संदीप पौराणिक
भोपाल/झांसी, 2 जनवरी)| रोजगार के अभाव में किसान का बेटा आत्महत्या कर लेता है, कर्ज के चलते किसान खुदकुशी कर लेता है, फसल बर्बाद होने पर बुजुर्ग महिला किसान दुनिया छोड़ देती है, तो बेटी का इलाज कराते-कराते थक चुका बाप फांसी के फंदे पर झूल जाता है। यह कहानी है उस बुंदेलखंड की, जहां के लोग कभी हालात से लड़ने में पीछे नहीं रहे, मगर व्यवस्था की मार ऐसी कि उन्हें अब मृत्युराग ही रास आने लगा है।
सरकारें बदलती हैं, वादों के बाद दावों का खेल चलता है। हर पांच साल बाद फिर नए वादे, और दावों के सहारे सरकार ठहर जाती है। लोगों में उम्मीद जाग उठती है कि शायद अबकी बार सबकुछ ठीक हो जाए, लेकिन साल दर साल गुजर जाते हैं, हालात जस के तस रह जाते हैं। प्रकृति भी साथ नहीं देती। कभी अतिवर्षा, कभी अवर्षा, कभी ओले, कभी तुषारापात..रोजगार की टोल में पलायन और जो ठहर गए, उन्हें जीने से ज्यादा आसान लगता है, मौत को गले लगाना। दो राज्यों में बंटे बुंदेलखंड की यही हकीकत है।
मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के 13 जिलों को मिलाकर बने बुंदेलखंड में दोनों ही राज्यों की स्थिति कमोबेश एक सी है। मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ जिले के बाबाखेरा गांव के हजारी लाल आदिवासी (28) ने फांसी लगाकर शनिवार-रविवार की दरम्यानी रात जान दे दी। हजारी ने दुनिया छोड़ते हुए अपना दर्द दीवार पर उकेरा।
इसी जिले के पृथ्वीपुर थाने के बरगोला खिरक धनीराम कुशवाहा ने शुक्रवार (29 दिसंबर) को आत्महत्या कर ली। दरअसल, उसके परिवार के पास डेढ़ एकड़ जमीन है, सूखा के कारण खेती नहीं हो पाई। गांव में काम नहीं मिला इससे धनीराम काफी परेशान था। वह दिल्ली रोटी की तलाश में जाना चाहता था। जब उसे जीवन जीने का कोई रास्ता नहीं बचा तो, उसने आत्महत्या जैसा कदम उठा लिया।
झांसी के उल्दन थाना के बिजना गांव की बुजुर्ग किसान महिला धनकुंवर कुशवाहा (67) ने 25 दिसंबर को फांसी के फंदे से लटककर सिर्फ इसलिए जान दे दी, क्योंकि फसल चौपट हो गई थी। बैंक का कर्ज था, नाती की शादी सिर्फ इसलिए टूट गई थी कि उसके परिवार पर कर्ज था, फसल चौपट हो चुकी थी और दूसरा कोई कारोबार नहीं था। इससे धनकुंवर तनाव में थी और उसने जीवन लीला समाप्त कर ली।
बुंदेलखंड मध्य प्रदेश के छह जिले- छतरपुर, टीकमगढ़, पन्ना, दमोह, सागर व दतिया और उत्तर प्रदेश के सात जिलों- झांसी, ललितपुर, जालौन, हमीरपुर, बांदा, महोबा, कर्वी (चित्रकूट) को मिलाकर बनता है। सूखे के चलते यहां के खेत मैदान में बदल चुके हैं, वैसे तो यहां के मजदूर अमूमन हर साल दिल्ली, गुरुग्राम, गाजियाबाद, पंजाब, हरियाणा और जम्मू-कश्मीर तक काम की तलाश में जाते हैं। इस बार पलायन का औसत बीते वर्षो से कहीं ज्यादा है।
मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड पर नजर दौड़ाई जाए तो पता चलता है कि वर्ष 2017 में 760 किसान और खेतिहर मजदूरों ने आत्महत्या की है। विधानसभा में जुलाई, 2017 में सरकार ने नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह के सवाल के जवाब में बताया था कि राज्य में सात माह में खेती से जुड़े कुल 599 लोगों ने खुदकुशी की, जिनमें 46 बुंदेलखंड से थे। वहीं कांग्रेस विधायक रामनिवास के सवाल पर मिले जवाब के मुताबिक, 16 नवंबर, 2016 से फरवरी, 2017 के बीच 1761 लोगों ने आत्महत्या की थी, जिसमें खेती से जुड़े 287 लोग थे। इसमें बुंदेलखंड के 30 किसान थे।
