नई दिल्ली 28 अक्टूबर वैसे तो देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव का बिगुल फूंक चुका है लेकिन छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभाव वस्त्र और राजनाथ गांव की 18 सीटों पर राजनीतिक दलों ने अपने भविष्य को सुरक्षित करने के लिए हर तरह के प्रयास चरम पर पहुंचा दिए हैं। राजनाथ गांव से मुख्यमंत्री रमन सिंह मैदान में हैं तो उनके सामने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई की भतीजी करुणा शुक्ला है । सवाल यह है कि रमन सिंह कांग्रेस को किस प्रकार से पटखनी देकर अपनी सत्ता की बादशाहट बचाए रखना चाहेंगे।
छत्तीसगढ़ में राजनीतिक बुखार अपने चरम पर है नक्सल प्रभावित क्षेत्र के सभी साथियों बस्तर कोंडागांव कांकेर नारायणपुर दंतेवाड़ा बीजापुर सुकमा और राजनांदगांव जिले की कुल 18 विधानसभा सीटों पर कांग्रेस और भाजपा के बीच जीत को लेकर पूरी तैयारियां हो चुकी है। एक दो सीटें यहां ऐसी हैं जहां दोनों पार्टियां इन्हें अपना परंपरागत गण मानती हैं। जैसे डोंगरगढ़ नारायणपुर और जगदलपुर में भाजपा ने कभी हार का सामना नहीं किया कोंटा का सीट कांग्रेस ने अपने हाथ से नहीं निकलने दी।
आपको बता दें कि सन 2000 में राज्य के गठन के बाद मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी इसलिए इस राज्य में अजीत जोगी के नेतृत्व में कांग्रेसी सरकार रहे 2003 में छत्तीसगढ़ में हुए विधानसभा के पहले चुनाव में भाजपा ने जीत दर्ज की इन नक्सल प्रभावित 18 सीटों में से भाजपा ने परचम लहराया कांग्रेस को 5 सीट से ही संतोष करना पड़ा । सन 2008 के विधानसभा चुनाव में 18 सीटों में भारतीय जनता पार्टी को 15 सीटें मिली और कांग्रेसी 3:00 पर सिमट के रह गए हालांकि चुनाव में बहुजन समाज पार्टी ने राज्य में अपने एंट्री की और 6 की सबसे ज्यादा वोट हासिल किए।
नक्सल प्रभावित इन क्षेत्र में सन 2013 में 18 सीटों पर भाजपा ने बेहतर प्रदर्शन करते हुए 12 सीटों पर अपना कब्जा जमा लिया भाजपा बिछड़कर 6 सीट पर सिमट गई, लेकिन भाजपा ने बस्तर और राजनाथ के मुकाबले मैदानी क्षेत्रों में बहुत बेहतर प्रदर्शन किया यही कारण रहा कि पार्टी सत्ता के गलियारे तक जा पहुंची रमन सिंह के सामने यह चुनौती है कि 2008 की तरह सत्ता में बने रहने की अपनी दावेदारी को कमजोर ना होने दें।