भाईजी, आपको भाई जान से तो मतलब नहीं होगा?

झांसी: अपने मे  मस्त और तुनक मिजाजी बीजेपी महानगर अध्यक्ष प्रदीप सरावगी को लेकर एक सवाल मुस्लिम समाज मे उठ रहा है। यदि उन्हे  मेयर पद का दावेदार बनाया जाता है, तो क्या वो मुस्लिम समाज को अपने साथ लेकर चल पाएंगे? भाईजी के नाम से प्रख्यात प्रदीप की राजनैतिक महत्वाकांक्षा इन दिनो  चरम पर है।

वो मछली की तरह अपना निशाना मेयर की सीट पर लगाये हुये हैं। पैसा भी पानी की तहर बहा रहे? नगर भर मे  होर्डिग्स लगी है। मार्केटसंवाद ने प्रदीप को तुनकमिजाजी इसलिये कहा क्यांेकि देखा है कि एक सफर मे  अपने परिवार के साथ यात्रा कर रहे प्रदीप सरावगी कोच मे  यात्रियो  को जरा सी बात पर हड़का बैठे थे। इतना ही नहीं रवि शर्मा के प्रचार मे  उन्हांेने अपनी इस अदा को दिखाया था।वैसे प्रदीप की पहचान संघ से जुड़े होने से मानी जाती है। शायद यही कारण है कि उन्हे  महानगर अध्यक्ष का पद मिला।

हां, उन्हे  संगठन को धार देने मे उन्हे  महारत हासिल है। बस, मिलनसारता की कमी प्रदीप को दूसरे भाजपा नेताओ  के मुकाबले कम अंक देती है।इन दिनो  नगर में निकाय चुनाव की चर्चा जोरो  पर है। सभी की जुबां पर एक ही सवाल है कि भाजपा से कौन दावेदार होगा। वैसे तो दावेदारो की लिस्ट काफी लंबी है, लेकिन चर्चा मे  प्रदीप सरावगी ज्यादा है।

प्रदीप को लेकर मुस्लिम समाज मे  कई तरह के सवाल है। उनकी छवि और मिलनसारता सबसे बड़ी मुसीबत है।इतना ही नहीं उन्हे  पार्टी में भी जबरदस्त विरोध का सामना करना पड़ रहा है। एक पदाधिकारी ने तो शिकायत तक कर दी कि पहले पद छोड़ो फिर दावेदारी करो। यानि भाईजी किसी के गले नहीं उतर रहे।आपको याद होगा कि विधानसभा चुनाव मे  रवि शर्मा के प्रचार के दौरान नगरा मे  हुयी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की सभा मे  उन्हांेने काफी बवाल किया था।

उन्हांेने आरोप लगाया था कि एडवोकेट सुधीर सिंह ने उनकी मारपीट की। कपड़े फाड़ दिये। इसका बदला उन्होने  सुधीर को कार्रवाई कराकर ले लिया था। प्रदीप के इस तीखेपन का संदेश पार्टी के दूसरे नेताओ  मे  आज भी देखा जा सकता है।वैसे कुछ मामलो में प्रदीप सरावगी बेहद अच्छे कहे जाते हैं। उन्हे  मैनेजमंेट के मामले मे  पार्टी आगे रखती है।विधानसभा चुनाव मे  पार्टी के जितने भी कार्यक्रम हुये उनमे  प्रदीप सरावगी ही मुखिया रहे।

प्रदीप ने मैनेजमंेट भी किया। यहां मुस्लिम समाज को लेकर सवाल इसलिये उठ रहा है क्यांेकि उन्होने  अपने तक अपने आसपास किसी मुस्लिम नेता को फटकने नहीं दिया। जबकि रवि शर्मा के चुनाव मे  कई मुस्लिम चेहरे नजर आये थे। इसके अलावा हिन्दू समाज के कई वर्ग भी प्रदीप सरावगी के कद को नहीं पहचानते। ऐसे मे  सवाल यही रहेगा कि क्या महानगर अध्यक्ष पद पर होने के नाते उन्हें दावेदार मान लिया जाएगा? वैसे अभी टिकट फाइनल नहीं हुआ है।

सीट भी सामान्य नहीं हुयी है, लेकिन जिस तेजी से प्रदीप सरावगी अपना प्रचार अभियान चला रहे हैं,  वो उन्हे  दावेदारो  की कतार मे  शामिल तो करता ही है।खैर प्रदीप को टिकट मिलेगा या नहीं, यह तो आने वाले दिनांे मंे तय होगा, लेकिन इतना तो तय है कि भाईजी का हर अंदाज चर्चा मंे है ?

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