नई दिल्ली 31 अगस्त । क्या राफेल डील मोदी सरकार के लिए बोफोर्स कांड बनेगा। यह सवाल उठ रहा है क्योंकि फ्रांस की मीडिया ने भी राफेल डील को लेकर सवाल उठाया है कि आखिर इस डील को hal को केंद्र में रखकर किया गया था फिर अचानक अनिल अंबानी की कंपनी बीच में कैसे आ गई।
फ्रांस के प्रमुख अखबार फ्रांस 24 ने लिखा है कि सन 2014 में तत्कालीन मनमोहन सरकार ने इस डील को करते समय एचसीएल कंपनी को किधर रखा था उसके बाद 2015 में मोदी सरकार ने XL को बाहर करते हुए निजी कंपनी अनिल अंबानी को दे दिया गया जो 15 दिन पहले बनी।
फ्रांस 24 ने लिखा है कि राफेल डील की शुरुआत 2007 में तब हुई जब भारतीय रक्षा मंत्रालय ने 2007 में अपना सबसे बड़ा टेंडर जारी करते हुए 126 मल्टी रोल लड़ाकू विमान खरीदने की पहल की. रक्षा मंत्रालय की ये खरीदारी इसलिए जरूरी हो गई क्योंकि उस वक्त देश में इस्तेमाल हो रहे रूसी विमानों पुराने हो चुके थे और रक्षा चुनौतियों को पूरा करने में सक्षम नहीं थे.
साल तक चली बातचीत के बाद मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने ऐलान किया कि फ्रांसीसी कंपनी दसॉल्ट रक्षा मंत्रालय के टेंडर में विजयी हुआ है. दसॉल्ट राफेल की मैन्यूफैक्चरिंग करता है और 2012 के इस समझौते के मुताबिक रक्षा मंत्रालय सेवा में तुरंत तैनात करने के लिए 18 राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद फ्रांसीसी कंपनी से करेगा. वहीं बचे हुए 108 लड़ाकू विमानों की असेंब्ली दसॉल्ट भारत सरकार की कंपनी हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड के साथ मिलकर भारत में करेगा.
डील को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने मोदी सरकार को जबसे घेरा है इसके बाद से यह मुद्दा तूल पकड़ता जा रहा है। राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा तेज हो गई है कि क्या राफेल डील मोदी सरकार के लिए दूसरा बोफोर्स कांड साबित होगी
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