झांसी मे व्यापारियो के बीच यह कैसी स्पर्धा?

झांसीः नगर मे जैम की समस्या का नाम आते ही व्यापारी नेताओ  के मुंह मे पानी आने लगता है। जाहिर है कि निदान के लिये प्रशासन बुलाएगा, फाटो खिंचेगी और अखबार मे सुर्खियां बनेगी। जैम समाप्त हो ना हो, अपना काम बन जाएगा। ऐसी ही मानसिकता के शिकार हो रहे नगर के कुछ व्यापारियो  ने आपसी तनातनी को अब सोशल मीडिया पर शेयर कर दिया। यानि बात निकली, तो दूर तक जानी चाहिये। क्या यह सही है?

बुन्देली माटी का यह दुर्भाग्य रहा कि यहां व्यापारी और राजनैतिक नेताओ  के अंदर सोच की बहुत कमी रही। नये मुददो की तलाश को लेकर विचार करने की पहल कम ही लोग करते है। जो करते हैं, उनकी टांग खिंचाई को दूसरे नेता तैयार बैठे।

जाहिर है कि जब अपने की अपनो  की टांग खींचेगे, तो प्रशासन और नेता मजा लेगे। ऐसा ही वाकया मानिक चैक की अतिक्रमण और यातायात की समस्या को लेकर हो रहा है।

विनोद सब्बरवाल युवा व्यापारी है। विनोद का दर्द यह है कि मानिक चैक मे जैम के चलते स्कूली बच्चो  सहित सभी लोगो  को परेशानी का सामना करना पड़ता है। वो पिछले एक साल से अधिक समय से यातायात व्यवयस्था को सुचारू बनाने के लिये प्रशासनिक अधिकारियो  से लेकर मीडिया तक मे अपनी बात रख रहे हैं। वहीं दूसरी ओर अशोक जैन जैसी सीनियर व्यापारी नेता इस मुददे पर अपना अलग अंदाज मे पक्ष रख रहे हैं। दोनो  के बीच व्यापारिक राजनीति को लेकर जमीन आसमान का अंतर है। अशोक व्यापारी राजनीति मे अपनी जुगाड़ नीति से कद बना चुके हैं, तो विनोद का व्यापारी राजनीति से कोई नाता नहीं है।

जाहिर है कि व्यापारी राजनीति से जुड़े मुददे पर कोई मंच सजे, तो बड़े लोग पूरा क्रेडिट लेने की फिराक मे रहेगे। शायद मानिक चैक मे अतिक्रमण को लेकर बीते रोज पुलिस प्रशासन की बैठक मे ऐसा ही कुछ हुआ। आरोप के बीच सोशल मीडिया पर जारी दोनो  पक्ष के बयान बता रहे हैं कि मुददा यातायात से ज्यादा अपने कद का हो गया।

कहते है कि बड़ी मछली ही अक्सर छोटी मछली का शिकार करती है। विनोद चिल्लाए, तो कहा गया कि आपके इलाके के अध्यक्ष को बोलना चाहिये। व्यापारियो  का उत्पीड़न मैं बर्दाश्त नहीं करूंगा। अरे भाई विनोद जैसी छोटी हस्ती क्यो  व्यापारियो  का उत्पीड़न करेगी? अशोक जैन के इस तर्क मे इतना दम नहीं रहा, इसलिये उन्हे कम ही लोगो  का समर्थन मिल सका। वैसे झांसी की जनता इतना तो जानती ही है कि अशोक जैन व्यापारिक राजनीति के लिये कभी भी दल बदल लेते है, सो, यातायात के मुददे पर यदि हित नहीं सध रहा होगा, तो बहस होना संभव है?

बरहाल, व्यापारियो  की इस तरह से लड़ने की मंशा से प्रशासन को लापरवाही करने का पूरा मौका मिल जाता। लिहाजा दोनो पक्ष यह सोचे की हित जनता का बड़ा है या अपना?

 

 

 

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