लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ की ओर से जो टिप्पणियां आ रही हैं उनसे लग रहा है कि दोनों के बीच सब कुछ ठीक नहीं है !
कहा जा रहा है कि चुनाव नतीजों में भाजपा के कमजोर होने के बाद आरएसएस ने एक तरह से बदले की कार्रवाई शुरू की है. पिछले कई बरसों से भाजपा की राजनीति और केंद्र सरकार के कामकाज में संघ की पूछ कम हो गई थी. तभी संघ के पदाधिकारी भाजपा और खास कर नरेंद्र मोदी के कमजोर होने का इंतजार कर रहे थे. तभी जब भाजपा लोकसभा चुनाव में 240 सीटों पर रूकी तो अचानक संघ की ओर से हमला शुरू हो गया. लेकिन क्या सचमुच ऐसा है ? क्या सचमुच संघ सीधे टकराव के लिए तैयार है ?
कई जानकारों का मानना है कि भाजपा और संघ के बीच कोई लड़ाई नहीं चल रही है ! यह हमेशा की तरह एक राजनीतिक दांव है. दोनों संगठन नूरा कुश्ती लड़ रहे हैं. इसके दो कारण बताए जा रहे हैं.
पहला कारण तो यह है कि इस बार लोकसभा में भाजपा के सामने बहुत मजबूत विपक्ष होगा. सो, अगर संघ की ओर से ही विपक्ष की भूमिका निभाना शुरू हो जाए तो भाजपा के राजनीतिक विपक्ष को कम मौका मिलेगा. यानी विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ की जगह आरएसएस ही विपक्ष का स्पेस लेना चाहता है.
दूसरा कारण यह बताया जा रहा है कि लोकसभा चुनाव में भाजपा से नाराजगी जताने, उसके खिलाफ मतदान करने या मतदान से दूर रहने वालों को आरएसएस यह अहसास कराए कि उनकी तरह वह भी भाजपा से नाराज है. इससे भाजपा से नाराज हिंदू आरएसएस के लिए प्रतिबद्ध रहेंगे, जिन्हें बाद में कभी भी फिर भाजपा के साथ जोड़ा जा सकता है. आरएसएस नाराज हिंदुओं को यह मैसेज दे रहा है कि उनकी बात सुनने के लिए वह मौजूद है…