भोपाल 8 नवंबर मध्य प्रदेश के दिग्गज नेता और पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर ने भाजपा को अपनी जिद के आगे झुका ही लिया। उन्होंने गोविंदपुरा सीट से अपनी बहू कृष्णा गौर को टिकट मिला कर यह साबित कर दिया कि वह अभी भी राज्य में सत्ता के लिए कितने अहम हैं।
मध्यप्रदेश में हो रहे विधानसभा चुनाव के लिए भारतीय जनता पार्टी के सामने टिकट बंटवारे को लेकर जिस तरह से घमासान मचा हुआ है उसमें सबसे रोचक तथ्य कुछ सीटों के लिए सामने आए हैं। इनमें भोपाल के गोविंदपुरा सीट भी शामिल है।
इस सीट पर बाबूलाल गौर पिछले 10 बार से जीत दर्ज करते आए हैं इस बार पार्टी ने उन्हें टिकट न देने का फैसला किया। इस जानकारी के बाद बाबूलाल गौर ऐसे भड़के कि उन्होंने बगावत करने के संकेत दे दिए साफ कह दिया टिकट नहीं मिला तो निर्दलीय भी लड़ सकते हैं।
हालांकि यह बात उन्होंने सार्वजनिक तौर पर नहीं की लेकिन उनकी कार्यशैली से साफ नजर आया था कि वह अपने लिए या अपनी बहू के नागौर के लिए टिकट न मिलने पर निर्दलीय मैदान में उतरने को बेताब है । चुकी भाजपा इस बात को अच्छी तरह जानती है सत्ता में वापसी और अपना वर्चस्व बनाए रखने के लिए बाबूलाल गौर जैसे दिग्गजों को एकदम किनारे करना ठीक नहीं होगा।
शायद यही कारण रहा कि लगातार निकल रही सूची के बाद जब भाजपा ने बीते रोज अपनी एक और सूची जारी की तो उसमें बाबूलाल गौर की बहू कृष्णा गौर को शामिल कर ही लिया।
सूची में बहू कृष्णा का नाम शामिल कराने के बाद बाबूलाल गौर ने यह दिखा दिया कि अभी उनकी बात में कितना दम है और उनकी जिद के आगे ही जीत है।
बाबूलाल गौर की तरह ही एक और दिग्गज नेता कैलाश विजयवर्गीय ने भी पार्टी को अपनी जीत के आगे झुकने के लिए मजबूर कर दिया उन्होंने अपने बेटे आकाश को विधायक बनाने के लिए टिकट दिलाने में सफलता के रूप में पहली सीढ़ी पर तो चढ़ा ही दिया।
मध्यप्रदेश में जिस तरह से शिवराज सिंह की सरकार को भारतीय जनता पार्टी फिर से बनाए रखने के लिए जद्दोजहद कर रही है उसमें बाबूलाल गौर और कैलाश विजवर्गीय जैसे दिग्गज नेताओं की ज़िद कुछ समावेश करना यह संकेत देता है कि भाजपा फिलहाल किसी भी तरह का रिस्क लेने के मूड में नहीं है।