का अधिकार प्रायोगिक विज्ञान को ही है।
समापन समारोह के विशिष्ट अतिथि एवं दैनिक जागरण के प्रबंध संपादक यशोवर्धन गुप्त ने अपनी बात दो पंक्तियों ‘किताबों की तरह अल्फाज हैं मुझमें, किताबों की तरह ही मैं बहुत खामोश रहता हूं’ से शुरू की। उन्होंने पुस्तक मेले की सफलता पर खुशी जताते हुए सबके सहयोग की सराहना की। उन्होंने उम्मीद जताई कि इस मेले से सभी को लाभ प्राप्त हुआ होगा। ‘कैसे कह दूं थकान बाकी है, मैं तो परिंदा हूं बहुत उड़ान बाकी है। फिर मिलेंगे, गर खुदा लाया’ इन पंक्तियों से उन्होंने अपनी बातों को रखने के क्रम का समापन किया।
समापन समारोह की अध्यक्षता कर रहे बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो सुरेंद्र दुबे ने कहा कि बुंदेलखंड साहित्य की त्रिवेणी महावरी प्रसाद द्विवेदी, मैथिलीशरण गुप्त और वृंदावन लाल वर्मा के लिए विख्यात है लेकिन क्षेत्र की दुकानों पर साहित्य की पर्याप्त पुस्तकें उपलब्ध नहीं हो पाती थीं। इसी कमी को दूर करने के लिए उन्होंने विद्यार्थियों और शोधार्थियों के हित में परिसर में पुस्तक मेले का आयोजन करने का फैसला लिया। उम्मीद है विद्यार्थियों ने अवसर का लाभ उठाया होगा। प्रो. दुबे ने कहा कि आज अधिकांश लोग महापुरुषों के विचारों से अवगत हुए बिना उनके समर्थन या विरोध में उठ खड़े होते हैं। उन्होंने कहा कि विद्या ही चेतना का संचार करती है। नारों से अलग हटकर जब हम पुस्तकों की ओर रुख करते हैं तो हमें असलियत का ज्ञान होता है। ज्ञान भी मनुष्य की जिज्ञासा का ही परिणाम है। कुलपति ने मेले में आए सभी प्रकाशकों के प्रति आभार जताते हुए उम्मीद जताई कि मेले का क्रम आगे भी जारी रहेगा। उन्होंने ‘ये पुस्तकों के मेले दुनिया में कम न होंगे पंक्तियों से अपनी बात पूरी की।
इस समारोह में डा. पुनीत बिसारिया की पुस्तक अनुवाद और हिंदी साहित्य का विमोचन अतिथियों ने किया। इससे पूर्व विद्यार्थियों अंजनी कुमार उपाध्याय और ममता शुक्ला ने पुस्तक मेले से विद्यार्थियों को मिले लाभों को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि इस मेले की वजह से सभी विद्यार्थी देश और दुनिया के लेखकों के विस्तृत रचना संसार से परिचित हुए।
शुरुआत में हिंदी विभागाध्यक्ष डा. मुन्ना तिवारी ने सभी अतिथियों का स्वागत किया। कार्यक्रम का संचालन डा. पुनीत बिसारिया ने किया। अंत में सभी के प्रति आभार ज्ञापन डा. अचला पाण्डेय ने ज्ञापित किया। समापन समारोह में प्रो वीपी खरे, कुलसचिव सीपी तिवारी, डा. डीके भट्ट, डा. श्रीहरि त्रिपाठी, डा. विनम्र सेन सिंह, नवीनचंद्र पटेल, उमेश शुक्ल, डा. विनीत श्रीवास्तव, डा. रवींद्र गुप्त, डा. सुनील त्रिवेदी, डा. जितेंद्र प्रताप, डा. अजय गुप्त, डा. स्वप्ना सक्सेना, सतीश साहनी, अभिषेक कुमार, राघवेंद्र दीक्षित, डा. विनय कुमार नरूला समेत अनेक लोग उपस्थित रहे।