झांसीः सत्ता का नशा ही अलग होता है। जनता की याद नहीं आती। विपक्ष में आ जाओ, तो दूसरों की कमियां और जनता नजर आने लगती। जब तक जेब में पैसा और पद रहा सपा प्रमुख अखिलेश सिंह यादव के सिपाही लापता बने रहे। अब उन्हे अपनी सक्रियता दिखाने की याद आ गयी। सो, आज सभी लोग बस स्टैंड पर बने कुंजवाटिका में पहुच गये। जो वास्तव में सक्रिय हैं, उन्होने तंज भी कसा। चापलूसी में घिरे रहे पार्टी के नेता यदि समय रहते जाग जाते, तो यह दिन नहीं देखना पड़ते।
इसमंे कोई दो राय नहीं कि अखिलेश यादव ने अपनी पूरी ताकत के साथ सरकार चलायी। राजनैतिक हालातांे के साथ होने के बाद भी उन्हे परिवारिक राजनैतिक हालातांे ने आखिरी समय में तोड़ दिया। इससे इतर अखिलेश यादव ने अपनी नीतियांे के दम पर 100 नंबर, एंबुलंेस सेवा, लैपटॉप आदि योजनाआंे को धरातल पर उतारा। अखिलेश यादव भी मुलायम सिंह यादव की तरह चिल्लाते रहे कि मेरे सिपाहियो जनता को बताओ। जनता से मिलो। अखिलेश की किसी ने नहीं सुनी। सपाई सत्ता में मस्त रहे और विपक्ष ने सपाईयांे के दबंग होने का दम जनता के बीच उजागर कर दिया। प्रदेश मंे खनन को लेकर छिड़े जंग में बुन्देलखण्ड केन्द्र रहा। यहां गायत्री प्रजापति जैसे नेता अपना आॅिफस संचालित करते रहे। विधायक रवि शर्मा ने यह मुददा विधानसभा में उठाया। आवाज जब अखिलेश के कानांे तक पहुंची, तो उन्हांेने न केवली गायत्री प्रजापति के पर कतर दिये बल्कि उन्हे कहीं का नहीं छोड़ा। हालांकि यह सब करने में बहुत देर हो गयी थी। यहां सवाल अखिलेश की करनी का नहीं है। बुन्देलखण्ड मंे जनाधार को तरस रही सपा कभी अपने कददावर नेताओं का तोड़ नहीं ढूंढ पायी। पार्टी के चेहरे के रूप में राज्यसभा सांसद चन्द्रपाल सिंह यादव व पूर्व विधायक दीप नारायण सिंह यादव के इर्दगिर्द पार्टी घूमती रही। सत्ता के समय चन्द्रपाल व दीप नारायण के बंगले गुलजार रहे। इन नेताआंे ने दूसरी पक्ति के नेताआंे को पनपने नहीं दिया। एमएलसी श्रीमती रमा निरंजन के पति आर पी निरंजन एक अपवाद है, जो अखिलेश की नीतियांे के सहारे जगह बनाने मंे कामयाब रहे।
पिछले विधानसभा में मिली हार की कसक अखिलेश यादव के दिल में है, लेकिन बुन्देलखण्ड में सपाई कोमा की स्थिति में रहे। उन्हे याद ही नहीं आया कि हम जनता की सेवा के लिये हैं। चंद सपाईयांे को छोड़ दिया जाए, तो झांसी व आसपास के इलाकांे में अखिलेश यादव की नैया पार लगाने वाला नेता नजर नहीं आता। हां, अब एक अच्छी बात हुयी है। सपाईयांे को यह याद आया है कि वो सक्रिय सदस्य है। शायद इसीलिये जिलाध्यक्ष छत्रपाल सिंह यादव ने सक्रिय लोगांे का जमावड़ा बुला लिया। मंशा यह है कि इस बहाने गिले शिकवे दूर हांेगे और गलतियांे पर पश्चाताप करेगे। वैसे छत्रपाल सिंह यादव के जिलाध्यक्ष बनने के बाद सपा में पूरी तरह से गतिमान होने वाली बात तो नजर नहीं आयी, लेकिन कुछ न होने से कुछ होने वाली स्थिति जरूर बनी। आज के सम्मेलन मेे यही दिखा। भीड़ भरपूर रही, लेकिन दिशा और मुददांे की तलाश अधूरी ही नजर आयी। केवल सत्ता के लिये संघर्ष का विगुल फूंका गया। सरकार को कोसा गया और कुछ नहीं। जनता के दुःखदर्द के लिये सरकार को कठघरे मंे खड़ा करने वाले सपाई यह नहीं बता सके कि वो क्या करंेगे? शायद इस बात का इंतजार अखिलेश यादव को भी है।