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झाँसी- गठबंधन और कांग्रेस के गणित से भाजपा मुश्किल में!

झाँसी। लोकसभा चुनाव की मतदान की तिथि झांसी सीट पर 29 अप्रैल है । इस तिथि के लिए अब महक 4 दिन शेष रह गए हैं ।चुनावी हलचल पूरे शबाब पर आ गई है । एक तरफ जहां समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का गठबंधन है, तो वहीं कांग्रेस और जन अधिकार पार्टी का गठबंधन मैदान में हैं ।

ऐसे में तीसरे विकल्प के रूप में भारतीय जनता पार्टी है। इन तीनों ही दलों के प्रत्याशियों की बात करें, तो गठबंधन से श्याम सुंदर सिंह यादव, कांग्रेस गठबंधन से शिवचरण कुशवाहा और भारतीय जनता पार्टी से अनुराग शर्मा मैदान में हैं ।

चुनाव पूरे चरम पर है, लेकिन जिस तरह से समाजवादी पार्टी बहुजन समाज पार्टी का गठबंधन और कांग्रेश जुगत बैठा रही है उसने भाजपा के सामने मुश्किल खड़ी कर दी हैं । बिल्कुल नए चेहरे के साथ मैदान में उतरी भारतीय जनता पार्टी ललितपुर जनपद में कमजोर नजर आ रही है ।

पार्टी को झांसी में ही इस कदर मशक्कत करना पड़ रही है की विधायक से लेकर सभी पदाधिकारी गलियों की खाक छान रहे हैं
इसके बाद भी उन्हें जनता का रुझान समझ में नहीं आ रहा है।

गठबंधन और कांग्रेसमें जातीय समीकरणों को कुछ इस तरह से बुना है कि भाजपा के सामने परंपरागत वोट संभालने की भी चुनौती आ गई है। भारतीय जनता पार्टी ने भले ही ब्राह्मण प्रत्याशी मैदान में उतारा हो लेकिन ब्राह्मण खेमा भी दो भागों में विभक्त होने से एक तरफा वोट पड़ने की उम्मीद खत्म सी हो गई है। वहीं कुशवाहा समाज के वोट पर कांग्रेसी प्रत्याशी की नजरें हैं ।

मुस्लिम मतदाता दोनों गठबंधन के बीच झूलता नजर आ रहा है भाजपा खेमे में इस बात को लेकर थोड़ी तसल्ली थी की ब्राह्मण उनके पाले में पूरी तरह से आ सकता है , लेकिन इसमें भी सेंध लगती नजर आ रही है । कई मुद्दों पर जनता की नाराजगी और व्यापारियों की स्थिति यह दर्शाती है कि अंदर खाने में कुछ ठीक नहीं है।

समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी गठबंधन ग्रामीण इलाकों में अपनी पकड़ को मजबूत करने के लिए दोनों दलों के नेताओं को मैदान में उतारे हुए हैं । पिछड़े और दलित वोटरों पर गठबंधन की पैनी नजर है । ऐसे में भाजपा की ओर से कारोबारी अनुराग शर्मा को उतारे जाने के बाद पार्टी के सामने मुश्किल यह हो गई है कि पिछढ़े और दलित वोटरों में कैसे सेंट लगाई जाए ? राजनीतिक अनुभव में शून्य माने जाने वाले अनुराग शर्मा संगठन और पार्टी के परंपरागत वोट पर ही निर्भर नजर आ रहे हैं । सवाल यह उठता है कि अनुराग क्या व दलित पिछड़े और मुस्लिम वोटरों पर अपना प्रभाव छोड़ सकेंगे?

इस बात लोकसभा चुनाव के लिए 2014 की तरह मोदी लहर नहीं है भाजपा जहां राष्ट्रवाद के मुद्दे को पूरी तरह से बनाने की कोशिश में है एसे में पार्टी के नए चेहरे को लेकर कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों में भी इस बात को लेकर असमंजस है कि प्रत्याशी की पहचान कैसे लोगों तक पहुंचाई जाए ? हालांकि अनुराग शर्मा की पहचान को जनता तक पहुंचाने के लिए उनके नाम के आगे पिताजी का नाम भी जोड़ा गया।

आपको बता दें कि अनुराग शर्मा के पिता स्वर्गीय विश्वनाथ शर्मा बुंदेलखंड की महान हस्ती थे । उन्होंने अपने राजनीतिक करियर में समाज से जुड़कर कई ऐसे कार्य किए , जो नजीर कहे जाते हैं ।
अनुराग में अपने पिता की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने के लिए राजनीति में कदम तो रख दिया है , लेकिन उनके सपनों को साथ में नहीं लिया । विश्वनाथ शर्मा हमेशा से ही बुंदेलखंड राज्य के लिए संघर्ष करते रहे थे । ऐसे में लोग सवाल उठा रहे हैं कि क्यों अनुराग शर्मा ने पिताजी के बुंदेलखंड राज्य के सपने को छोड़ दिया?

बरहाल चुनावी तैयारियां अंतिम चरण में है । कई पार्टियों के बड़े नेता झांसी में दस्तक दे चुके हैं और कई नेताओं के आने की तैयारी है मुश्किलों में घिरे भाजपा प्रत्याशी के सामने चुनौती यह है कि क्या परंपरागतवोट से हटकर हुआ है अन्य वर्गों पर अपनी छाप छोड़ सकेंगे? क्या उन्हें 2014 के लोकसभा चुनाव में उमा भारती की तरह बंपर वोट मिल सकेंगे या फिर विपक्ष के चक्रव्यूह में वह फस जाएंगे?

यह सब तो 29 अप्रैल को होने वाले के बाद ही पता चल सकेगा । अभी राजनीतिक गलियारे से लेकर गलियो में चर्चाओं का बाजार गर्म है । राजनीतिक सरगर्मी में प्रत्याशियों के जीत हार के गणित पर मंथन चल रहा है। ऐसे में कौन सा प्रत्याशी इस गणित में पास होगा , यह देखना दिलचस्प रहेगा।

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