झाँसी- कहते हैं कि कश्तियां उनकी ही किनारे पर लगती हैं , जिनके हौसले उनके जज्बे को बुलंद बनाए रखते हैं । आवाज़ भी उनकी फिजा में तब तक तैरती है जब तक आसमां से मसीहा मदद की बागडोर हाथ में लिए सामने नहीं आता। युवा समाजसेवी भानू सहाय भले ही गरीब कमजोर और बेबस गांव वालों के मसीहा ना कहे जाए, लेकिन दूसरों। के लिए जीने वाला मसीहा से कम नही होता। आज भानू बेतवा नदी को प्रदुषण से बचाने के लिए अनसन पर बैठ रहे है। यानि नदी के लिए एक बार फिर से तपस्या!
भानू की जिद किसी के लिए भी अजीब हो सकती है। हर सोच का अपना दृष्टिकोण है। दृष्टिकोण की बात जाती है तो मार्केट संवाद ने भानू से उनके अपने नजरिए को लेकर बात की। भानू पहले अल्फाज ही इस बात को जताते हैं कि वह बुंदेली माटी को उसका हक दिलाने के लिए किसी भी कीमत को चुकाने के लिए तैयार है ।
भानु कहते हैं कि बुंदेलखंड को विकास के रास्ते को इतना कठिन बना दिया गया है कि लोगों को विकास भरी सेहत देने के लिए खुशहाली की हवा चल ही नहीं पा रही है।
भानु कहते हैं कि वैसे ही तो बुंदेलखंड की नदी , तालाब पानी के लिए तरस रहे हैं उस पर बेतवा नदी को प्रशासन तंत्र और सरकारी उदासीनता ने इस काबिल भी नहीं छोड़ा है कि वह किसी को जिंदगी दे सके । आसपास के इलाके में सिर्फ और सिर्फ मौत की फसल बोई जा रही है। क्या है ठीक है? हम कब तक इसे देखते रहेगे औऱ आवाज भी ना उठाए?
आज भानू सहाय के साथ किसान नेता गौरीशंकर विदुआ,, समाज सेवी रघुराज शर्मा जैसे साथियों के हौसले उनकी आवाज को इतना मजबूत बना रहे हैं कि भानू नदी की पीड़ा को मिटाने के लिए खुद को बहुत मजबूत पाते हैं।
बकौल भानु जब तक मेरी सांसे साथ देती हैं तब तक मैं बेतवा नदी और पृथक बुंदेलखंड राज्य के लिए अपनी आवाज बुलंद करता रहूंगा।
अब देखना यह है कि पिछले कई महीनों से थर्मल पावर प्लांट से निकल रही जहरीली राख, धुँआ औऱ तेल से प्रदूषित हो रही माटी को बचाने के लिए क्या सरकार और प्रशासन भानु की बात को मानता है या नही?