*कोंच (जालौन)।* सरकार किसानों की हितैषी होने के कितने भी दावे करती रहे, जमीनी हकीकत यह है कि सबसे ज्यादा किसान ही परेशान है। किसानों की मटर की फसल में उजाड़ होने के बाद अब समय केवल गेहूं की बुआई करने का बचा है लेकिन कृषि बीज भंडारों पर बीज नहीं होने से किसान परेशान हैं और इस उम्मीद में कि शायद आज मिल जाए, बीज भंडारों पर रोजाना ही माथा पटक रहे हैं। दो महीने पहले आया 190 क्विंटल बीज ऊंट के मुंह में जीरा साबित हुआ, डिमांड ज्यादा होने की वजह से वह तो आते ही खत्म हो गया था।
सरकारी मशीनरी और सरकार में मूलभूत अंतर अब लोगों के समझ में आने लगा है। सरकार वह है जो किसानों की आमदनी बढ़ाने और सभी सुविधाएं किसानों को मुहैया कराने के दावे करती है और सरकारी मशीनरी वह है जो सरकारी दावों में पलीता लगाने का काम कर रही है। दरअसल, सरकारी कृषि बीज भंडार हाथी के दांत बनकर रह गए हैं। मटर की अगेती फसल में कीट और इल्ली लग जाने की वजह से किसानों ने खड़ी फसल अपने हाथों से ही उजाड़ दी और खेतों की जुताई कर डाली। अब चूंकि दिसंबर का महीना चल रहा है और यह समय केवल गेहूं की फसल बोने का रह गया है लेकिन सरकारी बीज गोदामों पर गेहूं का लेट बोने बाली वैराइटीज का बीज उपलब्ध नहीं होने से किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें साफ देखीं जा सकती हैं। बीज गोदामों पर उक्त बीज 4120 रुपए प्रति क्विंटल में प्राप्त हो जाता है, उसमें भी पचास फीसदी सब्सिडी होने से किसानों को बीज सस्ता तो पड़ता ही है, बीज अच्छा होने की गारंटी भी मानी जाती है लेकिन वहां बीज दो महीने पहले ही खत्म हो चुका है। बताया गया है कि कुल 190 क्विंटल गेहूं का बीज आया था जो ऊंट के मुंह में जीरा साबित हुआ। किसानों की इस महत्वपूर्ण समस्या को लेकर जिला मुख्यालय पर बैठे कृषि विभाग के अधिकारी कितने संजीदा हैं, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सैकड़ों किसान रोजाना बीज गोदामों के चक्कर काट रहे हैं लेकिन उनकी समस्या पर कान नहीं दिए जा रहे हैं, मजबूरन किसान को दोगुने दामों पर प्राइवेट संस्थाओं से बीज खरीदना पड़ रहा है। उम्मीद है कि आला अधिकारी इस अहम समस्या को गंभीरता से लेकर बीज भंडारों पर पर्याप्त मात्रा में गेहूं की लेट बुआई की वैरायटी का बीज उपलब्ध कराने में किसानों की मदद जरूर करेंगे।