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बात बुंदेलखंड की! साहब, उमा भारती से नहीं उनके गुस्से से डर लगता है

लखनऊ 10 जून।  वैसे तो बीजेपी की  फायर ब्रांड नेता कही जाने वाली उमा भारती अपने संसदीय कार्य काल के अंतिम दौर  हैं । कुछ दिनों पहले उन्होंने यह कहकर सनसनी फैला दी थी कि वह चुनाव नहीं लड़ना चाहते हैं । बात जब चुनाव की निकली तो दूर तक गई और नतीजा सामने आया कि उमा भारती को खुद कहना पड़ा कि वह राजनीति से ना तो रिटायर्ड हो रही है और ना ही कभी चुनाव लड़ने की उन्होंने कोई बात की।

ऐसे हालातों में उमा भारती अपने संसदीय क्षेत्र में बुंदेलखंड राज्य की मांग को लेकर चारो तरफ से घरती  नजर आ रही है , तो वहीं उन्हें क्षेत्र में विकास को लेकर अंदर ही अंदर इस बात की चिंता सता रही है कि जनता के सामने अपना पक्ष कैसे रखेंगे। वही विपक्षी  उमा से ज्यादा उनके गुस्से को लेकर परेशान है। विपक्षी तो यहां पर कह रहे हैं कि साहब , उमा भारती से नहीं उनके गुस्से से डर लगता है । पता नहीं बुंदेलखंड की बात करने पर वह क्या बोल दे।

अपने अलग अंदाज के लिए चर्चित उमा भारती 2014 के लोकसभा चुनाव में झांसी सीट से भाजपा की ओर से प्रत्याशी बनाई गई थी । उस दौरान क्षेत्र की जनता ने उन्हें  काशी  से मोदी और झांसी से उमा के नारे के साथ जीत के रथ पर ऐसा सवाल किया कि विपक्ष के उम्मीदवार उनके सामने टिक नहीं सके।

दावा किया जाता है कि उमा भारती ने अपने चुनाव के दौरान पृथक बुंदेलखंड राज्य को लेकर 3  साल के अंदर निर्माण  का वादा किया था आरोप है कि चुनाव जीतने और केंद्रीय मंत्री बनने के बाद उमा भारती अपने वादे से मुकर गई । इसको लेकर बुंदेलखंड निर्माण मोर्चा के अध्यक्ष भानु सहाय और विपक्ष के लोग उमा भारती को घेरते  रहे हैं ।भानु  सहाय  ने तो पिछले 4 साल में कई बार उमा भारती के खिलाफ प्रदर्शन किये।

यहां गौर करने वाली बात यह भी है कि पिछले 4 साल के दौरान मीडिया के भी कई बार बुंदेलखंड की  बात उठाने का प्रयास किया, लेकिन   उमा भारती ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया है।  मीडिया के लोग भी मानते हैं कि उमा भारती का गुस्सा तेज होने से सवाल का जवाब मिलना मुश्किल हो जाता है । यह भी कहा जाता है कि वह कभी-नरम तकभी गरम के तेवर के साथ नजर आती हैं क्या कहें जनता के लिए होता है तो मीडिया के लिए भी।

अब बात बुंदेलखंड की की करें  यहां के हालात यह हैं कि पिछले 3 दिन के अंदर 3 किसानों ने अलग-अलग कारणों से मौत को गले लगा लिया है । किसान ही नहीं रोजगार  भी परेशान है। उमा  भारती  की ओर से दावा किया जा रहा है कि वह बुंदेलखंड के विकास के लिए ठोस प्रयास कर रही है।

उमा भारती के विकास के प्रयास को लेकर विपक्ष कुछ इस तरह टिप्पणी करता हैं कि हुजूर आते आते बहुत देर कर दी। इतना नहीं सवाल यही उठाया जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हर सांसद को अपने अपने संसदीय क्षेत्र में विकास के लिए गांव का चयन करने को कहा था । उमा भारती ने चिरगांव में  जिस गांव को गोद लिया था बीते दिनों ही मीडिया में रिपोर्ट आई है कि उनके गांव की हालत बद से बदतर है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या उमा भारती से जब सवाल किया जाए विकास को लेकर तो क्या वह नाराज होगी?

विपक्ष वह भारतीय गुस्से को लेकर एक और तर्क सामने आ रहा है  हालांकि उनके स्टाफ से जुड़ा हुआ है  लेकिन तर्क में यह तो नजर आता ही है कि उन्होंने 4 साल से सांसद प्रतिनिधि के तौर  पर काम कर रहे जगदीश सिंह चौहान को अंतिम कार्यकाल में क्यों हटा दिया ?इस बात को लेकर चौहान से पूछा तो उन्होंने सकारात्मक जबाब देते हुए कहा कि ये उमा जी का व्यक्तिगत निर्णय है ।वह पूरी निष्ठा से सांसद प्रतिनिधि के तौर पर काम कर रहे थे।

वैसे आपको बता दें कि सांसद प्रतिनिधि के तौर पर काम कर रहे हैं जगदीश सिंह चौहान के साथ ही क्षेत्रीय स्तर के नेता कहे जाने वाले संजीव  ऋषि को उनके साथ अटैच करने की खबर भी आई थी । बाद में मीडिया में यह मामला उजागर होने के दौरान ही संजीव से दायित्व को लगभग हटा लिया गया और अब हनुमंत सिंह नरवरिया को पूरी तरह से सांसद प्रतिनिधि नियुक्त किया गया है ।

उमा भारती पर आरोप तो यह लग रहे हैं कि उन्होंने अपने संसदीय कार्य के 4 साल के दौरान जनता से सीधा संवाद करने में कोई रुचि नहीं दिखाई । कुछ मामलों में जब वह झांसी में प्रवास के दौरान नजर आयी, तो जनता से संवाद को लेकर संवादहीनता ही बनी रही।  इसका एक बड़ा कारण यह भी नजर आया उमा भारती के साथ हमेशा सुरक्षा गार्ड रहे । इससे आम जनमानस उनके करीब पहुंचने की पुस्तक नहीं सका और मन की बात मन में ही रखे रह गया।

अब बुंदेली जनमानस इस बात का इंतजार कर रहा है कि क्या उनकी दीदी नरम हो कर जनता की दुखती रग पर हाथ  रखेंगी?

 

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