झांसीः राजनीति मे चेहरा बन जाना काफी नहीं होता। जमीन पर पकड़ ना हो, तो जीत हाथ से आकर फिसल जाती है। ऐसा ही कुछ समाजवादी पार्टी के साथ हुआ। युवा टीम के जोश मे राजनैतिक अनुभव पूरी तरह नहीं घुल पाया। इसकी टीस रहेगी। प्रत्याशी राहुल सक्सेना को सबसे ज्यादा साथ प्रतिपाल सिंह दाउ की टीम का मिला। इसने परिणाम मे संख्या बल बढ़ाने मे काफी मदद की। हां, चन्द्रपाल यदि जरा पहले और जोर से दम लगाते, तो स्थिति पलटने मे और मदद मिल जाती?
स्माजवादी पार्टी पिछले कई दशको से झांसी मे जनाधार बनाने का काम कर रही है। आज तक इसमे सफलता नहीं मिल सकी। इसका एक कारण यह माना जाता है कि सपा की राजनीति केवल दो चेहरो के इर्दगिर्द घूमती रहती है। पहला राज्यसभा सांसद चन्द्र पाल सिंह यादव और दूसरा पूर्व विधायक दीप नारायण सिंह यादव।
दोनो चेहरे सपा की पहचान तो है, लेकिन आज तक झंासी मे पार्टी का जनाधार तैयार नहीं कर सके। दशको से राजनीति कर रहे दोनो चेहरे भी आज तक झांसी से अपनी किस्मत आजमाने का जोखिम नहीं उठा सके। ऐसे मे इस बार मेयर सीट पर युवा प्रत्याशी राहुल सक्सेना ने अपनी टीम के बल पर जोरदार प्रदर्शन किया।
यह बात अलग है कि सांसद चन्द्रपाल चुनाव मे प्रत्याशी के कंधे से कंधा मिलाकर कुछ कदम चले। बाकी नेता भी आये, लेकिन थोड़े समय के लिये। इसके अलावा महानगर की टीम ने जैसे समर्थने देने भर का एलान किया हो, लेकिन साथ आने मे परेशान दिखी?
युवा प्रतिपाल सिंह यादव, हैप्पी चावला, सैयद अली, अभिषेक आदि सैकड़ों युवाओ ने दिन रात एक कर सपा प्रत्याशी के जनमत को बढ़ाने मे अहम भूमिका निभायी।
जीत के मुहाने तक नहीं पहुंच सकी पार्टी के कुछ लोगो का तर्क अजीब लगा। उन्होने यह कहते हुये अपना बचाव किया कि पूरे प्रदेश मे जब सपा की सरकार थी, तब मेयर नहीं था। यदि हम नहीं जीत पाये, तो क्या हुआ?
यहां सवाल सपा के जीत हार का नहीं है। सवाल यह है कि क्यो सालो से पार्टी का चेहरा बने दिग्गज जनाधार तैयार करने मे सफल नहीं हो सके। क्यो दीप नारायण और चन्द्रपाल ने आज तक झांसी से चुनाव लड़ने की हिम्मत दिखायी? अब सवाल यह है कि क्या सपा झांसी मे अपने जनाधार की संख्या को बढ़ाने की दिशा मे चितन करेगी?