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क्या मोदी भी दूसरे वीपी सिंह बनेंगे?

नई दिल्ली 7 सितंबर गुरुवार को SC ST एक्ट के विरोध में सवर्णों का भारत बंद कई मायनों में राजनीतिक संकेत दे गया है. सवर्णों का यह विरोध मंडल कमीशन की सिफारिशें लागू होने के बाद दूसरी बार इतनी बड़े पैमाने पर देखने को मिला है . राजनीतिक गलियारे में सवाल उठने लगे हैं क्या नरेंद्र मोदी का भी BP सिंह की तरह हाल होगा ?क्योंकि मंडल कमीशन लागू होने के बाद बी पी सिंह का जो हाल हुआ था वह किसी से छुपा नहीं है।

आपको याद होगा कि पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह को लेकर देश भर में एक नारा दिया गया था राजा नहीं फकीर है देश की तकदीर है। यह नारा बी पी सिंह को सत्ता के उस समय के सपने को दिखा रहा था जिसमें आने वाले कई वर्षों तक वह गद्दी पर आसीन होते नजर आ रहे थे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और बी पी सिंह को सत्ता से बेदखल होना पड़ा था ।

आज उसी घटना की पुनरावृत्ति होती नजर आ रही है मोदी सरकार ने एससी एसटी एक्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को पलटते हुए उसे मूल स्वरुप में वापस ला दिया है इसके बाद से भाजपा का मूल वोट बैंक सवर्ण  सड़कों पर उतर आया है।

मंडल कमीशन की सिफारिशें लागू करने को लेकर भाजपा व अन्य विपक्षी दलों का अभिजात्य वर्ग वीपी सिंह से इस कदर नाराज हुआ कि उन्हें सत्ता से बेदखल करने को लेकर सब एक हो गए. यहां तक वीपी सिंह के खिलाफ उनके ही समुदाय के चंद्रशेखर उनके लिए चुनौती बन गए.

जिस समय बी पी सिंह ने मंडल कमीशन को लागू किया उस समय संयुक्त मोर्चा की सरकार वैशाखी पर चल रही थी। बी पी सिंह के मंडल को खत्म करने के लिए भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी ने कमर कस ली थी और वह रथ  ले कर निकल पड़े थे।  उन्हें बिहार में लालू ने गिरफ्तार किया, तो उसके बाद जो हुआ वह सबके सामने हैं।

वीपी सिंह के निधन के लगभग 10 साल बाद एक और ‘फकीर’ देश की कमान संभाल रहा है. याद करिए दिसंबर 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मुरादाबाद में दिया वो भाषण जिसमें उन्होंने कहा कि ‘हम तो फकीर आदमी हैं, झोला लेकर चल पड़ेंगे’. इसमें कोई दो राय नहीं कि मोदी को प्रधानमंत्री बनाने में देश ने जाति से ऊपर उठकर उन्हें इतनी ज्यादा सीटें दीं. लेकिन यह भी असत्य नहीं है कि जातीय संघर्ष की आग कहीं न कहीं उस राख के नीचे अब भी धधक रही थी, जिसे मंडल आंदोलन के दौरान कमंडल ने शांत कर दिया था.

 

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