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जयंती पर पंडित दीन दयाल उपाध्याय को भावपूर्वक याद किया

बुविवि में हुए कई कार्यक्रम

झांसी। बुंदेलखंड विश्वविद्यालय में विभिन्न स्थानों पर आयोजित कार्यक्रमों में एकात्म मानववाद के प्रणेता पंडित दीनदयाल उपाध्याय को उनकी जयंती पर आज भावपूर्वक याद किया गया। वक्ताओं ने लोगों से पंडित दीनदयाल उपाध्याय के आदर्शों से प्रेरणा लेकर समाज में रचनात्मक कार्य संपादित करने का आहवान किया।

बुुविवि के कुलपति प्रो मुकेश पाण्डेय, कुलसचिव विनय कुमार सिंह. कला संकाय के अधिष्ठाता प्रो मुन्ना तिवारी ने आज आवासीय परिसर में स्थापित पंडित दीन दयाल उपाध्याय की मूर्ति पर फूल मालाएं अर्पित कर उन्हें भावपूर्वक याद किया। इस कार्यक्रम में कुलपति प्रो पाण्डेय ने कहा कि पंडित दीन दयाल उपाध्याय आजीवन गांव, खेत, किसान, गरीब की तरक्की के बारे में सोचते रहे। उनका मानना था कि भारत की तरक्की तभी सही दिशा में मानी जाएगी, जब अंतिम पायदान पर सुदूर गांव में बैठा व्यक्ति खुश रहेगा। उन्होंने भारत की सनातन विचारधारा को युगानुकूल रूप में प्रस्तुत करते हुए एकात्म मानववाद की विचारधारा दी। उन्हें जनसंघ की आर्थिक नीति का रचनाकार माना जाता है। उनका विचार था कि आर्थिक विकास का मुख्य उद्देश्य सामान्य मानव का सुख है। “वसुधैव कुटुम्बकम” भारतीय सभ्यता से प्रचलित है। इसी के अनुसार भारत में सभी धर्मों को समान अधिकार प्राप्त हैं। उन्होंने सभी से पंडित दीन दयाल उपाध्याय के आदर्शों को आत्मसात करने का आहवान किया। इस कार्यक्रम में प्रो डीके भटट, डा. स्वप्ना सक्सेना, देवेंद्र कुमार, डा. शैलेंद्र तिवारी, डा. पुनीत श्रीवास्तव समेत अनेक लोग उपस्थित रहे।

जनसंचार एवं पत्रकारिता संस्थान में समन्वयक डा. जय सिंह की अघ्यक्षता में विशेष कार्यक्रम आयोजित किया गया। वरिष्ठ पत्रकार और शिक्षक उमेश शुक्ल ने पंडित दीन दयाल उपाध्याय के व्यक्तित्व और कृतित्व पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने विद्यार्थियों से पंडित दीन दयाल उपाध्याय के सपनों का भारत रचने का आहवान किया। शुक्ल ने कहा कि पंडित जी ने भारतीय राजनीति को अपने विचारों से बहुत प्रभावित किया। वे कहा करते थे कि अवसरवाद से राजनीति के प्रति लोगोें का विश्वास खत्म होता जा रहा है। अपने राष्ट्र की पहचान को भुलाना भारत के मुलभूत समस्याओं का प्रमुख कारण है। बिना राष्ट्रीय पहचान के स्वतंत्रता की कल्पना व्यर्थ है। नैतिकता के सिद्धांत किसी व्यक्ति द्वारा बनाये नही जाते हैं बल्कि खोजे जाते हैं। अनेकता में एकता और विभिन्न रूपों में एकता की अभिव्यक्ति भारतीय संस्कृति की सोच रही है। शुरुआत में सभी शिक्षकों ने पंडित दीन दयाल उपाघ्याय के चित्र पर माल्यार्पण कर उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित किया। इस कार्यक्रम में डा.कौशल त्रिपाठी, डा. राघवेंद्र दीक्षित, डा. अभिषेक कुमार समेत अनेक लोगों ने विचार रखे।

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