झांसी- इसमे कोई शक नहीं है कि आप प्रत्याशी नरेन्द्र झां निकाय चुनाव मे अपनी धमाकेदार पारी के चलते झांसी की राजनीति मे नये नायक बनकर उभरे हैं। जीत-हार से इतर नरेन्द्र झां की चुनावी कवायद ने साबित कर दिया कि जनता के बीच जाने के लिये खुद को चेहरा बनाना पड़ता है।
बीकेडी के छात्रसंघ चुनाव मे जीत हासिल करने के बाद व्यापार और अन्य व्यवस्थाओ मे उलझे नरेन्द्र का जीवन सफर बहुत रोचक है। अपनो के लिये सब कुछ कुर्बान करने का माददा और जीवट इंसान का हुनर। इससे ज्यादा शब्द नरेन्द्र की काबलियत के लिये दूसरे नहीं हो सकते।
जिद के आगे जीत का किसी विज्ञापन का स्लोगन नरेन्द्र झां के उपर बिल्कुल सटीक बैठता है। झांसी की राजनीति मंे पदार्पण के लिये पिछले कुछ सालो से तैयारी कर रहे नरेन्द्र झां को मौका मिला, तो तत्काल झटका भी लग गया। नरेन्द्र झां ने बसपा मे प्रवेश ही चुनाव लड़ने की शर्त पर लिया था।
बसपा शायद नरेन्द्र के पैमाने पर या नरेन्द्र पार्टी के पैमाने पर खरे नहीं उतर सके। नतीजा यह रहा कि चंद दिनो का मेल विवाद के बाद अलग-अलग रास्तो को देखने पर मजबूर हो गया।
जिददी कहे या स्वाभिमान से आंच पर कुछ भी करने की आदत। बसपा से निकाले जाने के बाद ही नरेन्द्र ने तय कर लिया था कि वो मेयर चुनाव जरूर लड़ेगे और दिखा देगे कि चुनाव कैसे लड़ा जाता।
सफल मैनेजमंेट के लिये नरेन्द्र के पास बड़ा कुनबा तो नहीं दिखा, लेकिन याराने का धरातल इतना बड़ा था कि चुनावी मैदान मे नरेन्द्र कंदे, तो कई दलो के नेता तक परदे के पीछे से नरेन्द्र के साथ हो लिये।
जोश, जवानी और जज्बा। तीनो का तालमेल करते हुये नरेन्द्र ने जिस अंदाज मे झांसी की राजनीति मे अपनी पहली धमक दी है, उसने आने वाले कल मे नरेन्द्र के सुनहरे दिनो के रास्ते खोल दिये हैं?
बरहाल, कल मतगणना मे नतीजा जो भी आए। नरेन्द्र जीत और हार से इतर युवा राजनीति मे नया चेहरा बनकर जरूर उभरे है । यह उन युवओ के लिये अच्छी खबर है, जो राजनीति मे सेवा देने की तैयारी कर रहे हैं।