नई दिल्ली 6 मार्चः बसपा प्रमुख मायावती ने सपा को समर्थन देने के लिये राज्यसभा जाने की जो शर्त रखी, भले ही सपा ने उसे मान लिया हो, लेकिन मायावती का राज्यसभा जाना इतना आसान नहीं है। बीजेपी ने जो रणनीति तैयार की है, उस पर अमल हो गया, तो माया का प्लान धरा का धरा रह जाएगा।
सपा-बसपा की दोस्ती में दरार के लिए भाजपा की तिकड़म
यूपी की सियासत में वर्ष 1993 का दौर दोहराने से बचने के लिए भाजपा ने सियासी तिकड़म लगाई है। उपचुनाव में सपा उम्मीदवारों को समर्थन के एवज में राज्यसभा चुनाव में सपा के शेष वोटों की सौदेबाजी को भाजपा ने बेमकसद साबित करने का प्लान बनाया है। भगवा ब्रिगेड के थिंकटैंक में अब नौवीं सीट के लिए मशक्कत करने के बजाय कांग्रेसी चेहरे को समर्थन देने पर मंथन जारी है। अलबत्ता शर्त यह रहेगी कि कांग्रेस किसी नए-नवेले चेहरे को बतौर निर्दलीय उम्मीदवार मैदान में उतारे। ऐसे में कांग्रेस के सात वोटों को भाजपा अपने अतिरिक्त वोटों की मदद से जीत में बदल देगी।
माया-अखिलेश का गणित बिगाडऩे के लिए बदली रणनीति
यूपी में राज्यसभा की दस सीटों के लिए चुनाव होने हैं। विधानसभा की संख्या के आधार पर एक सीट को जीतने के लिए 37 विधायकों के प्रथम वरीयता मतों की जरूरत है। इस गणित से 47 विधायकों की संख्याबल वाली सपा एक सीट आसानी से जीत जाएगी, जबकि शेष दस वोटों को बसपा के 19 वोटों के साथ ट्रांसफर कर देगी। अब गठबंधन को आठ वोटों की जरूरत होगी। बसपा को उम्मीद है कि मजबूरी में कांग्रेस समर्थन करेगी, जबकि भाजपा के विरोध की रणनीति के चलते निषाद पार्टी और रालोद के एक-एक वोट भी हासिल होंगे। इस प्रकार 38 वोटों के साथ बसपा का उम्मीदवार भी राज्यसभा पहुंच जाएगा। यह प्रयोग सफल रहने पर वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा गठबंधन मैदान में उतरेगा। बहरहाल, भाजपा ने सपा-बसपा के इस प्रयोग को फ्लॉप करने के लिए नौवीं सीट जीतने का मंसूबा छोड़ दिया है।
इस समीकरण से बिगाड़ेंगे सपा-बसपा दोस्ती का प्रयोग
भाजपा के सूत्रों के मुताबिक, केंद्रीय थिंकटैंक ने पार्टी नेतृत्व से मशविरा किया है कि बसपा के राज्यसभा उम्मीदवार की पराजय होगी तो सपा के साथ भविष्य की साझेदारी पर विराम लगना तय है। उपचुनावों के नतीजों को लेकर भाजपा के बड़े नेता मुतमईन हैं। पार्टी ने इरादा बनाया है कि यदि कांग्रेस किसी नए चेहरे को बतौर निर्दलीय मैदान में उतारने पर रजामंद होती है तो भाजपा उसे राज्यसभा पहुंचा देगी। गौरतलब है कि विधानसभा में 324 संख्याबल वाली भाजपा 296 वोटों के जरिए आठ जीतों पर इकतरफा जीत हासिल करेगी। ऐसे में अतिरिक्त 24 वोट यदि कांग्रेस के निर्दलीय उम्मीदवार की तरफ ट्रांसफर किया जाता है तो कांग्रेसी उम्मीदवार को जीतने के लिए सिर्फ दो अतिरिक्त वोटों का इंतजाम करना होगा। फिलवक्त तीन निर्दलीय भी भाजपा के साथ खड़े हैं। जाहिर है कि इस समीकरण से कांग्रेस के उम्मीदवार को जीत मिलेगी, साथ ही बसपा के प्रत्याशी को हार का सामना करना पड़ेगा।