भोपाल गैस त्रासदी : बच्चों को हार नामंजूर!

संदीप पौराणिक
भोपाल,  )| हैदर अली (सात) भले अपने आप में खोया रहता है, मगर उसका मुस्कुराता चेहरा इस बात की गवाही दे देता है कि वह जीत कर ही रहेगा। वह ऑटिज्म की बीमारी से पीड़ित है। इस बीमारी के कारण व्यक्ति अपने आप में खोया रहता है। लेकिन अली का अंदाज धीरे-धीरे बदल रहा है, अपनी बात कह लेता है और बहुत कुछ समझने भी लगा है।

हैदर जन्म से ऑटिज्म नामक बीमारी से ग्रसित है। उसे यह दंश दिया है, अब से 33 साल (दो-तीन दिसंबर, 1984) पहले हुए यूनियन कार्बाइड के गैस हादसे ने। हैदर की मां शाजिया अली बताती हैं, “हैदर पैदा होने के बाद से ही अन्य बच्चों जैसा नहीं था, समय गुजरा तो समझ में आया कि उसे कोई भीतरी बीमारी है। तमाम कोशिश की, मगर बात नहीं बनी। चिंगारी ट्रस्ट द्वारा संचालित संस्थान में आने पर हैदर में बदलाव आया है, अब लगता है कि वह आने वाले दिनों में सामान्य हो सकता है।”

चिंगारी ट्रस्ट दो महिलाओं चंपा देवी शुक्ला और रशीदा बी द्वारा गैस पीड़ित परिवारों के दिव्यांग बच्चों के लिए चलाया जाने वाला एक संस्थान है, जहां इन बच्चों को सभी तरह की थेरेपी दी जाती हैं। वे बताती हैं कि गैस हादसे का असर अब भी यहां है। तीसरी पीढ़ी तक दिव्यांग पैदा हो रहे हैं।

ट्रस्ट से जुड़े डॉ. संजय गौर बताते हैं, “हैदर लगभग तीन साल से संस्थान में आ रहा है। उसे स्पीच थैरेपी के साथ अन्य थेरेपी दी जा रही है, जिससे उसमें बदलाव आ रहा है। ऑटिज्म वह बीमारी है, जिसमें बच्चा अपने आप में खोया रहता है, उससे वह बाहर नहीं निकल पाता। हैदर धीरे-धीरे बदल रहा है और उम्मीद है कि उसकी स्थिति में और सुधार आएगा।”

हैदर अकेला ऐसा बच्चा नहीं है, जो चिंगारी ट्रस्ट में आकर नई जिंदगी पाने की जद्दोजहद कर रहा है। यहां कुछ माह से लेकर 12 साल तक के बच्चे अलग-अलग कमरों में थेरेपी कराते नजर आ जाते हैं। बच्चों के साथ उनकी माताएं भी वहां मौजूद रहती हैं, ताकि वे भी घर में वक्त मिलने पर उसे दोहरा सकें।

ईसा अंसारी (13) पहले तो खड़ी भी नहीं हो पाती थी। उसकी मां जेनम अंसारी के लिए यह चिंता का विषय था कि बेटी का जीवन कैसे चलेगा। जेनम बताती हैं, “ईसा खड़ा होते ही गिर जाती थी, बोल पाना भी उसके लिए आसान नहीं था। चिंगारी में आकर उसमें बड़ा बदलाव आया है। अब वह चल तो लेती ही है, साथ में अपनी बात कह भी देती है। अब लगने लगा है कि ईसा अन्य बच्चियों जैसी ही हो जाएगी।”

संस्थान के डॉ ऋषि शुक्ला बताते हैं, “यहां आने वाले बच्चों पर फिजियोथेरेपी का यह असर हुआ है कि एक-तिहाई बच्चे जो बैठ भी नहीं पाते थे, वे अब आसानी से बैठने लगे हैं। इसके अलावा चलने में अक्षम बच्चे बगैर किसी मदद के चलने लगे हैं।”

चिंगारी में 900 बच्चे पंजीकृत हैं, मगर जगह की कमी के कारण 193 बच्चे ही यहां आ पाते हैं। संस्थान के वाहन बच्चों को लाने और घर तक छोड़ने जाते हैं। इतना ही नहीं उन्हें भोजन भी यहीं मिलता है। सबकुछ मुफ्त है।

डॉ. जेबा अहमद के अनुसार, यहां ऑटिज्म, हायर एक्टिव, सेसरी डिसऑर्डर, डेवलपमेंट डिले से पीड़ित बच्चे आते हैं। इन बच्चों में काफी बदलाव आया है। यह संभव हो रहा है, चिकित्सकों की मेहनत, बच्चों के माता-पिता के सहयोग से।

चिंगारी ट्रस्ट तक अपने बच्चों के साथ पहुंचे माता-पिता के चेहरों पर वह चिंता नजर नहीं आती, जो सामान्य तौर पर लोगों में हताशा घर कर जाती है। बच्चे तो बाजी जीतने में लगे ही हैं, और उनका साथ माता-पिता भी दे रहे हैं। इससे लगता है कि देर भले लगे, मगर जीतेंगे बच्चे ही।

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