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केंद्रीय मंत्री वीरेंद्र कुमार : स्टिंग वालों ने इन पर भी डोरा डाला था

संदीप पौराणिक
भोपाल)| संसद में पैसे लेकर सवाल पूछने का मामला 12 साल बाद भी खत्म नहीं हुआ है, उन दिनों स्टिंग ऑपरेशन में फंसे 11 सांसदों को अपनी सदस्यता तक गंवानी पड़ी थी। मोदी सरकार में महिला बाल विकास राज्यमंत्री बनाए गए डॉ. वीरेंद्र कुमार को भी पैसों का लालच देकर सवाल पूछने के जाल में फांसने की कोशिश हुई थी, मगर साफगोई उन्हें बचा ले गई।
वर्ष 2005 में एक निजी समाचार चैनल ने सांसदों की कार्यशैली और सवाल भी दूसरों के इशारे पर पूछे जाने का खुलासा करने के लिए स्टिंग ऑपरेशन किया था। इस स्टिंग ऑपरेशन में देश के 11 सांसद बेनकाब हुए और वे पैसा लेकर संसद में सवाल पूछने के लिए राजी होते दिखाए गए। इसमें भारतीय जनता पार्टी के छह सांसद, जिनमें एक राज्यसभा के, बहुजन समाज पार्टी के तीन, राजद का एक और कांग्रेस का एक सांसद शामिल था।
इस स्टिंग ऑपरेशन में जो सांसद फंसे थे, उसकी जांच के लिए पवन बंसल की अध्यक्षता में लोकसभा ने समिति बनाई थी, जिसने दिसंबर, 2005 में इन सभी सांसदों को बर्खास्त करने की सिफारिश की थी और उन्हें बर्खास्त भी कर दिया गया था। वे सांसद अब पूर्व हो चुके हैं, मगर अब भी न्यायालय के चक्कर काट रहे हैं।
मंत्री बनने के बाद डॉ. वीरेंद्र कुमार ने आईएएनएस से दूरभाष पर चर्चा करते हुए कहा कि स्टिंग ऑपरेशन करने वालों ने उन पर भी डोर डाले थे। वे उनके घर आए और कहा कि वे जो सवाल दे रहे हैं, वह संसद में पूछें और इसके बदले में पैसे भी मिलेंगे।
डॉ. कुमार ने कहा, “पहले तो मेरे दिमाग में सवाल उठा कि सवाल के पैसे कैसे! उसके बाद मैंने संबंधित जनों से कहा कि कोई और दरवाजा देखें, मैं तो स्वयं अपना प्रश्न बनाता हूं और लोकसभा में उठाता हूं। इसके लिए मैं किसी की मदद नहीं लेता। यह जवाब सुनकर वे चलते बने। बाद में राज खुला कि सवाल के बदले पैसे देने की पेशकश करने वाले कौन थे।”
उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने उन पर भरोसा कर बड़ी जिम्मेदारी सौंपी है, उनकी कोशिश रहेगी कि उन पर जो भरोसा जताया गया है, उसे पूरा करें।
वीरेंद्र कुमार को करीब से जानने वाले बताते हैं कि उनका बचपन बड़ा संघर्ष भरा रहा है, उनके पिता अमर सिंह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े थे, और सागर के तीन बत्ती इलाके में पंचर की दुकान चलाते थे। इसमें वीरेंद्र भी कई बार उनका हाथ बंटाया करते थे। वीरेंद्र आपातकाल में 16 माह जेल में भी रहे, इसके साथ उच्च शिक्षा अर्जित करना उनका लक्ष्य रहा। बालश्रम विषय में उन्होंने पीएचडी भी की है।
सागर के लोगों की मानें तो वीरेंद्र छह बार सांसद का चुनाव जीत चुके हैं, मगर उन्होंने कभी फरेब नहीं किया। वे अपनी बात काफी हद तक साफ तौर पर कहने में भरोसा करते हैं। वे ज्यादा सुख-सुविधाओं के महत्वाकांक्षी नहीं हैं, तभी तो आज भी स्कूटर ही उनकी सवारी है। साफगोई के कारण ही वे सवाल पूछने के बदले पैसे लेने के जाल में नहीं उलझ पाए।

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