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झांसी: वार्डों मे राजनैतिक दलो को कौन सी चुनौतियां हैं?

झांसीः नगर निगम के चुनाव मे सभी की निगाहे मेयर पद  पर हैं। राजनैतिक दल अपने प्रत्याशी को लेकर मंथन की स्थिति मे  हैं। बसपा, सपा और आम आदमी पार्टी ने प्रत्याशी लगभग तय कर दिये हैं। कांग्रेस ने प्रस्ताव पारित कर दिया है। बची भाजपा, वो भी आज शाम तक बता देगी कि कौन सा चेहरा मैदान मे  आ रहा।

इससे इतर, वार्ड में सभासद के लिये दावेदारो  ने राजनैतिक दलो  के सामने जो चुनौतियां पेश करने की तैयारी की है, उसको लेकर मार्केटसंवाद ने पड़ताल की। नगर निगम झांसी मे 60 वार्ड हैं। विभिन्न वार्डों मे  पहुंची मार्केटसंवाद की टीम ने पाया कि इस बार स्थितियां बदली नजर आ रही हैं।

केवल भाजपा को लेकर सभी मे  उत्साह नहीं है। सपा, बसपा व कांग्रेस से टिकट मांगने वालो  की संख्या कम नहीं। कुछ वार्ड मे  तो प्रत्याशियो  ने अपने को किसी ने किसी राजनैतिक दल का प्रत्याशी घोषित भी कर दिया है।नगर क्षेत्र के वार्ड मे  अधिकांश प्रत्याशी युवा हैं। कुछ पहली बार मैदान मंे आ रहे। इस बार सभासद चुनाव मे  एक नया पन यह देखने को मिल रहा कि मीडिया से जुड़े लोग भी दावेदारी कर रहे हैं। व्यापारी, समाजसेवी के अलावा महिलाओ  की भागीदारी भी कम नहीं है।

आरक्षित, अनारक्षित वार्ड की तस्वीर पर नजर डाले, तो पाते है कि अधिकांश वार्ड ,ए  भाजपा के अलावा कांग्रेस, बसपा व सपा के प्रत्याशी मजबूती से दादेवार हैं।लोग भले की भाजपा को जीत की गारंटी मानते हुये टिकट की दावेदारी कर रहे हैं, लेकिन उन्हंे अपने चेहरे पर भी भरोसा है।

वार्ड मे  युवा राजनीति का ज्यादा जोर है। वार्ड 25, 14, 4, 58, 35 सहित अन्य वार्ड मे  कमोवेश हालत यह है कि सभी प्रत्याशी युवा हैं।युवा राजनीति से पहली बार निगम मे  पहुंचने की चाहत ने राजनैतिक दलो के समीकरण बिगाड़ने का काम शुरू कर दिया है।माना जार रहा है कि  इस बार राजनैतिक दलो  के अधिकांश सीट जीतने के दावे को खुली चुनौती मिलेगी।

राजनैतिक दलो के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि वो सही प्रत्याशी के चयन मे  उलझ गये हैं। जो दावेदार टिकट नहीं पा सकेगे, वो निर्दलीय मैदान मे  आएंगे। जाहिर है कि वो दलांे का समीकरण बिगाड़ेगे। इसके अलावा युवा वर्ग इस बार किसी एक दल को वरीयता देने के मूड मे  नहीं है।

ऐसे मे  राजनैतिक दलों के सामने समस्या यह होगी कि किस प्रकार युवाओ  को अपने पाले मे  रखा जा सके। इसके साथ ही इस बार बुन्देलखण्ड की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे दल भी अपने दावेदार मैदान मे  उतार रहे हैं। भाजपा के प्रति उपज रहे गुस्से को भुनाने मे  दूसरे दल और दावेदार किसी प्रकार की कसर नहीं छोड़ना चाहते।

जाहिर है कि सभासद दावेदार मेयर प्रत्याशी की अपेक्षा अपना चुनाव रोमांच पर ले जाएंगे। वैसे सभासद का चुनाव व्यक्तिगत व्यवहार वाला भी माना जाता है।

इस लिहाज से युवाओ  की टोलियां अपने को साबित करने मे  जुटी हैं। यानि युवा पुराने चेहरो  को दरकिनार कर अपनी पहचान साबित करने का आतुर है। ऐसी स्थिति मे  यदि निगम में पहुंचने वाले सभासदांे की संख्या मे  निर्दलीय ज्यादा हो, तो कोई आश्चर्य नहीं होगा?

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