झांसी: बसपा यानि संशय की स्थिति वाली पार्टी। यह कहना है बसपा से निकाले गये लोगों का। ताजा मामला बसपा मे हाल ही मे शामिल हुये नरेन्द्र झां का। नरेन्द्र को पार्टी ने निकाय चुनाव मे मेयर पद के लिये दावेदार बनाया था।
अचानक कल उन्हे पार्टी से बाहर कर दिया। इस पूरे प्रकरण को लेकर जब नरेन्द्र से बात की गयी, तो वही पुराना राग सामने आया। यानि पैसे नहीं दिये, तो बाहर कर दिये गये?बसपा मे शामिल होने वाले लोगों की अक्सर शिकायते रहती है कि पार्टी उपयोग करने के बाद दगा दे देती है।आपको याद होगा कि झांसी मे विधानसभा चुनाव से पहले हाजी अस्फाक को मैदान मे उतारा गया था।
हाजी तो इतने गदगद हो गये थे कि उन्हांेने पूरे मैदान मे हल्ला कर दिया था कि अगले विधायक वो ही होगे।पार्टी ने चार दिन तक उनसे खूब प्रचार कराया और बाद मे सीताराम को मैदान मे उतार दिया। हाजी आज भी दिल मे जख्म लिये घूम रहे हैं।
कल अचानक यह खबर आयी कि बसपा मे शामिल किये गये नरेन्द्र झां पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष को पार्टी विरोधी गतिविधियो के चलते निकाल दिया गया।यह बात किसी को हजम नहीं हुयी। नरेन्द्र ने पिछले कुछ दिनो मे ऐसा कुछ नहीं किया था, जिसे पार्टी विरोधी माना जाता। इसके बाद बात आयी कि लखनउ मे उन्होने वरिष्ठ पदाधिकारियांे के साथ विवाद किया।
इनमे प्रभारी भी शामिल थे।इन आरोपो की पड़ताल के लिये मार्केटसंवाद ने नरेन्द्र झां से बात की, तो असलियत कुछ और ही सामने आयी। नरेन्द्र का कहना है कि पार्टी ने उन्हे लखनउ बुलाया था।
आरोप है कि पचास लाख रूपये की मांग की गयी।इस पर उन्हांेने कहा कि शामिल होते समय यह तय नहीं हुआ था। यदि हम पचास लाख देगे, तो चुनाव क्या लड़ेगे? फिर पचास लाख आएंगे कहां से ? जानकार बताते है कि पैसों को लेकर दोनो पक्ष मे हुये मतभेद ने नरेन्द्र को हां से ना मे पहुंचा दिया।
जानकार यह मानकर चल रहे हैं कि नरेन्द्र झां से युवा चेहरे को पार्टी इतनी जल्दी निकाल रही है, तो यकीनन अभी पार्टी का कल्चर बदला नहीं है?पार्टी पर अक्सर यह आरोप लगता है कि पैसा देकर टिकट दिया जाता है। यदि नरेन्द्र के आरोप सही है, तो बसपा की चाल शुरू होने से पहले ही मात खाने की दिशा मे बढ़ती नजर आ रही है?