झाँसी. देश की धड़कन के साथ बुंदेली की माटी भी चुनावी मोड में नजर आने लगी है। राजनीतिक रंग फिजा में बिखरने लगे हैं, तो नेताओं की खुमारी उतर चुकी है। नेताओं ने अपने समर्थकों से कह दिया है कि उतार लो खुमारी, चलो करो चुनाव की तैयारी। 2019 की बिसात में इस बार बुंदेली माटी बदलाव और बर्तमान हालातों पर नजर रखे हुए हैं।
इस बार का चुनाव राजनीतिक दल हुई नहीं नेताओं के लिए भी करो मरो की स्थिति का है। दल और नेताओं की अंदरूनी हालातों में राजनीतिक परिस्थितियों का जो उठापटक का दौर चल रहा है वह बुंदेली माटी में कैसा नेतृत्व देगा, यह आने वाले दिनों में साफ होगा।
बुन्देलखंड को फतेह करने के लिए सपा, बसपा और कांग्रेस ऐड़ी चोटी का जोर लगा रहीं हैं। भाजपा अपना किला सुरक्षित रखने के लिए पेशबंदी कर रही है। सबसे बड़ी बात है कि अभी से पार्टियों ने मतदाताओं को अपना एहसास कराने के लिए दौरे शुरु कर दिए हैं। बसपा, सपा और कांग्रेस ने बुन्देलखंड के लिए व्यापक रणनीति बना रखी है। उसी के तहत कार्य हो रहा है।
बुंदेलखंड की राजनीतिक दलों की हस्तियों की बात करें तो कांग्रेस से प्रदीप जैन आदित्य पूरी तरह से मैदान में नजर आने लगे है। सहज मुलाकात और सीधी बात। स्लोगन के धनी प्रदीप जैन आदित्य पिछले कुछ समय से जनता से जुड़े मुद्दों को न केवल बेबाकी की से उठा रहे हैं बल्कि मेयर चुनाव में किए गए वादों और जनता के दुख दर्द को अपना समझते हुए सड़क पर खड़े होने का दम भर रहे हैं। कांग्रेसी तो इतना तय है कि पार्टी का दावा प्रदीप पर ही लगेगा वैसे बसपा से कांग्रेसमें दोबार वापसी करने वाले बृजेंद्र व्यास का मन भी लोकसभा चुनाव के लिए हिचकोले में मार रहा है।
इधर हस्तियों की बात में समाजवादी पार्टी के सामने सबसे बड़ी मुसीबत इस बात को लेकर है कि चंद्रपाल सिंह यादव के बाद कौन सा ऐसा चेहरा है जो सर्वमान्य हो सके। पार्टी में इन दिनों कई दावेदार अंदर और बाहर से पूरा जोर लगा रहे हैं।। इनमें एमएलसी प्रतिनिधि निरंजन का नाम तेजी से उभर रहा है। जबकि चंद्रपाल सिंह यादव टिकट अपने परिवार में ही बनाए रखने का पूरा प्रयास कर रहे हैं एक चर्चा यह भी है कि गरौठा विधायक दीप नारायण सिंह अपनी लोकप्रिय छवि के नाम पर पुख्ता दावा ठोक सकते हैं।
जानकार मान रहे है कि सपा में इस बार विधानसभा चुनाव की तरह नए चेहरे को एंट्री मिलना लगभग तय है । पार्टी ने विधानसभा चुनाव में राहुल के ऊपर दाव लगा कर सबको चौंका दिया था।
इधर बहुजन समाजवादी पार्टी की नेता अभी तक इस असमंजस में थे की पार्टी का सपा से गठबंधन होने पर सीट सपा के खाते में चली जाएगी इसलिए बसपा नेता केवल संगठनात्मक स्तर पर काम कर रहे है लेकिन अब मायावती के बदलते सुर के बाद बसपा की ओर से पूर्व मंत्री रमेश शर्मा के परिवार के लोग भी एक बार फिर से टिकट के लिए सक्रिय हो गए हैं।
चेहरे को लेकर भाजपा के सामने बड़ी मुश्किल है। वर्तमान सांसद उमा भारती के पाला बदलने की खबरों ने कुछ नए चेहरों को सक्रिय कर दिया है इनमें उमा भारती के सबसे करीब माने जाने वाले बबीना विधायक राजीव सिंह परीक्षा सबसे आगे दौड़ रहे हैं पूर्व मंत्री रविंद्र सिंह भी लोकसभा सीट के लिए अपने को सबसे दमदार चेहरा साबित करने में जुट गए हैं। हालांकि भाजपा का टिकट अंतिम समय पर ऊपर से टाइम होता है उसे जीत की गारंटी के रूप में पेश कर दिया जाता है इसलिए टिकट को अपने पाले में करने वाले दावेदार भी चुनावी हलचल के तौर पर अपने को मैदान में रखे हुए हैं। यहां एक सवाल यह भी है यदि बार भाजपा उमा भारती पर ही दाव लगाती है, तो क्या उनकी जीत दोबारा हो सकेगी?
