झांसीः ऐतिहासिक धरोहरो को संजोने की कल्पना कागज मे साकार हो रही हैं। यह बात पानीवाली धर्मशाला की स्थिति से समझा जा सकता है। बीते साल इस धर्मशाला को साफ करने के लिये नगर निगम से 20 लाख रूपये खर्च किये थे। कहा गया था कि धर्मशाला को उसके पुराने स्वरूप मंे वापस लाते हुये इसे पर्यटक स्थल बनाया जाएगा। विधायक रवि शर्मा ने भी खूब जोश के साथ सफाई अभियान मे हिस्सा लिया था। आज धर्मशाला हरे घास का मैदान बन गयी है।
नगर के ऐतिहासिक स्थलो को संवारने की किसी को फुर्सत नहीं। स्थानीय सांसद और मंत्री उमा भारती के जिम्मे जब गंगा सफाई की जिम्मेदारी आयी, तो उन्होने प्रण लिया था कि पूरा करके रहेगी। स्थानीय मुददो मे उन्होने लक्ष्मीताल सहित तमाम स्थलो को बेहतर बनाने की बात कहीथी।
लक्ष्मीताल का काम शुरू भी नहीं हो सका। अतिक्रमण का आलम यह है कि बड़े बिल्डर ने जमीन घेर कर वहां कालोनी बना दी। आज भी नगर निगम उस जमीन को तलाश रहा है।
इसके अलावा नगर के पुराने दरवाजे, खिड़कियां और ताल आदि रखरखाव के अभाव मे दम तोड़ रहे हैं। सबसे ज्यादा खिलवाड़ पानीवाली धर्मशाला के साथ हो रहा है। इस धर्मशाला को लेकर लोगो मे खासी दिलचस्पी है। बताते है कि चंदेलकालीन समय मे बनी इस धर्मशाला का मूल स्वरूप आज तक कोई नहीं देख पाया है।
पिछले साल जब धर्मशाला से मिटटी हटाने का काम शुरू हुआ, तब विधायक रवि शर्मा ने दावा किया था कि धर्मशाला को बेहतर बनाया जाएगा। धर्मशाला मे नाव चलेगी।
प्रशासन और जनप्रतिनिधि के दावे समय के साथ जनता की नजर से भी ओझल हो गये। आज आलम यह है कि धर्मशाला मे जल कुंभी ने डेरा जमा लिया है। अब इस जल कुंभी को हटाने के लिये प्रशासन को एक बार फिर से लाखांे रूपये खर्च करना पडेगे। सवाल यह नहीं है कि पैसा खर्च होगा। सवाल यह है कि क्या नगर के जनप्रतिनिधि और प्रशासन किसी काम को गंभीरता सेकरने की दिशा मे क्यो नहीं सोचता?