झांसीः राजनीति अपनो के बीच कैसे फासले पैदा करती है। इसकी बानगी देखनी हो, तो आज कांग्रेस मे शामिल हुये सीए कपिल रेजा और आम आदमी पार्टी के नरेन्द्र झां की दोस्ती को ले ले। कल तक दोनो की साझा तस्वीरे बसपा के पोस्टर, होर्डिग्स मे नजर आती थी। आज दोनो अलग-अलग विचारधारा के दलो मे समा गये।
यह बुन्देली माटी है। वक्त के साथ करवट लेने वालो को पहले चेताती है। बाद मे अपनी मर्जी की करती। यह इसलिये कहा गया क्यांेकि राजनीति मे पैर रखने वाले अक्सर बुन्देली मन को समझ नहीं पाते। सिर्फ अपने लिये कुनबा तलाशना और हसरतो को अंजाम तक पहुंचाने की मंशा उन्हे दल के दरवाजे तक तो पहुंचा देती है, लेकिन सफलता के लिये उन्हे वो सब करना पड़ता, जो आज के राजनैतिक धर्म मे शामिल है। यानि पाले बदलना?
आपको याद होगा कि पिछले महीने ही झांसी के दो युवा हस्तियो ने अपने को राजनैतिक सफर मे आजमाने के लिये कदम उठाया। इनमे बीकेडी के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष रहे नरेन्द्र झां और चार्टर्ड अकांउटेंट कपिल रेजा शामिल थे।
दोनो आपस मे दोस्त है या फिर यह केवल राजनैतिक मिलन था। यह बात आज तक जनता नहीं समझ पायी। पोस्टर, होर्डिग्स मे कपिल रेजा और नरेन्द्र झां का प्रचार आम आदमी तक ऐसे पहुंचा, जैसे दोनो के नाम की सुनामी आ गयी हो।
कहते है कि वक्त बदलता है। समय की अपनी गति है। पता नहीं कौन सी घड़ी मे कौन सा फैसला हो। वही हुआ। वक्त के एक झटके ने नरेन्द्र को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया, तो कपिल रेजा का मन विचलित हो गया।
रास्ता तलाश रहे नरेन्द्र ने आम आदमी पार्टी का दामन थाम लिया। वो आज भी बसपा से खासे नाराज है। पूरी तरह सबक सिखाने की तैयारी मे हैं। कपिल रेजा का कद कमजोर नहीं है।
उन्हे जनमानस मे भले की राजनेता जैसी पहचान ना मिली हो, लेकिन सभ्य लोगो के बीच प्रतिष्ठा जरूर कायम है। कपिल के अंदर का नेता हिचकोले मार रहा था। वह अचानक कहे या फिर संयोग। सीधा प्रदीप जैन आदित्य के व्यक्तित्व और विचारो से टकरा गया।
मिलन ठीक रहा। दोस्ती का फेसला हुआ, तो आज सार्वजनिक रूप से कपिल ने प्रदीप जैन आदित्य का साथ देने का एलान कर दिया। यानि अब दो दोस्तो के दो किनारे हो गये। कभी साथ चलने का इरादा रखने वाले दोस्तो की बातो , इरादो और पहचान किसके लिये कितनी लाभदायक और नुकसान वाली होगी, यह समय बताएगा?