संदीप पौराणिक
खजुराहो (मध्य प्रदेश) 5 दिसंबर। सूखा, पलायन और बेरोजगारी बुंदेलखंड की आज की पहचान है। यहां के लोग हर हाल में इस कलंक से छुटकारा पाना चाहते हैं। मध्य प्रदेश की पर्यटन नगरी खजुराहो में चले दो दिवसीय राष्ट्रीय जल सम्मेलन में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की तालाबों को अतिक्रमण मुक्त करने की घोषणा और सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे तथा जलपुरुष राजेंद्र सिंह की मौजूदगी में समस्या निदान के लिए बनी रणनीति ने यहां के लोगों के मन में एक बार फिर आस जगा दी है कि अब उनके इलाके के हालात बदल सकते हैं।
खजुराहो सम्मेलन में इस क्षेत्र के हालात पर विभिन्न हिस्सों से आए विषेषज्ञों ने राय जाहिर की। राजेंद्र सिंह ने मुख्यमंत्री की मौजूदगी में कहा कि यह इलाका कभी पानीदार हुआ करता था, मगर अब ऐसा नहीं रहा, क्योंकि तालाबों और अन्य जल संरचनाएं जो चंदेल कालीन हैं, उन पर अतिक्रमण हो चुका है, पानी पहुंचने के रास्ते बंद हो गए हैं। जब तक इन जल संरचनाओं का सीमांकन, चिन्हीकरण करके अतिक्रमण मुक्त नहीं किया जाता तब तक इस इलाके के जल संकट को खत्म करना आसान नहीं होगा।
मुख्यमंत्री चौहान ने इस मौके पर राजेंद्र सिंह की मांग पर अफसरों को निर्देश दिया कि सभी तालाबों का सीमांकन, चिन्हीकरण किया जाए और अतिक्रमण हटाया जाए। इसके लिए अभियान चलाया जाए।
यहां बताना लाजिमी होगा कि बुंदेलखंड, वह इलाका है, जिसमें कुल 13 जिले आते हैं। उत्तर प्रदेश के सात जिलों झांसी, ललितपुर, जालौन, हमीरपुर, बांदा, महोबा, चित्रकूट और मध्य प्रदेश के छह जिले छतरपुर, टीकमगढ़, पन्ना, दमोह, सागर व दतिया आते हैं। इन सभी 13 जिलों की कमोवेश एक सी हालत है।
सामाजिक कार्यकर्ता पवन राजावत कहते हैं, “बुंदेलखंड में लगभग 4000 जल संरचनाएं हुआ करती थीं। बारिश का पानी इन जल संरचनाओं में पहुंचने से जल संरचनाओं का जल स्तर कभी भी नीचे नहीं जाता था, मगर वक्त के साथ अधिकांश जल संरचनाएं अपना अस्तित्व खो चुकीं और जल संग्रहण क्षमता बढ़ाने के प्रयास नहीं हुए। लिहाजा कभी पानीदार रहा इलाका सूखा ग्रस्त हो गया। मुख्यमंत्री चौहान की घोषणानुसार इन संरचनाओं को फिर दुरुस्त किया जाता है, तो इस इलाके की तस्वीर बदल सकती है।”
टीकमगढ़ से इस सम्मेलन में हिस्सा लेने आई रामवती कहती हैं, “मुख्यमंत्री ने जो कहा है अगर वैसा हो जाए तो फिर क्यों खेत सूखे रहेंगे, फिर हमें पलायन नहीं करना होगा। इससे हमारा जीवन खुशहाल हो सकता है। साथ में यह भी लगता है कि क्या ऐसा हो पाएगा?”
वरिष्ठ पत्रकार रवींद्र व्यास का कहना है, “बुंदेलखंड की स्थिति को बदलने के लिए संप्रग सरकार में 7200 करोड़ का विशेष पैकेज आया था, उसका क्या हाल हुआ, यह किसी से छुपा नहीं है। न तो लोगों को रोजगार मिला और न ही ऐसी जल संरचनाएं बन पाईं जो लंबे समय तक इस इलाके के लिए लाभदायक होतीं। वास्तव में इस पैकेज से क्षेत्र को तो कोई लाभ नहीं मिला, मगर अफसरों के वारे-न्यारे जरूर हो गए। अब यह तो समय ही बताएगा कि मुख्यमंत्री चौहान की घोषणा और निर्देशों पर कितना अमल होता है।”
जल सम्मेलन में हुई चर्चा और जल स्रोतों की स्थिति पर जताई गई चिंता के साथ ही मुख्यमंत्री की घोषणा ने यहां के लोगों के मन में एक बात तो जगा दी है कि तालाब सुधारने की मंशा सरकार की है। साथ ही कई आशंकाएं भी हैं। उन्हें लगता है कि क्या प्रशासन इन तालाबों से अतिक्रमण हटाने का साहस जुटा पाएगा। जब अतिक्रमण विहीन तालाबों के ही रख-रखाव पर प्रशासन मौन है, तो वह कितनी ईमानदार पहल मुख्यमंत्री की घोषणा पर करेगा, यह वक्त बताएगा।