भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री (Lal Bahadur Shashtri) की आज (11 जनवरी 2019) को 53वीं पुण्यतिथि है।
सादगीपूर्ण जीवन जीने वाले शास्त्री जी एक शांत चित्त व्यक्तित्व भी थे। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के मुगलसराय (अब दीनदयाल उपाध्याय नगर) में 2 अक्टूबर 1904 को मुंशी लाल बहादुर शास्त्री के रूप में हुआ था।
दीनदयाल उपाध्याय और शास्त्री जी के राष्ट्र के प्रति त्याग बलिदान और योगदान की निष्पक्ष तुलना के बाद सोचिये, मुग़लसराय का नाम बदलकर क्या रखा जाना चाहिए था?
ख़ैर शास्त्री जी अपने घर में सबसे छोटे थे तो उन्हें प्यार से ‘नन्हें’ बुलाया जाता था। उनकी माता का नाम राम दुलारी था और पिता का नाम मुंशी प्रसाद श्रीवास्तव था।
बचपन में ही पिता की मौत होने के कारण नन्हें अपनी मां के साथ नाना के यहां मिर्ज़ापुर चले गए। यहीं पर ही उनकी प्राथमिक शिक्षा हुई। उन्होंने विषम परिस्थितियों में शिक्षा हासिल की। कहा जाता है कि वह नदी तैरकर रोज़ स्कूल जाया करते थे। क्योंकि जब बहुत कम गांवों में ही स्कूल होते थे। लाल बहादुर शास्त्री जब काशी विद्यापीठ से संस्कृत की पढ़ाई करके निकले तो उन्हें शास्त्री की उपाधि दी गई। इसके बाद वह अपने नाम के आगे शास्त्री लगाने लगे।
शास्त्री जी का विवाह 1928 में ललिता शास्त्री के साथ हुआ। जिनसे दो बेटियां और चार बेटे हुए। एक बेटे का नाम अनिल शास्त्री है जो कांग्रेस पार्टी के सदस्य हैं। देश के अन्य नेताओं की भांति शास्त्री जी में भी देश को आज़ाद कराने की ललक थी लिहाजा वह 1920 में ही आज़ादी की लड़ाई में कूद पड़े थे। उन्होंने 1921 के गांधी से असहयोग आंदोलन से लेकर कर 1942 तक अंग्रेज़ों भारत छोड़ो आंदोलन में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। इस दौरान कई बार उन्हें गिरफ्तार भी किया गया और पुलिसिया कार्रवाई का शिकार बने।
लाल बहादुर शास्त्री के प्रधानमंत्री बनने के बाद 1965 में भारत पाकिस्तान का युद्ध हुआ जिसमें उन्होंने विषम परिस्थितियों में देश को संभाले रखा। सेना के जवानों और किसानों महत्व बताने के लिए उन्होंने ‘जय जवान जय किसान’ का नारा भी दिया। जो आज भी लोकप्रिय है।
11 जनवरी 1966 को शास्त्री की मौत ताशकंद समझौते के दौरान रहस्यमय तरीक़े से हो गई जो आज भी रहस्य ही बनी हुई है। क्योंकि सच जानने की कोशिश किसी सरकार ने आज तक नहीं की।
देश के इस महान सादगी के औतार, ईमानदार सपूत को दिल की गहराईयों से सलाम।
सैयद शहनशाह हैदर आब्दी
समाजवादी चिंतक – झांसी।