बीते वर्ष में मध्य प्रदेश में किसान आत्महत्या का आंकड़ा देखें, तो पता चलता है कि इस वर्ष खेती से जुड़े 760 लोगों ने जान दी। इनमें से 81 सिर्फ बुंदेलखंड से हैं। वहीं दूसरी ओर उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड के सात जिलों का हाल और भी बुरा है।
तमाम मीडिया रिपोर्टो के आधार पर माना जा रहा है कि यहां सालभर में 266 किसान व खेतिहर मजदूरों ने खुदकुशी की। इनमें 184 ने फांसी लगाकर, 26 ने रेल से कटकर या कीटनाशक पीकर जान दी। वहीं शेष 56 में से कई तो ऐसे हैं, जिन्होंने आग लगाकर जान दे दी।
जल-जोड़ो अभियान के राष्ट्रीय संयोजक संजय सिंह ने आईएएनएस को बताया, “बुंदेलखंड में किसान की आर्थिक तौर पर कमर टूटती जा रही है। इसे सिर्फ विक्रम नाम के किसान की आत्महत्या से समझा जा सकता है। झांसी जिले के बबीना विकास खंड के खजुराहा बुजुर्ग के मजरा पथरवारा में 38 वर्षीय किसान विक्रम की बेटी दीक्षा (10) के दिल में सुराख था। वह इलाज के लिए झांसी से बेंगलुरू तक चक्कर लगाता रहा। इसके लिए साहूकार से कर्ज लिया, डेढ़ एकड़ जमीन में कुछ भी पैदावार न होने से वह टूट गया और खेत पर जाकर फांसी के फंदे से लटककर आत्महत्या कर ली।”
इस इलाके में लगातार तीसरे वर्ष सूखा पड़ा है। लोग गांव छोड़कर पलायन कर गए हैं और कई गांवों में सिर्फ बुजुर्ग और बच्चे ही बचे हैं। घरों में ताले लटके हुए हैं।
आम किसान यूनियन के संस्थापक सदस्य केदार सिरोही ने आईएएनएस से कहा, “सरकार किसानों की आमदनी दो गुना करने का वादा करती है, फसल के डेढ़ गुना दाम देने का ऐलान होता है, कर्ज माफी की बात कही जाती है, मगर जमीन पर कुछ नहीं होता। किसान की खेती की लागत बढ़ती जा रही है, वह हर बार नई संभावना के चलते कर्ज लेकर खेती करता है, मगर उसके हिस्से में घाटा आता है। पढ़ाई और स्वास्थ्य का इंतजाम भी उसके लिए आसान नहीं रहा। यही कारण है कि जब किसान हताश हो जाता है, तो आत्महत्या जैसा कदम उठाने को मजबूर होता है।”
मध्य प्रदेश की सरकार हो या उत्तर प्रदेश की, दोनों ही किसान की आत्महत्या में फसल नुकसान और कर्ज जैसी बातों को आसानी से नहीं स्वीकारती। मध्य प्रदेश के पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री गोपाल भार्गव का कहना है कि ‘किसान भावुक होता है और उसी के चलते वह आत्महत्या जैसा कदम उठाता है। फसल नुकसान और कर्ज जैसी बात बेमानी है।’
सरकारें चाहे जो दावे करें, मगर हकीकत तो यह है कि बुंदेलखंड से किसान सूखे के कारण पलायन कर रहे हैं, कर्ज बढ़ने और फसल चौपट होने से आत्महत्या जैसा कदम उठाने को मजबूर हैं। यह दोनों राज्यों की सरकारों के लिए चुनौती है कि वे पलायन को कैसे रोकें, क्षेत्र में ही रोजगार उपलब्ध कराएं और आत्महत्या जैसा कदम उठाने से किसानों को रोका जाए। मंत्री का बयान तो कोई उम्मीद नहीं जगाता, यह चुनावी साल है, इसलिए भरोसा है कि शायद किसी रहनुमा का दिल पसीज जाए। दुनिया तो उम्मीद पर ही टिकी है न!