झांसी 6 सितम्बरः जिस बात के लिये मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव मना करते-करते थक गये, लेकिन सपाइयों के कानो पर जूं तक नहीं रेंगी। हालत यह हुयी कि प्रदेश मे सरकार हाथ से चली गयी और अच्छा करने के बाद भी बदनामी मिली। यह सब समाजवादी पार्टी मे दंबगई की छवि के चलते हुआ। आज भी अखिलेश अपने कार्यकर्त और पदाधिकारियों को समझाते है कि हथियार का प्रदर्शन मत करो। सपाईयांे ने तो जैसे सोच लिया कि जब हाथ मे हथियार नहीं, हमारी पहचान नहीं।
मार्केटसंवाद आपको जो चित्र दिखा रहा है, वो बीते रोज का है। सपा का सक्रिय सम्मेलन था। इसमे पूर्वमंत्री राममूर्तिजी आये थे। कहते है कि सपा मे बहुत अच्छाई है, लेकिन सपाई अपनी दबंग छवि से बाहर नहीं निकल पाते। उन्हे लगता है कि जब तक हाथ मे असलहा न हो, रौब नजर नहीं आता। हालांकि उनकी किसी से दुश्मनी नहीं है, लेकिन शौक और शान के लिये पार्टी और नेताओ की छवि को कुर्बान करना इन्हे अच्छी तरह आता है।
अब पूर्वमंत्रीजी को ही ले लीजिये। झांसी आये। समर्थकों का जमावड़ा हुआ। कोई अपने फार्म हाउस घुमाने ले गया, तो कोई होटल। मंत्रीजी भी फुर्सत मे थे, सो सभी के साथ घूमे। यह अच्छी बात है। जब एक बड़ा व्यक्ति संस्था के सहयोगियांे के साथ रहता है, तो सभी का मनोबल उंचा रहता है। यहां मनोबल से ज्यादा परेशानी यह रही कि मंत्रीजी के काफिले मे हथियार लिये युवक जरूर नजर आये।
भयमुक्त समाज की कल्पना को साकार करने का दम भरने वाले मुलायम सिंह यादव से लेकर अखिलेश यादव तक पार्टी के कल्चर मे बदलाव की जोरदार वकालत कर चुके हैं।
अखिलेश आज के जमाने के नेता है और वो अच्छी तरह जानते है कि जब तक सपा की दंबगई की छवि ठीक नहीं होगी, तब तक शहरी इलाक़ो मे उन्हे प्रवेश नहीं मिल सकता। आज जबकि पार्टी सत्ता से बाहर है और संघर्ष का रास्ता कोई चुन नहीं रहा, ऐसे हालात मे भी पार्टी के लोगों का हथियार लेकर चलने का मोह भंग नहीं हो पा रहा। सवाल यह है कि एसपी मे क्या हथियार के प्रदर्शन को राजनैतिक सफलता का अंतिम सत्य माना जा रहा है?