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कैसे कददावर नेता बन गये नरेन्द्र झां?

झांसी: कल तक जिस युवा नेता को जमीन पर पैर रखने के लिये जगह नहीं मिल रही थी। आज वो बसपा जैसे पार्टी मे नंबर दो का नेता बन गया। नंबर दो मायने मायावती के बाद बुन्देलखण्ड नहीं, तो झांसी मे ।चलिये, नरेन्द्र के नंबर दो पर पहुंचने की पूरी कहानी आपको बताते हैं।

बसपा का अपना फार्मूला है। पैसा फ़ेको तमाशा देखो। पैसा ही कद का मानक तय करता है। इस फार्मूले पर चलने वाली बसपा को पिछले कुछ दिनो  से बुन्देलखण्ड के झांसी मे  युवा चेहरे की तलाश थी। विधानसभा चुनाव मे  सड़क पर आ गयी पार्टी को इस बात के लाले पड़ गये कि कोई मेयर तो छोडि़ए सभासदी के लिये आवेदन करने को तैयार नहीं था।

बड़े नेताओ  की निकासी से उपजे हालातो  पर मंथन करते हुये नेतृत्व ने सभी जगह इस फार्मूले को लागू किया। यानि नये चेहरे की तलाश।झांसी मे  डमडम जैसे पुराने नेताओ  की वापसी भले ही संख्या बल बढ़ाने के नाम पर हो गयी हो, लेकिन राजनैतिक जमीन बढ़ाने के लिये नये चेहरे की तलाश थी।

जानकार बताते हैं कि बसपा के एक नेता को नरेन्द्र झां की याद आयी।नरेन्द्र बीकेडी के दौर से ही नेतानगरी मे  सक्रिय रहे हैं। उस दौर मे  नरेन्द्र की तूती बोला करती थी। हालंाकि बाद मे उन्होने  खुद को सरेंडर कर लिया और अपने कारोबार मे  उलझ गये। नरेन्द्र मूलतः ठेकेदारी का काम करते हैं।

नई बस्ती इलाके मे  रहने वाले नरेन्द्र झां छात्र जीवन से ही दोस्तो  के यार कहे जाते हैं। उनमे  बस एक की कमी है कि वो आम जनता मे  अपनी पैठ नहीं बना पाए। शायद यूं कहें कि उन्हे  मौका नहीं मिला।इस नब्ज को पकड़ते हुये बसपा के कददावरो  ने नरेन्द्र पर डोरे डाले। कहते है कि हर इंसान की कुछ न कुछ कमजोरी या कहे  कि लालसा होती है। छात्र जीवन के दौर से चमकता चेहरा बनने की मंशा दिल मे  थी, सो नरेन्द्र ने बसपा मे  शामिल होने का ऑफर स्वीकार कर लिया।

इन दिनो  बुन्देलखण्ड मे  बसपा की जमीन खाली पड़ी है। पुराने नेताओ  के जनता से कटाव और सिर्फ जातिवाद तक सीमित होने के कारण उन्हे  जमीन बनाने मे  खासी दिक्कत आ रही हैं। डमडम की वापसी के पीछे यही तर्क दिया गया कि ब्राहमण वर्ग को बसपा पर भरोसा हो सके? यह मुश्किल की कड़ी है।

बरहाल, नरेन्द्र के बसपा मे  आते ही नये समीकरण का दौर शुरू हो गया है। उन्हे  जनता की नजरो  मे  लाने और कद बढ़ाने के लिये काशीराम की याद मे  समारोह आयोजित करने से बढि़या कोई मौका नहीं था। चूंकि यकायक उन्हे  मेयर का दावेदार बताया जाता, तो शायद वो किसी को पचते नहीं। इसलिये नरेन्द्र का कद पार्टी मे  ही उंचा करने के लिये यह आयोजन किया गया!जानकार बताते है कि नरेन्द्र ने अपने धनबल और शर्तों के आगे पुराने बसपाईयो  को न केवल किनारे लगा दिया बल्कि यह भी जता दिया कि फिलहाल उन्हे  पार्टी की नहीं पार्टी को उनकी जरूरत है।

वैसे आपको याद होगा कि विधानसभा चुनाव से पहले हाजी अस्फाक को टिकट का दावेदार बताकर मैदान मे  उतारा गया था। उस दौर मे  कोई नहीं जानता था कि हाजी अस्फाक कौन है? ताबड़तोड़ होर्डिग्स और प्रचार ने हाजी को शहर मे  चर्चा मे  ला दिया, लेकिन ऐन मौके पर उन्हे  बैकफुट पर लाकर पार्टी ने अपनी नीति का लागू कर ही दिया। नरेन्द्र के साथ भी क्या ऐसा ही होगा? उन्हे  पार्टी मे  मेयर का दावेदार माना जा रहा है। भरोसा भी इसी बात का दिया गया है। जानकार मानते है कि ऐसा ही भरोसा डमडम को दिया गया है। अब अंतिम समय मे  कहीं डमडम मैदान मे  आ गये, तो नरेन्द्र का आज का दो नंबर का कद क्या बरकरार रह पाएगा? यदि आप नगर मंे लगी होर्डिग्स को देखंे, तो सभी मे  नरेन्द्र झां की फोटो मायावती के बाद दूसरे नंबर पर हैं, जबकि पार्टी के नेता छोटे रूप मे  नजर आ रहे हैं।

हां, एक और अप्रत्याशित घटनाक्रम सामने आया हैं। नरेन्द्र के साथ सीए कपिल रेजा अचानक मैदान मे  नजर आने लगे? अभी कोई नहीं जानता कि कपिल रेजा कौन हैं? आपको बता दे  कि सीए के रूप मे  कपिल की खासी पहचान है। यहां लोगो  के मन मे  सवाल उठ रहा है कि कपिल को अचानक राजनीति मे  आने की क्या सूझी? वैसे इसका सही जवाब तो वही दे सकते, लेकिन माना जा रहा है कि कपिल और नरेन्द्र की जुगल जोड़ी हर काम मे  बराबर की भागीदार है, इसलिये वो भी सावर्जनिक जीवन मे  प्रवेश कर गये।

बीते रोज हुये सम्मेलन मे  यह भी सवाल उठा कि जालौन और ललितपुर से भीड़ ज्यादा आयी, झांसी की भागीदारी कम रही। इसको लेकर अंदर खाने मे चली राजनीति अभी शुरूआती दौर मे  है, देखना है कि यह राजनीति नरेन्द्र को किस मुकाम पर लाकर छोड़ेगी? कद उंचा होगा या फिर…..हां जी…!!

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