निवाड़ी विधानसभा से सपा किन कारणों से हारी?

झांसी। पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने छत्तीसगढ़ मध्य प्रदेश और राजस्थान में जबरदस्त तरीके से जीत हासिल की।

भारतीय जनता पार्टी की जीत की चर्चा सबसे ज्यादा मध्य प्रदेश की लेकर हो रही है, क्योंकि यहां पर माना जा रहा है था कि कांग्रेस बेहतर प्रदर्शन करेगी इसके अलावा समाजवादी पार्टी ने भी कई विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे ।

खास तौर से कुछ सीटों पर उसे जबरदस्त जीत हासिल होने की उम्मीद थी, इसमें एक सीट निवाड़ी विधानसभा की भी थी। इस सीट पर प्रचार के लिए आए पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने तो यहां तक कह दिया था कि इस बार मीरा दीपक यादव को विधानसभा जनता ने भेज दिया है।

जैसा कि मध्य प्रदेश चुनाव के नतीजे के बाद जो भारतीय जनता पार्टी को अप्रत्याशित जीत मिली उसमें कांग्रेस को पूरी तरह से विफल साबित हुई साथ में समाजवादी पार्टी के जिन सीटों पर सशक्त उम्मीदवार उतारे , वह भी अपना खेमा नहीं बचा सकी।

बात करते हैं निवाड़ी विधानसभा क्षेत्र की। इस सीट पर समाजवादी पार्टी ने श्रीमती मीरा दीपक यादव को एक बार फिर से पार्टी का प्रत्याशी बनाया था।

श्रीमती मीरा दीपक यादव इस सीट से चुनाव जीत भी चुकी हैं और उम्मीद की जा रही थी की दूसरी बार वह फिर से विधानसभा इस सीट से प्रतिनिधित्व करते हुए जाएगी ।

इसको लेकर उनके समर्थकों और पार्टी कार्यकर्ताओं में जबरदस्त जोश भी देखने को मिला था । मीरा दीपक यादव के चुनाव प्रचार की कमान पूर्व विधायक दीप नारायण सिंह यादव, जो की मीरा यादव के पति हैं, उन्होंने संभाल रखी थी।

इस बार के चुनावी माहौल मेंसमाजवादी पार्टी को पूरी उम्मीद थी कि यादव वोट उनके साथ जुड़ा रहेगा साथ ही दूसरे वर्गों के वोट, जो की सत्ता के नाराजगी के चलते उनके पाले में आ सकते हैं, पार्टी को मिल जाएंगे।

एक तरफ यह भी कहा जा रहा था कि चुनावी मैदान में भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी के प्रति लोगों की नाराजगी कांग्रेस प्रत्याशी का अचानक तय होना और बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी का सुर्खियों में ना आप आना समाजवादी पार्टी के लिए एक बड़ा प्लस पॉइंट था।

पूर्व विधायक दीप नारायण सिंह यादव ने इस सीट पर जीत के लिए हर प्रकार की रणनीति को अपनाया , जिसमें ग्रामीण इलाकों में मेल मुलाकात के साथ सपा की नीतियों और आने वाले समय में क्षेत्र के विकास में मीरा यादव का किस प्रकार से योगदान रहेगा , इसको लेकर खुलकर बात की और लोगों तक अपनी बात पहुंचाने का पूरा प्रयास किया।

पार्टी के प्रचार के दौरान जिस प्रकार से समाजवादी पार्टी में कार्यकर्ताओं और समर्थकों में जोश देखने को मिला उससे पार्टी प्रत्याशी ही नहीं उनके रणनीतिकार भी बेहद खुश नजर आ रहे थे उन्हें लग रहा था की जीत उनके हिस्से में ही आएगी , लेकिन इस जीत की खुशी और ओवर कॉन्फिडेंस ने कई सारे समीकरण अंदर ही अंदर बिगाड़ दिए , जिसकी दीप नारायण सिंह यादव को भी भनक नहीं लग सकी।

बेशक दीप नारायण सिंह यादव का इलाके में प्रभाव देखने को मिलता है और लोग उनके प्रति झुकाव भी रखते हैं ,लेकिन दीप नारायण सिंह यादव के साथ के रणनीतिकारों ने खासतौर से मीडिया मैनेजमेंट देखने वाले लोगों ने दीप नारायण को गुमराह ही नहीं किया बल्कि एक ऐसी छवि जो विरोधी दल ने समाजवादी पार्टी के लिए निर्मित की थी, उसको तोड़ने में कोई रुचि नहीं दिखाई।

पार्टी के मीडिया रणनीतिकारों ने मीडिया के कई लोगों को ब्लैकमेलर और कम पहुंच वाला बात कर न केवल अनदेखा करते रहे , बल्कि कई ऐसे जरूरतमंदों को भी दीप नारायण तक नहीं पहुंचने दिया , जो उनके लिए धरातल पर काम कर सकते थे।

वही दीप नारायण सिंह यादव खेमे को इस बात का अंदाजा नहीं था कि कांग्रेस जिस प्रत्याशी को मैदान में उतर रही है, वह पूरे जोश के साथ प्रचार कर देगा और वोटरों का रुझान उसकी तरफ हो जाएगा।

दीप नारायण सिंह यादव के रणनीतिकारों ने कई मुद्दों पर उन्हें अंधेरे में रखा , जिसमें सबसे बड़ा फैक्टर यह रहा कि वह यादव वर्ग वोटो के साथ दूसरे वोटो को अपने पाले में करने के लिए ठोस रणनीति नहीं बनाई गई।

यदि चुनाव परिणाम के नतीजे को देखें तो समाजवादी पार्टी को कांग्रेस प्रत्याशी से भी कम वोट मिले हैं । यानी उन्हें जो यादव वोट है वह भी पूरी तरह से नहीं मिल सका है। दूसरे वर्गों के वोटरों में सेंड लगाने में दीप नारायण सिंह की रणनीति बहुत उत्साह वाली थी , लेकिन उनके आसपास के लोग हर बार की तरह आखिरी समय में उन्हें ऐसे हालातो में फंसा देते हैं, जिसमें दीप नारायण सिंह यादव को निराशा और हर का सामना करना पड़ता है।

गरौठा के चुनाव में भी यही देखने को मिला था । चुनाव के अंतिम समय तक दीपनारायण सिंह यादव बहुत आगे चल रहे थे , लेकिन अंतिम समय में एक विवाद को उनके रणनीतिकारों ने जिस प्रकार से हवा देकर तूल दिया, उसने दीप नारायण को काफी नुकसान पहुंचा था और ऐसा ही अंतिम समय में निवाड़ी विधानसभा चुनाव में भी उनके अंदरूनी लोगों ने किया। यह रणनीतिकार लोगों तक यह बात नहीं पहुंचा सके कि दीप नारायण सिंह यादव की जीत सभी वर्गों की जीत होगी।

कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि दीप नारायण सिंह खेमे की ओर से चुनाव को जीतने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई , लेकिन उनके आसपास के जो लोग है , वह उन्हें आगे बढ़ाने में हमेशा रोक देते है ।

शायद अपने मिलनसार स्वभाव के चलते दीप नारायण सिंह यादव अपने अंदरुनी दुश्मनों को नहीं पहचान पाते हैं।

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