उमा भारती का वापसी का मन, राह में कांटे, जीत के लिए बैठा रही हैं गणित

झांसी। वर्तमान सांसद और केंद्रीय मंत्री उमा भारती भले ही यह ऐलान कर चुकी है कि वह लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगी, लेकिन पार्टी स्तर पर कोई फैसला नहीं लिया गया है। यही कारण है कि वह एक बार फिर से झांसी ललितपुर संसदीय सीट कर चुनावी मैदान में उतरने को तैयार हैं । मुश्किल यह है कि रास्ता बहुत कठिन हो चुका है । ऐसे में जीत के लिए उमा भारती के सामने नए सिरे से राजनीतिक समीकरण बैठाना एक चुनौती बन गया है।

झांसी ललितपुर संसदीय सीट पर समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के बीच गठबंधन होने से यह लगभग तय है कि यह सीट सपा के खाते में जाएगी। ऐसे हालातों में लोकसभा चुनाव में एक बार फिर से कांग्रेस, भाजपा और गठबंधन आमने सामने होगा ।

यानी मुकाबला त्रिकोणीय होगा। बहुत संभव है कि 2014 लोकसभा चुनाव की तरह इस बार भी वही प्रत्याशी मैदान में दिखे। भाजपा यदि उमा भारती पर दांव लगाती है, तो सपा गठबंधन में प्रबल दावेदार के रूप में चंद्रपाल सिंह यादव मैदान में आने को तैयार हैं। बहुत संभव है कि कांग्रेसियों से प्रदीप जैन आदित्य मैदान में दिखे। यानी 2019 के चुनाव में 2014 के चुनाव के चेहरे रिपीट हो सकते हैं।

यदि लोकसभा चुनाव 2014 की तरह चंद्रपाल सिंह यादव उमा भारती और प्रदीप जैन आदित्य के बीच मुकाबला होता है तो सबसे कठिन रहा है उमा भारती की होगी साल में जिस तरह से उमा भारती ने अपने संसदीय क्षेत्र को कई मुद्दों पर जनता और संगठनों की नाराजगी मोल ली है उसकी का लाल कहीं नजर नहीं आ रही है मान रहे हैं कि भले ही लोकसभा चुनाव राष्ट्रीय प्रदेश में लड़ा जाता हूं लेकिन स्थानीय स्तर पर पिछले चुनाव में किए गए वादे उमा भारती के लिए बड़ा संकट साबित हो सकते हैं।

उमा भारती के वादों में सबसे अहम बुंदेलखंड राज्य का मुद्दा है ।
वर्तमान हालातों में यदि उमा भारती राज्य के निर्माण को लेकर कोई बात करती है, तो मध्य प्रदेश का एक पेच फस सकता है ।
राजनीतिक जानकार मान रहे हैं कि उमा भारती इस पेज को हथियार बनाकर जनता के सामने बुंदेलखंड राज्य बनाने का दावा कर सकती हैं । क्योंकि उन्हें पता है कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार होने से यह बात पूरी होना मुश्किल है, ऐसे में गेंद को आसानी से विपक्ष के पाले में डाल कर जनता की सहानुभूति बटोरने का प्रयास किया जा सकता है।

जान कर बता रहे हैं कि पार्टी में उमा भारती से साफ कर दिया है कि वह अपने संसदीय क्षेत्र को संभाले पहले कहा जा रहा था कि उमा भारती राज्यसभा में जाने की इच्छुक हैं। इसलिए उन्होंने लोकसभा चुनाव लड़ने से मना कर दिया है, लेकिन सूत्र बताते हैं कि उन्हें राज्यसभा भेजने के लिए पार्टी से मना कर दिया गया है । ऐसे हालातों में उमा भारती एक बार फिर से वापसी करते हुए अपने संसदीय क्षेत्र में सक्रिय हो गई हैं।

उमा भारती अपनी फील्ड को जमाने के लिए डिफेंस कॉरिडोर जैसी सौगात को बुंदेलखंड राज्य की मांग पर हावी करने के लिए रणनीति तैयार कर रही हैं । इसके लिए काम भी शुरू हो गया है।

बरहाल उमा भारती क्या दोबारा चुनावी मैदान में आएंगी या नहीं यह तो अभी साफ नहीं है, लेकिन इतना तो संकेत मिलना शुरू हो गया है कि उमा भारती संसदीय क्षेत्र को मैनेज करने के लिए अपनी रणनीति पर अमल करने की तैयारी में नजर आने लगी है। यह बड़ा सवाल यह है कि क्या उमा भारती किसी तरह से व्यवस्थाओं को तो मैंनेज कर सकती है, लेकिन जनता को मैनेज कर पाएगी?

पार्टी स्तर पर भी बीजेपी के लोग उमा भारती के तेवर और कार्यशैलीसे खुश नहीं है । वह खुलकर तो नहीं बोल रहे, लेकिन दबी आवाज में इतना जरूर कह रहे हैं कि अब दीदी के लिए जीत आसान नहीं है।

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