झांसीः निकाय चुनाव से पहले आशंका व्यक्त की जा रही थी कि पूर्व मंत्री प्रदीप जैन आदित्य से नाराज चल रहे कांग्रेसी कोई बड़ा दांव खेल सकते हैं। किसी को यह एहसास नहीं था कि कांग्रेसियो का दाव सामूहिक पहल के परदे के पीछे छिपा होगा। इस
में शायद प्रदीप फंस गये और नतीजा सामने है।
पिछले कुछ दशक मे बुन्देलखण्ड में कांग्रेस का चेहरा बन गये प्रदीप जैन का विरोध करने वालो की संख्या काफी हो गयी है। यह लोग सिर्फ प्रदीप जैन के विरोध का तमगा लिये घूमते हैं।
विधायक का चुनाव हो या फिर लोकसभा का। प्रदीप जैन की पार्टी में पकड़ के चलते प्रत्याशी का नाम तय किया जाता है। प्रदीप की उपरी पकड़ ही कांग्रेसियो के विरोध का असली कारण है।
जानकार मान रहे है कि जब प्रदीप जैन आदित्य के लिये मेयर चुनाव में उनके नाम पर सामूहिक मुहर लगायी गयी, तब प्रदीप पूरी तरह से तैयार नहीं थे। उन्हंे दवाब में लेकर मैदान में उतारा गया।
चुनावी मैनेजमेंट मे प्रदीप से कहां चूक हो गयी, यह समझने की बात है। क्यांेकि कांग्रेसी सामूहिक रूप से प्रदीप जैन के साथ थे, तो हार का अंतर इतना गहरा कैसे हो गया?
प्रदीप जैन की हार की समीक्षा मे जो बिन्दु उभर कर सामने आये, उनमें भितरघात प्रमुख कारण रहा। इसके अलावा प्रदीप जैन मुस्लिम वोटरो मे सेध लगाने मे भी कामयाब नहीं हो पाये।
माना जा रहा है कि शुरूआती दौर के बाद प्रदीप जैन का चुनाव अंतिम दो दिन मे काफी कमजोर हो गया था। यह कैसे हुआ? बरहाल, प्रदीप जैन को मेयर जैसे चुनाव नमे उतारना और उन्हे नाकाम कर देना, अपनो की चाल की सफलता की कहानी बयां करता है।
वैसे कांग्रेसी भितरघात की संभावना से पूरी तरह इंकार कर रहे हैं। उनका मानना है कि ईवीएम ने भाजपा को जीत दिला दी।