झांसीः बुन्देली धरा के जिन सपूत को जनता माननीय का दर्जा देती है। उनकी सोच राजनीति और विचार व्यक्त करने तक सीमित रह जाती है। राजनीति के लिये आंदोलन और समस्या पर विचार व्यक्त करना। माननीयो की कार्यशैली का यही फलसफा है?
नगर मे पिछले कई दशक से समस्याओ का अंबार है।चाहे वो पानी वाली धर्मशाला हो, लक्ष्मीताल हो या फिर सीपरी बाजार का ओवरब्रिज। इसके अलावा जनता को परेशान करने वाले मुददे, जिसमे अतिक्रमण, सड़को का खराब होना। जनता से कई जगह होने वाली लूट आदि।
इन मामलो मे माननीय केवल मूकदर्शक की भूमिका निभाते हैं। जब मीडिया इन मुददो को उठाती है, तो विचार देने के बाद इनके चेहरे दिखना मुश्किल हो जाता। मामला केवल सत्ता पक्ष का नहीं है।
विपक्ष के नेता भी इसी परिपाटी को निभा रहे हैं। सपा से दमदार चेहरा माने जाने वाले चन्द्रपाल सिंह यादव को जमीनी मुददो पर संघर्ष करते देखा नहीं गया। पार्टी की नीति या आंदोलन मे वो हिस्सेदारी निभाने जरूर पहुंच जाते हैं। यही हाल बसपा का है। बसपा के नेता, तो जनता की समस्याओ को उठाने तक से गुरेज करते हैं।
यहां सवाल यह है कि क्या इन नेताओ को नगर की समस्याओ का पता नहीं है या फिर वो इनके हल के लिये समय नहीं निकाल पाते? केवल राजनैतिक मुददो पर बोलने की परंपरा ने बुन्देली माटी को विकास से काफी दूर कर रखा है।
नगर मे बेतहासा तरीके से बनी बिल्डिंग मे पार्किंग की व्यवस्था नहीं होने का मुददा आज तक किसी माननीय ने नहीं उठाया। निगम की कार्यशैली को लेकर पक्ष और विपक्ष दोनो खामोश रहते हैं।
जनता के हित की बात करने वाली कांग्रेस भी केवल राजनैतिक मुददे तक सीमित है। कांग्रेस के छुटभैया नेता भी जनता की आवाज नहीं उठा पाते।
भाजपा ने तो इस मामले मे सभी को पीछे छोड़ रखा है। अब जबकि उनकी पार्टी सत्ता मे है, तब भी जन समस्याओ को देखते हुये भी खामोश हैं? आखिर क्यो ? क्या महानगर अध्यक्ष को नहीं पता कि सीपरी बाजार मे अतिक्रमण और मानिक चैक मे वाहनो की अंधाधुंध प्रवेश ने हालात खराब कर रखे हैं।
मानिक चैक मे सार्वजनिक मूत्रालय नहीं है। सीसी कैमरे खराब पड़े हैं। मेडिकल कालेज के पास बने नर्सिंग होम लूट कर रहे हैं। सवाल यह है कि केवल अपनी राजनैतिक जमीन बनाने को बेताव रहने वाले ऐसे माननीय क्या कभी जनता की समस्याओ को लेकर आंदोलन कर सकेगे?