झांसीः क्या उमा भारती के विकल्प बन सकेगे रवीन्द्र शुक्ल?

झांसीः यह लगभग तय है कि वर्तमान सांसद और केन्द्रीय मंत्री उमा भारती झांसी संसदीय क्षेत्र से चुनाव नहीं लड़ेगी। कानपुर मे बीते दिनो  हुयी पार्टी की बैठक मे करीब 28 सांसद के टिकट काटे गये, जिनमे उमा भारती का भी नाम शामिल है। ऐसे मे सवाल उठ रहा है कि झांसी से कौन उमा भारती का उत्ताधिकारी बनेगा? वैसे तो कई नाम सामने आ रहे हैं, लेकिन सबसे ज्यादा दम पूर्व मंत्री रवीन्द्र शुक्ल लगा रहे हैं। सवाल उठ रहा है कि क्या वो उमा भारती के विकल्प बन सकते हैं?

बुन्देलखण्ड मे भाजपा का जनाधार पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनाव के बाद जबरदस्त तरीके से बढ़ा है, लेकिन चुनाव बाद नेताओ  की खामोशी और संगठन की सुस्त चाल ने आम जनता के बीच पार्टी के प्रति उत्साह को काफी कम कर दिया है।

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इसका एक बड़ा कारण वर्तमान सांसद उमा भारती भी है। चुनाव जीतने के बाद  चार साल तक वो क्षेत्र से नदारद सी रही। पांचवे साल मे उन्होने कारीडोर जैसी योजना को लांच जरूर किया, लेकिन यह धरातल मे आने से पहले चुनाव के लपेटे मे आ जाएगी, इससे योजना का लाभ मिलना मुश्किल लगता है।

उमा भारती को बुन्देलखण्ड राज्य के मुददे पर भी घेरा जा रहा है। जो उनके गले की सबसे बड़ी फांस है। ऐसे मे टिकट कटने के बाद स्थानीय स्तर पर नेताओ  की तलाश तेज हो गयी है। बीजेपी नहीं चाहती कि झांसी मे बाहर से नेता मैदान मे उतारा जाए। हां, पार्टी स्तर पर इस बात को लेकर मंथन जरूर हुआ कि यदि दमदार चेहरा नहीं मिलता है, तो किसी बड़े नेता को प्रत्याशी बनाकर सीट बचाने का पूरा प्रयास किया जाएगा।

स्थानीय स्तर पर भाजपा को विधानसभा चुनाव मे जीत की गारंटी देने वाले रवीन्द्र शुक्ल ने अपनी दमदारी पेश करना शुरू कर दी है। इधर, उमा भारती के सबसे करीबी माने जाने वाले बबीना विधायक राजीव िसह पारीछा भी सपनो  की उड़ान भर रहे हैं। उन्हे लगता है कि दीदी उनके नाम को आगे करेगी। नगर विधायक रवि शर्मा पहले की कह चुके है कि वो लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेगे। ऐसे मे रवीन्द्र शुक्ल की दावेदारी सबसे मजबूत दिख रही है।

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रवीन्द्र शुक्ल को लेकर पिछले कुछ सालो  मे जो निगेटिव फेक्टर थे, वो भी काफी कम हुये हैं। उनके बोल्ड अंदाज को लोग पार्टी मे दूसरे नेताओ  की तुलना मे पंसद करते हैं।

अच्छे वक्ता के साथ जनता के बीच संवाद करने की कला मे माहिर रवीन्द्र शुक्ल इन दिनो  सक्रिय भी हैं। वो सीधे तौर पर तो लोकसभा की दावेदारी पर कुछ नहीं बोलते, लेकिन उनके समर्थक पूरी तैयारी मे हैं।

ऐसे मे सवाल उठ रहा है कि क्या रवीन्द्र शुक्ल का कद इतना है कि वो लोकसभा क्षेत्र मे प्रभाव डाल सके? या चेहरा रवीन्द्र शुक्ल का और बैकग्राउंड बीजेपी की नीति के तहत उन्हे मैदान मे उतारा जा सकता है? रवीन्द्र शुक्ल के मैदान मे आने को लेकर जो बाते उनके पक्ष मे हो सकती है, उनमे जातीय समीकरण एक हैं।

रवीन्द्र शुक्ल भाजपा की ओर से एक मात्र ब्राहमण प्रत्याशी हो सकते हैं। जबकि बसपा, कांग्रेस और सपा से ऐसा चेहरा नजर नहीं आता। इसके अलावा बसपा और सपा के गठबंधन मे प्रत्याशी को लेकर खींचतान भी होगी। इन सारी परिस्थितियों मे रवीन्द्र शुक्ल जनता के बीच बेहतर तरीके से अपना पक्ष रख सकेगे?

 

 

 

 

 

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