झांसीः अभी खाली है, चलो मंदिर-मस्जिद सर झुका आते हैं

झांसीः नेताआंे का भी ना। इन्हंे मौका देखकर धर्म, मजहब, जात, रिश्तेदारी, मित्र, जनता  यहां तक कि मंदिर-मस्जिद भी अच्छे लगने लगते। फिर सब इन्हंे तलाशे? सिर्फ एक को छोड़कर। जो मंदिर मंे है, मस्जिद मं है और हर जगह है। उसकी तलाश अचानक करने से क्या वो सुनेगा?

चुनावी दौर चल रहा है। सभी की निगाहंे मेयर पद के घोषित प्रत्याशियांे और दावेदारांे के साथ सभासद प्रत्याशियांे पर है। प्रत्याशियांे की चहलकदमी शुरू हो गयी है। सुबह देर तक सोने वाले महाशय आज कल तड़के सुबह उठ रहे हैं।

सात बजे तक तो दरवाजे खुल जाते हैं। कल तक इन्हंे मिलने के लिये दस बजे के बाद ही सोचना पड़ता था। यदि किसी कारण जल्द घर पहुंचे गये, तो यकीन मानिये घंटा-दो घंटां इंतजार होगा।

बीते रोज मार्केटसंवाद की टीम नगर के विभिन्न इलाको मंे गयी। इसमंे हमारा बुन्देली नंदू भी शामिल था। टीम के सदस्य खबरांे को ढूंढ रहे थे। नंदू की नजर अपने नजरिये से तलाश कर रही थी।

अचानक नंदू चिल्लाया। साहब, वो देखो। नेताजी। हम चैंके। मस्जिद मंे कौन सा नेता है। पास गये, तो राहुल सक्सेना थे। बाबा की मजार पर मन्नत मांग रहे थे। इससे पहले शायद ही राहुल सक्सेना को कुनबे के साथ मजार या मंदिर मंे देखा गया हो?। ऐसा नहीं है कि अकेले राहुल मंदिर-मस्जिद जा रहे हो। दूसरे नेता भी सुबह से लोगांे से मिल रहे हैं।

डमडम ने सुबह से ही घर के दरवाजे खोलना शुरू कर दिया है। आप आइये, चाय पीजिये और डमडम को सलाह दीजिए! डमडम आपकी सलाह सुने या अमल करे, यह आप  नहीं सोचे। बस हां मंे हां मिलाइये और भीड़ का हिस्सा बनिये। शायद नेताआंे का असली मकसद यही होता है?

खैर, मंदिर, मस्जिद जाना अच्छी बात है। आस्था हर किसी मंे होनी चाहिये। हमारी संस्कृति भी यही सिखाती है, लेकिन नेताआंे को अचानक आस्था और भक्ति क्यों जागती है, इसका जवाब नहीं मिल पाता। हां, जनता अपना निणर्य यानि जवाब जरूर देती है। इसलिये कहा गया है कि लोकतंत्र मंे जनता ही सर्वोपरि है।

 

 

 

 

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *