झांसीः चेतावनी! यह पहली गलती है, थोड़ी सजा। दूसरी बार मे बड़ी सजा। इसके बाद कोई माफी नहीं। बाजार मे अतिक्रमण रोकने के लिये अधिकारियो ने लगभग इसी तर्ज पर फार्मूला निकाला था। दुकानदार हद से बाहर दिखे, तो चालान कटेगा। बात जुबा से निकली, तो सभी के मन मे दहशत कर गयी, लेकिन बोलने वाले सिर्फ हवाबाजी करेगे, यह किसी को अंदेशा नहीं था। जबकि हुआ यही। बाजार मे अतिक्रमण करने वालो का चालान काटने का अभियान चलाने की जिम्मेदारी लेने वाले अधिकारी सुस्ती मे भूल गये कि कहीं जाना है, इसका पूरा लाभ दुकानदारो ने उठाया। सुबह की शुरूआत मे हद के अंदर रहे, लेकिन दोपहर बाद अपने रौ मे आ गये।
लंबे समय से चल रही अतिक्रमण की समस्या पर प्रशासन की सख्ती की दहशत का असर आज से दिखा। सुबह दस बजे बाजार मे दुकानदार अपनी हद से आगे नहीं निकले। चेते रहे कि कहीं रसीद ना कट जाए। प्रशासन भी सख्त रवैया अपनाने को लेकर तैयार होने की बात करता रहा।
आपको बता दे कि नगर के बाजार खुले-खुले और खूबसूरत दिखे, इसके लिये पिछले कई सालो से जददोजहद चल रही है। हर बार मसला उठने के बाद प्रशासन और व्यापारियो की उदासीनता से हल निकलते-निकलते सुस्ती की चादर लपट जाती। यानि कुछ तुम कहो, कुछ हम कहे। बस, इसके बाद खामोश निगाह से नजारा देखते रहे। सो, बाजार का अतिक्रमण साल बीतने के बाद भी जस की तस स्थिति मे है।
यानि व्यापारी परेशान है, लेकिन जिद नहीं पकड़ पा रहे। प्रशासन मुददा हल करना चाहता, लेकिन मजबूरियां और पाबंदियां ढेरों हैं।
ऐसे मे कुछ लोग है जो जिददी स्वभाव मे अपनी विचारधारा बांधते हुये अतिक्रमण मुक्त बाजार का राग गाते रहते हैं।
ऐसे लोगों का राग बीते कुछ दिनो मे अधिकारियो और व्यापारियों को अच्छा लगा। इसके बाद प्रशासन और व्यापारियो के बीच बैठक हुयी। सब कुछ तय हो गया। गलती करने वालो का चालान कटेगा।
अतिक्रमण मुक्त बनाने का आज पहला दिन था। बुधवार का बाजार सुबह कार्रवाई की दहशत मे दुकानो की शटर उठने तक देखा गया। दस से दोपहर 1 बजे तक दुकानदार संभले रहे। कांउटर अंदर रहे, सामान भी थोड़ा बाहर रहा। निगाहे अधिकारियो और टीम के बाजार मे नजर आने पर रही।
यह क्या हुआ? समय की गति अपने निर्बाध रूप मे चलती हुयी सायंकाल की ओर बढ़ने लगी, लेकिन अधिकारियो के कदम बाजार की ओर नहीं हो सके। बस, यही तो दुकानदार चाहता था।
मौका देखा और सीधे फुटपाथ पर आ धमका। आधी दुकान अंदर, आधी सड़क पर। कर लो कार्रवाई, हमारे ठेगे से।
अभियान के पहले दि नही अधिकारियो की सुस्ती से यह तो साफ हो गया कि यहां अधिकारी केवल मुख्यमंत्री योगी के आगमन पर ही अपने को फुर्सत और कार्यवाही मे सचेत पाते है। इसके अलावा जनता, व्यापारी परेशान रहे, तो उनकी बला से। इस मामले मे चाहे रवैया डीएम को हो या फिर एसएसपी का। बड़े अधिकारियो का खौफ छोटे अधिकारियो पर रत्ती भर नहीं है। ऐसे मे सीधा सवाल प्रदेश सरकार पर उठता है, जनता की नजर मे सरकार दोषी साबित हो रही!