मैकाले के मानस पुत्रों ने भारतीय संस्कृति के मान बिंदुओं को क्षत विक्षत किया

बीयू में आयोजित हिंदी संगोष्ठी में बोले
पूर्व मंत्री रवींद्र शुक्ल

झांसी। प्रदेश के पूर्व शिक्षा मंत्री डा. रवींद्र शुक्ल ने कहा कि लार्ड मैकाले के मानस पुत्रों ने भारतीय संस्कृति के मान बिंदुओं को क्षत विक्षत कर यहां के लोगों को जाति और वर्ण में बांटकर लड़ाने का काम किया। हमें अपनी संस्कृति की रक्षा के लिए सचेत रहकर काम करना है।
बीयू के हिंदी विभाग में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन सत्र में पूर्व मंत्री श्री शुक्ल ने कहा कि हमारे मस्तिष्क में गलत नैरेटिव भर दिए गए। स्वतंत्रता के बाद भारतीय लोगों को कुंए का मेढक बनाने का सुनियोजित प्रयास किया गया। उन्होंने कहा कि लार्ड मैकाले ने भारतीय शिक्षा व्यवस्था को पंगु बनाने का काम किया। उसने संस्कृत शिक्षा और गुरुकुल पर प्रतिबंध लगा दिया। उसने ऐसा करके भारतीयों को उनकी जड़ों से काट दिया। उन्होंने कहा कि बुंदेलखंड के साहित्य को यदि निकाल दिया जाए तो साहित्य ठन ठन गोपाल हो जाएगा। महाकवि भूषण की रचनाओं को पाठ्यक्रम से निकाले जाने की भी कड़ी आलोचना की। श्री शुक्ल ने श्रीरामचरित मानस के प्रचार और प्रसार में गोस्वामी तुलसीदास की भूमिका को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि यदि गोस्वामी जी न होते तो न जाने कितने लोग धर्मांतरण कर लेते। उन्होंने जगनिक, केशव,राय प्रवीण समेत विविध साहित्यकारों के साहित्य और उनके योगदान का जिक्र किया। उन्होंने बताया कि मैथिली शरण गुप्त जी के प्रेस में प्रूफ रीडिंग का काम लंबे समय तक किया। इससे साहित्य उन्होंने जीवित साहित्यकारों पर भी पीएचडी करने की व्यवस्था बनवाने का आग्रह किया। उन्होंने अपनी रचना शत्रुघ्न चरित्र का भी उल्लेख किया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो मुकेश पाण्डेय ने उम्मीद जताई कि यह संगोष्ठी विद्यार्थियों को अध्ययन और शोध के लिए नई दृष्टि देगी। उन्होंने कहा कि बुंदेलखंड विश्वविद्यालय शिक्षा के सभी विषयों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और शोध के लिए समुचित सुविधाएं मुहैया कराने को दृढ़ संकल्पित है। उन्होंने कहा कि साहित्य के क्षेत्र में बुंदेलखंड का अप्रतिम योगदान है। प्रो पाण्डेय ने मैथिली शरण गुप्त की रचनाओं की सर्व ग्राह्यता को भी रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति और उसकी बिरासत को सहेजने और विद्यार्थियों को प्रेरणा देने के लिए समुचित प्रबंध किए हैं। क्षेत्र की बिरासत को विस्तार देने के लिए पीपीपी माडल पर बीयू में एक संस्थान भी बनाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि हम भारतीय संस्कृति के गौरव को ऊंचाई पर ले जाने के लिए कृत संकल्पित हैं। उन्होंने उम्मीद जताई कि आगे भारत विश्व गुरु अवश्य बनेगा।

जेएनयू, दिल्ली के प्रो सुधीर प्रताप सिंह ने कहा कि प्राचीन साहित्य के औचित्य पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है। हमें यह समझने की जरूरत है कि हमारे प्राचीन साहित्य का महत्व क्या है। लोक साहित्य की अवधारणाओं को भी समझने की जरूरत है। ऐसा कहा जा रहा है कि हमें नई शिक्षा नीति को देखते हुए नए रचनाकारों को खोजने और उन्हें पढ़ने की जरूरत है। ऐसे में और भी सचेत रहने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि भारत भारती को नई दृष्टि से पढ़ने की जरूरत है। साथ ही मैथिली शरण गुप्त के साहित्य के नए आयाम खोजने की आवश्यकता है।

हिंदुस्तानी एकेडेमी, प्रयागराज, हिंदी विभाग, पंडित दीनदयाल उपाध्याय शोध पीठ, बीयू और राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त महाविद्यालय, चिरगांव के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे दिन के अंतिम और समापन सत्र में कला संकाय के अधिष्ठाता प्रो मुन्ना तिवारी ने पूर्व मंत्री रवींद्र शुक्ल और सभी अतिथियों का गर्मजोशी से स्वागत किया। उन्होंने श्री शुक्ल के साहित्यिक योगदान का भी जिक्र किया। संचालन डा अचला पाण्डेय ने किया। डा श्रीहरि त्रिपाठी ने सभी के प्रति आभार जताया।
प्रो सत्येंद्र दुबे ने राष्ट्रीय संगोष्ठी को अकादमिक यज्ञ करार दिया। उन्होंने कहा कि यहां बहुत सार्थक चर्चा हुई। संगोष्ठी के बेहतरीन आयोजन के लिए हिंदी विभाग को सराहा। उन्होंने हिंदी साहित्य की पाण्डुलिपियों को सहेजने की सुंदर व्यवस्था की सराहना भी की। प्रो जेवी पाण्डेय ने राष्ट्रीय संगोष्ठी को सुंदर अनुष्ठान करार दिया। उन्होंने बताया कि मुख की पवित्रता राम नाम से, हृदय की पवित्रता ज्ञान से, हाथ की पवित्रता दान से और पैरों की पवित्रता तीर्थ धाम गमन से होता है। इन चारों फलों की प्राप्ति इस राष्ट्रीय संगोष्ठी में हो गई। बुंदेलखंड नहीं होता तो श्रीराम चरित मानस, केशव चंद्रिका, साकेत जैसी बेहतरीन रचनाएं हमें नहीं मिलती।

इस कार्यक्रम में प्रो मुन्ना तिवारी को श्रीराम रत्न सम्मान से नवाजा गया। प्रो जेवी पाण्डेय ने सभी अतिथियों को सुंदरकांड की प्रति देकर सम्मानित किया गया। पत्रकार मनमोहन मनु ने भी राष्ट्रीय संगोष्ठी की व्यवस्थाओं को सराहा। सभी अतिथियों को पुष्प गुच्छ और स्मृति चिह्न देकर सम्मानित किया गया। इस कार्यक्रम में प्रो रक्ताभ भास्कर, प्रो पुनीत बिसारिया, प्रो रचना विमल, डा अचला पाण्डेय, डा जय सिंह, उमेश शुक्ल, डा सुनीता वर्मा, डा सुधा दीक्षित, डा प्रेमलता, डा नवीन पटेल, डा पुनीत श्रीवास्तव, डा अजय कुमार गुप्त, डा कौशल त्रिपाठी, डा राघवेन्द्र दीक्षित, डा शैलेंद्र तिवारी, डा अभिषेक कुमार, अतीत विजय, आकांक्षा सिंह समेत अनेक लोग उपस्थित रहे। इस कार्यक्रम में आए सभी अतिथियों को प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया। बाद में हिंदी विभाग के विद्यार्थियों ने रंगारंग कार्यक्रम भी पेश किया।

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