नई दिल्ली 13 मार्चः सटीक निशाना और ठोस रणनीति की पृष्ठभूमि बनाने के बाद राजनैतिक मैदान मे उतर रही सोनिया गांधी क्या 2019 के चुनाव मे बीजेपी के चेहरे नरेन्द्र मोदी को अपने चक्रव्यूह मे फंसाकर मात दे सकेगी? लाख टके की बात तो यही है।
कांग्रेस अध्यक्ष पद छोड़ने के बाद आज तक चैनल के कार्यक्रम मे सोनिया गांधी ने खुद कहा था कि वो अब चिंतामुक्त महसूस कर रही है। यानि राजनैतिक तौर पर सोनिया गांधी पिछले दस सालो मे यूपीए सरकार को एक मंच पर बनाये रखने के अपने अंदाज को अब नये सिरे से अंजाम देने की तैयारी मे है?
सोनिया का डिनर आयोजन इन दिनो सभी की निगाह मे है। बीजेपी मे जिस तरह से कांग्रेस सहित अन्य दल के नेता शामिल होने के लिये शर्त को परे रख अपने को भगवा चोला मे रंग रहे हैं, उससे सवाल उठ रहा है कि क्या सोनिया के हाथ इतने मजबूत है कि वो दूसरे राजनेताओ को यह एहसास करा सकेगी कि कांग्रेस का साथ मजबूत ही नहीं, भरोसे वाला भी है?
कोशिश 2019 के लिए विपक्ष को लामबंद करने की है. इस डिनर से पहले बैठकों में आने वाले 18 दल के नेता या उनके नुमाइंदे शामिल होंगे, लेकिन सपा प्रमुख अखिलेश यादव, बसपा सुप्रीमो मायावती, तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी और एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने अब तक शामिल होने पर सहमति नहीं दी है.
हालांकि, सोनिया के मैनेजर अभी भी कोशिश में हैं कि कम से कम पवार और ममता ही शिरकत करें, लेकिन अभी तक उन्हें सफलता नहीं मिली है. हालांकि इन सभी ने अपने नुमाइंदे भेजने पर सहमति दे दी है.
एक तीर से दो निशाना
इस डिनर डिप्लोमेसी के जरिये सोनिया एक तीर से दो निशाना साधना चाहती हैं. विपक्षी नेताओं को डिनर पर बुलाकर वह ये साबित करना चाहती हैं कि मोदी के विकल्प के तौर पर बनने वाले गठजोड़ का नेतृत्व कांग्रेस के पास ही होगा.
एकजुट होना समय की मांग
सोनिया गांधी का एक बड़ा संदेश ये है कि वह ममता और पवार की तीसरे मोर्चे की अगुवाई की कोशिश को तवज्जो नहीं देतीं. ऐसे में खुद ममता और शरद पवार का डिनर से अब तक दूर रहना कांग्रेस के लिए मुश्किलें खड़ी करने वाला है. हालांकि कांग्रेस मानती है कि मोदी के खिलाफ सबको एकजुट होना ही पड़ेगा और ये पूरे विपक्ष की ज़िम्मेदारी है. इस मुद्दे पर कांग्रेस नेता प्रमोद तिवारी ने कहा, वक़्त का तकाजा है कि सभी साथ आएं, आज तीसरे-चौथे मोर्चे के कोई मतलब नहीं हैं.