नई दिल्ली। दुनिया में सबसे प्रताड़ित अल्पसंख्यक समुदाय में से एक म्यांमार के रोहिंग्या मुसलमान यहां जारी हिंसा से अपना घर छोड़ने को मजबूर हैं। वो छोटी-छोटी नावों में भरकर समुद्र के रास्ते आ रहे हैं। किसी को नाव नहीं मिल रहा तो वो गले तक पानी में चलकर आ रहा है। आंकड़ों की मानें तो करीब 3 लाख रोहिंग्या मुसलमान बांग्लादेश में शरण लेने पहुंचे हैं।
खाने के सामान और राहत सामग्री की यहां भारी कमी है। हालत ये है कि प्रेग्नेंट महिलाएं शिवरों में ही बच्चों को जन्म दे रही है। इसी शरणार्थी कैंप में रह रही बेगम बहार नाम की महिला ने अपनी बीती सुनाई है। यकीन मानिए बेगम बहार का दर्द सुनकर आप रो पड़ेंगे। तो आइए आपको विस्तार से बताते हैं।
अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया से खास बातचीत में बेगम बहार ने बताया कि वो तीन दिनों तक नंगे पैर जंगलों के रास्तों से गुजरीं। साथ में उनकी हाथ महीने की बेटी भी थी जिसे उन्होंने पीठ पर बांध रखा था। आप जानकर सन्न रह जाएंगे कि बच्ची को पीठ पर बांधने के लिए उन्होंने उसी कपड़े का प्रयोग किया जिसे वो बतौर हिजाब पहनती थीं। उन्होंने बताया कि जब उन्हें भूख लगती तो पौधों को उखाड़ती और जमीन में कीड़ों की तलाश करती थीं।
कॉक्स बाजार के कुतुपलंग कैंप में रह रहीं हामिदा खातून ने उन तीन महीनों को याद किया जब हर रात वे लोग भयानक डर से जूझते थे। खातून के मुताबिक, ‘रात में, सेना के जवान हमारे दरवाजे खटखटाते थे। वे जबरदस्ती घरों में घुसकर सुंदर लड़कियां खोजते थे। अगर उन्हें मिल जाती थीं, तो उस लड़की को घसीटकर जंगल में ले जाया जाता था और उसके साथ बलात्कार होता था। जो लड़कियां भाग्यशाली होती थीं उन्हें वापस गांव की सड़क पर अधमरी हालत में छोड़ दिया जाता था और बाकियों को गला रेतकर मौत के घाट उतार दिया जाता था।’ खातून कहती हैं, ‘हमें अब भले ही यहां भूखा रहना पड़ता हो लेकिन हम यहां शांति से सो सकते हैं।’