आपको बता दें कि लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव में भाजपा ने बुन्देलखंड की सभी सीटों पर अपना कब्जा जमा लिया था। सपा-बसपा और कांग्रेस का खाता भी नहीं खुला था। बुन्देलखंड बसपा का गढ़ माना जाता है। बसपा को सबसे पहली विधानसभा की जीत जनपद जालौन से ही मिली थी।
उधर, सपा ने भी अपना परफॉरमेंस ठीक रखा है। जबकि कांग्रेस गाय बगाये उपस्थिति दर्ज कराती रही है, लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव और 2017 के विधानसभा चुनाव के परिणाम अप्रत्याशित रहे हैं। बुन्देलखंड में भाजपा ने पूरी तरीके से मतदाताओं पर अपना असर छोड़ा था। इतना ही नहीं जीत का परचम बहुत अंतर से लहराया था।
बुन्देलखंड की राजनीति में यह पहला मौका होगा जब भाजपा को इतनी बढ़ी जीत मिली है। इधर सपा-बसपा अपनी खोई हुई साख को वापस पाने के लिए अभी से जुट गए हैं। पिछड़े वर्ग के मतदाताओं को टारगेट बनाया जा रहा है। सभी का मानना है कि पिछड़ा वर्ग जिस ओर झुक जायेगा उसको सफलता मिलेगी।
पिछले चुनावों में इसका असर देखा जा चुका है। अब इसी तर्ज पर राजनीतिक दलों की किलेबंदी हो रही है। बहुजन समाज पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष आर.एस कुशवाहा बुन्देलखंड के लगातार दौरे कर रहें हैं। सातों जिलों की विधानसभाओं में जाकर पार्टियों की नीतियों और प्रदेश सरकार की विफलताओं को बताने का काम किया जा रहा है। कुशवाहा वोट बैंक को अपनी ओर आर्किषत करने के लिए हर हथकंडा अपनाया जा रहा है। क्रमवद्ध तरीके से पिछड़े वर्ग मतदाताओं पर ढोरे डाले जा रहे हैं।
समाजवादी पार्टी ने भी प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल को बुन्देलखंड में जमीन तैयार करने की जिम्मेदारी सौंपी है। वह निरंजन वोट बैंक के के सहारे पिछड़े वर्ग के वोटरों पर निशाना साध रहे हैं। हाल में ही सपा प्रदेश अध्यक्ष ने जालौन-झांसी-ललितपुर में जनसभायें कीं और अखिलेश सरकार के कामों को बेहतर बताने की कोशिश की।
इस बात का एहसास कराने की कोशिश हो रही है कि पिछड़ा वर्ग के सबसे बड़े हितैषी हैं। केन्द्र से लेकर प्रदेश के सुदुर अंचलों तक पिछड़ा वर्ग में राजनीति की लहर बनाने का प्रयास किया जा रहा है। इससे इतर कोई भी काम करने को तैयार नहीं हैं। उनको लगता है कि पिछड़ा वर्ग जिसके साथ हो जायेगा उसको आसानी से मंजिल मिल जायेगी। उधर, कांग्रेस ने भी इसी तर्ज पर पेशबंदी कर रखी है। भले ही प्रदेश में उनका अस्तित्व न हो, लेकिन बुन्देलखंड में अपनी जड़े जमाने के लिए प्रयास किये जा रहें हैं। बसपा से निष्कासित कई बड़े नेता कांग्रेस में पहुंचकर बुन्देलखंड में ताल ठोकने का काम कर रहे हैं।
भाजपा अपना किले को बचाने के लिए सभी प्रकार के दांव चला रही है। पिछड़ा वर्ग को आकार्षित करने के लिए उन्होंने झांसी जनपद का चुनावी जिलाध्यक्ष कुशवाहा समाज के व्यक्ति को बना दिया। जबकि पिछले 2017 विधानसभा चुनाव में भाजपा को झांसी जनपद की चारों सीटों पर जीत दिलाने में अपनी अहम भूमिका निभाने वाले भाजपा जिलाध्यक्ष संजय दुबे को हटा दिया गया। क्योंकि उन्हें लगता है कि अब बैकवर्ड को आर्किषत के लिए उनके ही समाज का नेतृत्व होना चाहिए। इसलिए झांसी में भाजपा ने जिलाध्यक्ष जमुना कुशवाहा को बना दिया है। कुशवाहा समाज की बुन्देलखंड में उपस्थिति ठीक है। इसीलिए कवायद हो रही है।
यह बात अलग है कि प्रदेश सरकार के कार्यों से समाज का निचला तबका काफी नाराज है। जबकि मध्यम वर्गीय भी खुश नहीं है। जिसका खामियाजा आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा को भुगतना पड़ सकता है। इसीलिए नुकसान की भरपाई पिछड़े वर्ग की राजनीति करके की जा रही है। उधर एससी/एसटी वोटर अपने पुराने झंडे के नीचे पहुंच गया है। जबकि सर्वण समाज भाजपा से पूरी तरह खुश नहीं है।
वह भी अपनी जगह तलाशने में लगा हुआ है। अब तो सड़कों पर उतरकर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। जिसका असर बैकवर्ड से लेकर एससी/एसटी वोटरों तक हो रहा है। उनको लगता है कि आरक्षण प्रभावित कर सकता है, लेकिन इतना साफ है कि मतदाताओं ने अपना मन लगभग बना लिया है। लोकसभा चुनाव तक इसका असर दिखने लगेगा। बुन्देलखंड में कौन परचम लहरायेगा। यह तो आने वाला वक्त ही बतायेगा। पर बुन्देलखंडी लोग पूरी तरह से खामोश होकर इन नेताओं को अपनी ताकत का एहसास करा रहे हैं। जबकि भाजपा ने बुन्देलखंड की समस्याओं को दूर करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए हैं। जिसके कारण जनता के कोप का भाजन बनना पड़ सकता है।