झांसीः कददावर नेता की तलाश कर रही भाजपा ने झांसी मेयर पद के लिये आखिर निर्विवाद नेता का चयन करना ही बेतहर समझा। रामतीर्थ सिंघल के नाम पर इसलिये सहमति बन गयी। जबकि तय हो चुके प्रदीप सरावगी पर नगरा कांड भारी पड़ गया।
कल तक सभी के लिये उत्सुकता का विषय बना महापौर प्रत्याशी अब सबके सामने है। रामतीर्थ सिंघल पर भाजपा ने दांव लगाकर एक तीर से कई निशाने साधने की कोशिश की है। एक तो दूसरे दलो के बड़े नाम के मुकाबले व्यापारी और वैश्य समुदाय को पेश किया। दूसरा यह कि जातीय समीकरण बनाने में पार्टी को ज्यादा परेशानी नहीं होगी।
बताते है कि पार्टी ने व्यापारी, वैश्य और छवि। यह तीन बिन्दु प्रत्याशी चयन में वरीयता के साथ गिने थे। पहले पार्टी ब्राहमण, छवि और पार्टी पर चयन को केन्द्रित किये थी। जब बात व्यापारी और वैश्य की आयी, तो तीन नाम सामने आये। इनमे अनूप अग्रवाल, संतोष गुप्ता और रामतीर्थ सिंघल थे। अनूप पिछले दिनो मूर्ति चोरी कांड में अपने उपर बेवजह आयी आंच के चलते पीछे हो गये।
स्ंातोष गुप्ता को लेकर यह कहा गया कि वो वर्तमान में व्यापारी वर्ग से कटे हुये हैं। जबकि सिंघल व्यापारियों के बीच हमेशा रहे हैं। आज भी जीएसटी को लेकर ज्ञापन देते रहते हैं। इसके अलावा उनका पार्टी में भी ज्यादा विरोध नहीं है।
हालांकि प्रत्याशी तय होने के बाद कुछ लोगों ने विरोध किया, लेकिन इसे पार्टी क्षणिक मान रही है।
यहां सवाल यह उठ रहा है कि क्या रामतीर्थ सिंघल पार्टी के लिये सभी वर्गों में पैठ कर पाएंगे। वैश्य समुदाय से होने और व्यापारियों के बीच जाने का रास्ता भले की सिंघल के जरिये खुलता हो, लेकिन पिछड़ा वर्ग, ब्राहमण वर्ग को साधना इतना आसान नहीं होगा।
बरहाल, सिंघल का चयन हो गया है। प्रदीप सरावगी बाहर हो गये। ऐसे में पार्टी के समाने सवाल यही है कि सबको एक मंच पर कैसे लाया जाए? जानकार मान रहे हैं कि महानगर इकाई अभी भी विरोध में है।