पितृ रूठने से कई जन्म का पुण्य नष्ट होता है

झाँसी।
अश्विन मॉस के पूर्णिमा से अमावस्या तक के कृष्ण पक्ष के सोलह दिन अर्थात … भाद्रपद की पूर्णिमा से नवरात्र प्रारम्भ होने तक के समय को पितृ पक्ष माना गया हैं ,, जिनमे पितृ पूजन किया जाता है |
श्रद्धा से किया जाने वाला वो सभी कार्य जो पितरों के लिए किया जाता है वह श्राद्ध कर्म कहा जाता है। श्राद्ध करना ही पितरों के लिए यज्ञ कहा गया है।
शास्त्रों में मनुष्य के लिए तीन प्रकार के ऋण की चर्चा की गई है, देव ऋण , ऋषि ऋण पितृ ऋण … जिसमें पितृ ऋण को विशेष स्थान दिया गया है। पितृ-ऋण से पार पाने के लिए पितृपक्ष में श्राद्ध कर्म ही एकमात्र पद्धति है। विष्णु पुराण में कहा गया है कि श्राद्ध से तृप्त होकर पितृ ऋण सभी कामनाओं को तृप्त करते हैं।

ऐसा माना जाता है पितृ रूठने से कई जन्म का पुण्य नष्ट होता है और कार्य में बाधा उत्प्प्न होती है , और उनके प्रसन्न रहने से किसी कार्य में कभी बाधा उत्पन्न नहीं होती |
पितृ को शीतल जल की नदी में खाद्यान्न फल फूल दुग्ध के साथ तिल मिश्रित जल द्वारा तृप्त किया जाता है
परिजनों की मृत्यु तिथि पर ही श्राद्ध कर्म किये जाते हैं ,,किन्तु विशेष परिस्थितियों में दुर्घटना या अकाल मृत्यु होने पर चतुर्दशी तिथि को श्राद्ध कर्म की मान्यता है , जिनकी तिथि नहीं मालूम उनकी अमावस्या को पितृ विदा दिवस के दिन श्राद्ध कर्म किये जाते हैं | इसी क्रम में साधू संत की एक विशेष तिथि है द्वादशी ,, |

श्राद्ध कर्म में तिल चावल जों और कुशा का विशेष महत्व है |
एसी मान्यता है इस समय विशेष में यमराज पितृ को आजाद कर देते हैं , ताकि ये अपने परिजनों से श्राद्ध ग्रहण कर सकें | कौए को पितृ स्वरूप में धरती पर आगमन माना जाता है इन विशेष दिनों में विशेष रूप से कौवो को ही भोजन कराया जाता है ,, पूजन के लिए पंडित पंडिताईन को बुलाया जाता है श्रद्धा के अनुसार भोजन दान आदि दिया जाता हैं ..किन्तु सबसे पहले कौवो को ही भोजन दिया जाता है |
विशेषकर संतानहीनता में पितृ दोष माना जाता है ,, इस तर्पण द्वारा इस दोष को दूर किया जा सकता है |
पितृ दोष मुक्त परिवार में खुशहाली रहती है ऐसा भारतीय संस्कृति और पुराणों में अंकित है ,, ||
इस बार ये चौदह दिवस तक चलेंगे ,, तिथि के अनुसार चतुर्थी और पंचमी तिथि का श्राद्ध कर्म एक ही दिन किये जायेंगे |
सादर

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