लखनउ 25 मार्चः राजनीति मे कोई माहिर होता है, तो कोई गुर सीखने के पथ पर चल रहा होता है। इस बात के संकेत मायावती ने बीते रोज अपने एक बयान मे दिया। सपा-बसपा की ताजा-ताजा दोस्ती से उपजी संभावनाओ के दफन होने से पहले मायावती ने साफ कर दिया कि यह दोस्ती अभी और परवान चढ़ेगी। हां, अब गठबंधन को लीड करने की बारी मायावती की होगी?
दरअसल, यूपी के उपचुनाव से पहले बसपा ने सपा के साथ मिलकर दोस्ताना रिश्ते की नयी पहल की थी। राजनीति के पुराने पथ पर लगे दुश्मनी के दाग को धोने और नये आयाम बनाने की नीति से निकले इस रास्ते को फिलहाल भाजपा ने रोकने का काम कर दिया।
राज्यसभा चुनाव मे झटका देकर यह दिखाया कि दोस्ती की राह मे सबसे बड़ी बाधा वो ही है। पर, मायावती कहां मानने वाली। प्रेस से बात मे माया ने खुद कहा कि बीजेपी को ज्यादा खुश होने की जरूरत नहीं। वो यह ना समझे कि गुस्से वाली मायावती राज्यसभा की हार से गठबंधन को तोड़ देगी।
यानि माया को दिख रहा है कि आने वाले दिनो मे यह दोस्ती काफी लाभ देगी, सो उन्हांेने अपने अंदाज को बदलने मे तनिक देर नहीं लगायी। इसके साथ ही कह दिया कि अभी अखिलेश तजुर्बादार नहीं है।
ऐसा भी नहीं कि मायावती को अपने इकलौते उम्मीदवार की हार का मलाल ना हो, मलाल तो दिल की गहराइयों तक है. लेकिन समाजवादी पार्टी से रिश्ते के खातिर मायावती ने दिल के दर्द को फिलहाल दफन कर देने को तैयार हो गई है.
साफ है कि माया अब गठबंधन को लीड करने के मूड मे है। आम चुनाव से पहले गठबंधन की शक्ल को तय करने मे मायावती अहम भूमिका निभायेगी। यहां सवाल यह है कि क्या यह सपा को भी स्वीकार होगा? यदि सपा ऐसा नहीं करती है, तो दोस्ती की राह मे दिक्कत आने की संभावना बढ़ सकती हैं।
राजनैतिक पंडित मान रहे है कि बसपा ने सपा से दोस्ती करने के दौरान पहले पहल करने का अधिकार सपा को देकर अपनी रणनीति को जाहिर कर दिया था। माया जानती है कि उनके पास परंपरागत वोट कितनी मजबूती से पार्टी के साथ है, बस जोड़तोड़ की राजनीति को फिट करने की जरूरत है। दोस्ती के पहला परिणाम सामने आने के बाद माया उसे अपने नजरिये से पुख्ता करने की योजना बनाने मे जुट गयी हैं।