उरई में स्वच्छ भारत मिशन को मुंह चिढ़ा रही मैला ढोने की प्रथा, रिपोर्ट- अवनीत गुर्जर

जालौन जिले में आज भी सैकड़ों महिलाएं इसके लिए मजबूर

उरई। एक ओर पूरे देश में स्वच्छ भारत मिशन का डंका बज रहा है वहीं अगर एक ही जिले में सैकड़ों दलित महिलाएं आज भी हाथ से मानव मल उठाने को मजबूर हों और शासन-प्रशासन ने इस पर पूरी तरह चुप्पी ओढ़ रखी हो तो इससे ज्यादा शर्म की बात और क्या होगी। जालौन जिले में गेंदा रानी, भग्गो, बेटी बाई की पूरी उम्र गांव में सुबह उठकर घरों से मैला उठाने और शाम को उन्ही घरों से रोटी मांगने में गुजर चुकी है। गुडडी व अन्नो के कूल्हे पर निशान बन गये हैं। लेकिन मैला ढोना आज तक बंद नही हुआ। आखिर कब मिलेगी इन्हें मैला ढोने से मुक्ति।

बुंदेलखंड दलित अधिकार मंच के बैनर तले गांवों में मानव मल उठाकर अपने आजीविका चलाने वाली बाल्मीकि महिलाओं ने सोमवार को जिला मुख्यालय आकर गांधी चबूतरा से कलेक्ट्रेट परिसर तक पैदल मार्च निकाला और इसके बाद जिला प्रशासन को इस कुप्रथा से मुक्ति और अपने स्थाई पुनर्वासन के लिए इंतजाम की मांग की।
इस दौरान बुंदेलखंड दलित अधिकार मंच के संयोजक कुलदीप कुमार बौद्ध ने कहा कि यह बेहद ही शर्मनाक है कि आजादी के 72 साल बाद भी गांवों में बाल्मीकि महिलाओं को मैला ढोने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। मंच से जुड़े कार्यकर्ताओं रेहाना मंसूरी, रीता देवी, रामकुमार, किशुन कुमार, विमल कुमार बौद्ध, राजेश्वरी गौतम, धर्मपाल, शिवराम, नीलिमा, कल्पना बौद्ध आदि लोगों ने बताया कि हम लोगों ने गांव में जाकर देखा है कि ये लोग सूखी-बासी रोटी खाकर गुजर बसर कर रहे हैं जिससे मैला ढोने वाली महिलाएं बीमारी का शिकार हैं। इनके पुनर्वास के नाम पर अभी तक केवल ढकोसले हुए हैं। बहुजन फाउंडेशन के नंदकुमार, पंचम सिंह, राजेश गौतम व सुरजीत ने कहा कि हम लोग मैला ढोने की प्रथा पूर्ण रूप से बंद न होने तक संघर्ष जारी रखेग। प्रदर्शन में दहेलखंड की मुन्नी, सावित्री, संदी की रामश्री, आटा की किश ,निपनिया की बुद्धश्री, निवहना की जूली, गिरजा व प्रभा, बाबई की सुनीता, कुठौंद की मालती, नदीगांव की विनीता आदि मुख्य रूप से शामिल थीं।

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