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एक मार्मिक स्टोरी- मां जैसा कोई नहीं

रवि त्रिपाठी

झांसीः यह कहानी थोड़ी पुरानी है। आज भी जब इस कहानी को याद करता हूं, तो आंखे छलक आती हैं। जिस समय हमारे कैमरामेन ने इस छाया चित्र को खींचा, उस समय मैं मौके पर था। वो दृश्य आज भी आखो के सामने आ जाता है। विचार उठता है कि क्या कभी दुनिया से गरीबी दूर हो सकेगी? क्योकि गरीबी के कारण कई रास्ते बंद हो जाते और जिसके चलते दुनिया मे सैकड़ांे लोग भूख, प्यास और इलाज के अभाव मे दम तोड़ देते। पर, मां मे कुछ बात है। इसके संस्कार और आत्मीयता रिस्तों को निभाने की प्रेरणा तो देते ही हैं, साथ ही दूसरों के लिये जीने का रास्ता भी खोलते हैं।

वैसे तो झांसी मे गरीब का दर-दर भटकना आम किस्से की तरह है। फुटपाथ से लेकर खुले आसमान में सुबह से रात तक जिन्दगी के सफर को तय करते यह लोग अपनी नियति को नहीं जानते। मैले कुचेले कपड़े और दो जून की रोटी की तलाश। मेहनत के लिये रास्ते नहीं है। जो मिलता, वो दूसरों की दया पर। अब हम आपको इस चित्र की कहानी सुनाते हैं। बारिश का मौसम था। कैमरामेन के साथ रिपोटिंग कर रहा था। अचानक तेज बारिश होने लगी। बीच रास्ते मे गाड़ी कहां रोकते इसलिये कुछ देर भागते रहे। आखिर बारिश पूरे रौ मे आ गयी। कैमरामेन ने हाथ खड़े कर दिये। बोला-सर, रूकते हैं। वर्ना कैमरा खराब हो जाएगा। सड़क किनारे एक खोखे पर गाड़ी रोकी। चाय का आर्डर दिया।

बारिश थमने का इंतजार करने लगे। अचानक देखा राह किनारे खड़े पुराने वाहन के नीचे एक औरत बैठी। प्रथमदृष्टया यही लगा कि बारिश से बचने के लिये बैठ गयी होगी। अभी मैं औरत के बारे मे सोच ही रहा था कि इस बीच बारिश थम गयी। कैमरामेन बोला-सर, अब कहां चले ? इससे पहले हम कुछ सोचते। औरत के पास एक छोटी सी लड़की पहुंची। लड़की को देखकर मेरी उत्सुकता बढ़ गयी।

आखिर यह लड़की कौन है और इसके हाथ मे क्या है? यह सोचकर हमने एक और चाय का आर्डर दे दिया। निगाह औरत पर थीं। मैले कुचेले कपढ़ो मे दोहरी हुयी जा रही इस काया के पास आयी लड़की ने आवाज दी-मां, रोटी लायी हूं। बिटिया की आवाज सुनकर भीगे कपडो में लिपटी मां की देह हरकत मे आयी और साड़ी मे छिपाये थैले को बाहर निकाला। लड़की ने जो रोटियां दी, उन्हंे थैले में रख लिया। बारिश रूक गयी थी। लड़की को अंदाज ही नहीं था कि कोई उसे देख रहा है। वह मां को रोटी देने के बाद सहजता उसे उठी और खेलने लगी। हमसे रहा नहीं गया। रास्ता पार करते हुये लड़की के पास गये।

पूछा-बेटा यह रोटियां कहां से लायी थी? जिसको तुमने रोटियां दी, वो कौन है? हमारे दो सवाल एक साथ सुनकर लड़की घबरा सी गयीं। फिर बोली-हमाई अम्मा हैं। तीन दिन से भूखी हती, आज हमंे रोटी मिल गई। हमने अम्मा को दै दई। तुम कहां रहती हो और कहां जाना है? यह सवाल मन मे ही था। लड़की ने अपने आप जवाब दे दिया। बोली-हम अम्मा के संगै छतरपुर जा रय। हमाओ गांव वहीं है। लड़की के भाव और संस्कार पूरी तरह समर्पित और जिम्मेदारी वाले थे। वो मां के आसपास ही खेलती रही।थोड़ी देर बाद औरत भी गाड़ी के नीचे से बाहर आ गयी। सिर पर पल्लू था। चेहरा देख नहीं पाया। औरत ने लड़की को आवाज दी। खेल रही लड़की ने पलटकर देखा और मचलकर मां के पास आ गयी।

हम आज भी सोचते हैं कि बेटियां वाकई भगवान हैं। उस बिटिया की मां की भूख और उसका ख्याल रखने की जिम्मेदारी हमे गरीबी से लड़ने को उत्साहित करती है। हम चाहते हैं कि दुनिया एमडबल्यू हर कोई मां-बाप को सहेज कर रखे। यह सुखी रहेगे, तो हम सुखी रहेगे ।

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